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बिरसा मुंडा: 25 साल की छोटी जिंदगी में उलगुलान से कैसे बन गए भगवान?

जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उलगुलान (विद्रोह) किया था. उलगुलान की ही ताकत थी कि अंग्रेज उनके आगे झुके और आदिवासियों की जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) लागू किया गया.

रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा

बिरसा मुंडा. महज 25 वर्ष की छोटी जिंदगी में उलगुलान ने इन्हें भगवान बना दिया. धरती आबा के नाम से लोकप्रिय बिरसा मुंडा कम समय में इतने लोकप्रिय हो गए थे कि अंग्रेज खौफ खाने लगे थे. उन पर 500 रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. 1895 में पहली बार व 1900 में दूसरी बार उन्हें गिरफ्तार किया गया था. 9 जून 1900 को इस महामानव की रांची जेल में रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी थी. हर वर्ष 9 जून को शहादत दिवस मनाया जाता है.

बिरसा मुंडा को भगवान का दर्जा

जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उलगुलान (विद्रोह) किया था. उलगुलान की ही ताकत थी कि अंग्रेज उनके आगे झुके और आदिवासियों की जमीन की रक्षा के लिए छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) लागू किया गया. वे आम लोगों के बीच इतने लोकप्रिय हुए कि उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया. झारखंड अलग राज्य बना, तो झारखंड स्थापना दिवस के लिए इनके जन्मदिन 15 नवंबर को चुना गया. भारत सरकार इनकी याद में डाक टिकट जारी कर चुकी है. संसद में इनकी तस्वीर लगी है. जनजातीय गौरव दिवस के रूप में इनकी जयंती घोषित की गयी है.

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पहली बार 1895 में हुए थे अरेस्ट

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू में हुआ था. सुगना व करमी के घर जन्मे बिरसा की प्रारंभिक शिक्षा सलमा में हुई. इसके बाद वे चाईबासा के मिशन स्कूल में पढ़े. 1890 में उन्होंने चाईबासा छोड़ दिया. फिर धर्म के प्रति उनका झुकाव बढ़ा. 1891 में वे बंदगांव गये, जहां आनंद पांडे से वैष्णव धर्म की जानकारी ली. 1895 में उन्होंने मुंडाओं को एकजुट कर उलगुलान आरंभ कर दिया था. उनका प्रभाव इतना था कि सरदार आंदोलन के योद्धा भी उलगुलान से जुड़ गये थे. उन्होंने जमीन की लड़ाई लड़ी. लोकप्रियता से अंग्रेज काफी परेशान थे और 1895 में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था. 1897 में बिरसा मुंडा को हजारीबाग जेल भेज दिया गया था, जहां से उन्हें रिहा किया गया था.

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बिरसा मुंडा पर 500 रुपये का इनाम था घोषित

09 जनवरी 1900 को सइल रकब पहाड़ी (डोंबारी बुरू) पर बिरसा मुंडा के अनुयायियों पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी. सरकार ने बिरसा मुंडा पर 500 रुपये का इनाम घोषित किया था और उन्हें पकड़ने का अभियान चलाया. उनदिनों सिंहभूम जिले के सेंतरा जंगल में उन्होंने ठिकाना बनाया था, जिसकी सूचना गद्दारों ने पुलिस को दे दी थी. 5 फरवरी 1900 को उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और रांची जेल में बंद कर दिया गया था. 9 जून 1900 को रांची जेल में रहस्यमय तरीके से उनकी मौत हो गयी थी. रांची के कोकर डिस्टीलरी के पास नदी किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया था, जहां आज भी उनकी समाधि है.

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डोंबारी बुरू में बिरसा ने लड़ी अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम लड़ाई

खूंटी जिले के घनघोर जंगल और सुंदर वादियों के बीच एक पहाड़ी है डोंबारी बुरू. ये झारखंडी अस्मिता और संघर्ष की गवाह है. इसी पहाड़ी पर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ी थी. यह बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों की शहादत भूमि है. ये अंग्रेजों के जुल्म की याद दिलाती है. यहां शहीदों की याद में 110 फीट ऊंचा विशाल स्तंभ बनाया गया है. उसके नीचे मैदान में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा स्थापित की गयी है.

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जालियांवाला बाग हत्याकांड से पहले हुआ था डोंबारी बुरू नरसंहार

अंग्रेजों की नींद हराम कर देनेवाला अबुआ दिशुम-अबुआ राज का नारा डोंबारी बुरू की इसी ऊंची पहाड़ी से गूंजा था. 9 जनवरी 1899 को जब भगवान बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की रणनीति बना रहे थे, तभी अंग्रेज सभास्थल पर आ धमके और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी. इसमें सैकड़ों आदिवासी महिला, पुरुष और बच्चों ने शहादत दी थी. हालांकि इस घटना में भगवान बिरसा मुंडा बच निकले थे. सैकड़ों लोगों की शहादत के बावजूद सिर्फ छह की ही अब तक पहचान हो सकी है. डोंबारी बुरू के पत्थर पर इनके नाम उकेरे गये हैं. इनमें हाथीराम मुंडा, हाड़ी मुंडा, सिंगराय मुंडा, बंकन मुंडा की पत्नी, मझिया मुंडा की पत्नी और डुंगडुंग मुंडा की पत्नी के नाम शामिल हैं. वीर शहीदों की याद में 9 जनवरी को यहां हर साल मेला लगता है. आपको बता दें कि 13 अप्रैल 1919 को जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था. इससे काफी पहले यहां नरसंहार हुआ था.

बिरसा मुंडा की ये है वंशावली

भगवान बिरसा मुंडा की वंशावली की बात करें, तो वंशावली में पहला नाम लकरी मुंडा का नाम आता है. लकरी मुंडा के पुत्र सुगना मुंडा और पसना मुंडा हुए. सुगना मुंडा के तीन पुत्र हुए. कोन्ता मुंडा, बिरसा भगवान और कानु मुंडा. कोन्ता और बिरसा मुंडा का कोई पुत्र नहीं हुआ. उनका वंश उनके भाई कानु मुंडा से चला. कानु के एक पुत्र हुए मोंगल मुंडा. इनके दो पुत्र हुए सुखराम मुंडा और बुधराम मुंडा. बुधराम के एक पुत्र हुए रवि मुंडा और उसके बाद उनका वंश वहीं खत्म हो गया. दूसरी ओर सुखराम मुंडा के चार पुत्र मोंगल मुंडा, जंगल सिंह मुंडा, कानु मुंडा और राम मुंडा. कानु मुंडा के दो पुत्र हैं बिरसा मुंडा और नारायण मुंडा.

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