राष्ट्रपति बनने के बाद जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने छाेटानागपुर का दाैरा किया, ताे यहां की जमीनी हकीकत के अनुसार अपनी राय व्यक्त की थी. वे दूरदर्शी थे और जानते थे कि छाेटानागपुर के लाेगाें के उत्थान के लिए क्या करना चाहिए. उसी समय उन्हाेंने छाेटानागपुर के लाेगाें काे आगाह कर दिया था कि अगर यहां के लाेग नहीं जागे, जागरूक नहीं हुए, उत्साह नहीं दिखाया ताे दूसरे क्षेत्रों के लाेग इसका लाभ उठा लेंगे और यहां के लाेगाें काे उनका हक नहीं मिल पायेगा.
यह बात तीन फरवरी, 1958 की है. डॉ राजेंद्र प्रसाद उस दिन गया हाेते हुए चतरा आये थे. उनके साथ हजारीबाग के पहले सांसद बाबू रामनारायण सिंह भी थे. उन दिनाें रांची में एचईसी कारखाना बन रहा था. बड़े पैमाने पर बहाली हाेनी थी. राजेंद्र बाबू ने चतरा में 40 हजार लाेगाें की भीड़ काे संबाेधित करते हुए कहा था-रांची के पास खुलनेवाले बड़े कारखानाें से छाेटानागपुर की जनता की जीवन दशा सुधारने में पर्याप्त सहायता मिल सकेगी. लेकिन इसके लिए स्वयं जनता काे जागरूकता रखने और उत्साह दिखाना हाेगा. ऐसा नहीं हाेने से दूसरे क्षेत्र के लाेग इसका लाभ उठा लेंगे, यहां के लाेग आगे नहीं बढ़ पायेंगे. राजेंद्र बाबू ने अपने भाषण में कहा था-छाेटानागपुर के लाेग इतने गरीब हैं, फिर भी दूसरे राज्याें के लाेग यहां की खनिज संपदा निकाल रहे हैं, जाे दुख की बात है.
झारखंड के खनिज की ताकत काे भी राजेंद्र बाबू अच्छी तरह पहचानते थे. उन्हाेंने माना था कि यहां की खनिज संपदा का लाभ आम लाेगाें तक नहीं पहुंचता. इसका जिक्र उन्हाेंने अपने भाषण में करते हुए कहा था-ईश्वर ने इस क्षेत्र काे जाे प्रचुर खनिज संपदा दी है, उसका हम ठीक से उपयाेग नहीं कर पा रहे हैं. बहुत से खनिज पदार्थ जमीन के भीतर ही पड़े रह जाते हैं. जाे खनिज निकल भी पाते हैं, उनके मूल्य विदेशी कंपनियाें द्वारा निर्धारित किये जाते हैं.