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सात समंदर पार भी छठी मईया के प्रति है अपार श्रद्धा, विदेशों में रहने के बाद भी नहीं भूले अपनी संस्कृति

बिहार और झारखंड से निकल कर छठ महापर्व की अद्भुत छटा अब विदेशों में भी पहुंच चुकी है. यूके, कनाडा और ब्रिटेन में बसे प्रवासी भारतीय छठ महापर्व के सामूहिक आयोजन से अपनी संस्कृति व परंपरा से जुड़े हुए हैं.

बिहार और झारखंड से निकल कर छठ महापर्व की अद्भुत छटा अब विदेशों में भी पहुंच चुकी है. यूके, कनाडा और ब्रिटेन में बसे प्रवासी भारतीय छठ महापर्व के सामूहिक आयोजन से अपनी संस्कृति व परंपरा से जुड़े हुए हैं. उनका कहना है कि विदेश में भले आ गये हैं, लेकिन अपनी परंपरा और सूर्योपासना के महापर्व छठ को कैसे भूल सकते हैं. उनका मकसद है कि पूरी दुनिया सूर्य की महिमा जान सके. विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय झील, समुद्र तट, तालाब या फिर घरों में हौद बनाकर सामूहिक आयोजन में भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं.

15 परिवार सामूहिक सूर्योपासना में लेंगे हिस्सा

बिहारी कनेक्ट पहली बार यूके (ब्रिटेन) में छठ महापर्व का सामूहिक आयोजन कर रहा है. ताकि इस त्योहार को यादगार बनाया जा सके. आशुतोष चौधरी ने बताया कि यॉर्क कॉटेज 75 ईस्टर्न लेन, बोजेट, इंग्लैंड NN29 7LA में एक आवासीय मकान भाड़े पर लिया गया है. जहां पर 15 परिवार इस चार दिवसीय पर्व में हिस्सा लेंगे. व्रतियों और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए यहां आवासीय सुविधा प्रदान की जायेगी.

उन्होंने बताया कि बिहार कनेक्ट यूके भक्तों और प्रतिभागियों से इसके लिए कोई शुल्क नहीं ले रहा है. स्वयंसेवकों से दान और शारीरिक मदद से फंड जुटा रहे हैं. सभी भक्त और स्वयंसेवक इस त्योहार के लिए ठेकुआ व अन्य प्रसाद तैयार करेंगे. यूके में विभिन्न स्थानों पर समुदाय के प्रमुख सदस्यों के जरिये 2000 लोगों के बीच प्रसाद वितरित किया जायेगा. उन्होंने उम्मीद जतायी कि 30 अक्तूबर की शाम को 200 श्रद्धालु एकत्रित होंगे.

सामूहिक आयोजन में 1500 लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे

नॉर्थ अमेरिका के कनाडा में बिहार-झारखंड कनाडा एसोसिएशन (बाजका) की ओर से छठ पर्व का सबसे बड़ा सामूहिक आयोजन किया जाता है. अरविंद चौधरी ने बताया कि बाजका पिछले 7-8 साल से सामूहिक पूजन का आयोजन कर रहा है. इसका कनाडा में लोगों के बीच बहुत अच्छा संदेश जा रहा है. इस बार 16 व्रती सामूहिक छठ पूजा में शामिल होंगे. एक हिंदू मंदिर को रेंट पर लेकर वहीं पूरी व्यवस्था की गयी है.

उन्होंने कहा कि कनाडा में बर्फबारी शुरू हो गयी है, इसलिए छोटे-छोटे कृत्रिम स्वीमिंग पूल बनाकर उसमें टैंकर से गर्म पानी भरा जायेगा, जिससे व्रतियों को कोई परेशानी नहीं हो. खरना के दिन सामूहिक आयोजन में करीब 1500 लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे. उन्होंने कहा कि यहां छठ पूजा ठीक वैसे की जाती है, जैसे बिहार-झारखंड में लोग करते हैं. पूजन सामग्री भारत से मंगायी जाती है.

साऊदी के तटों पर अर्घ्य देने जुटते हैं 3000 श्रद्धालु

कृष्ण प्रताप सिंह उर्फ अनूप ने दुबई में वर्ष 2016 में 4-5 परिवारों के साथ मिलकर छठ पूजा करना शुरू किया. बाद में धीरे-धीरे बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय पूजन के लिए समुद्र किनारे जुटने लगे. दुबई के ममजार बीच एवं आबू धाबी बीच पर तीन-चार ग्रुपों में लोग सामूहिक छठ पूजा का आयोजन करने लगे. समुद्र किनारे अब ढाई से तीन हजार लोगों का जुटान होने लगा है. सामूहिक एकजुटता का संदेश अब साऊदी अरब स्थित एंबेसी तक पहुंच चुका है. पूजा से संबंधित अधिकतर सामान अमेजन से मंगाया जाता है. कुछ लोग कूरियर के जरिये भारत से भी सामान मंगवाते हैं.

आस्था व विश्वास का प्रतीक है छठ महापर्व. एक ऐसा पर्व जहां भगवान को पूजने के लिए किसी पुरोहित की जरूरत नहीं, आस्था विश्वास के साथ जिसने इस व्रत को किया. उसकी हर मनोकामना पूरी हुई. शायद यहीं कारण है कि बोली- भाषा का बंधन तोड़ आज हर कोई छठ करने लगा है.

पड़ोसियों को देख उठाया छठ व्रत

सोनारी निवासी गणेशन एवं जी मालनी ने एक साल पहले छठ उठाया है. वे मद्रासी परिवार से हैं. गणेशन बताते है कि छठ मैया की कृपा से हर मनोकामना पूरी हुई. आस पड़ोस के लोगों को छठ करते हुए देखे उसी से मन में आस्था जगी. बस सभी साथ में छठ प्रारंभ किये.

छठी मईया की मिली कृपा

परसुडीह निवासी डॉ आशीष कुमार गिरि एवं उमा गिरि बंगाली समाज से हैं. उनके बहुत ही करीबी भोजपुरी परिवार के साथ वे पहले छठ में शामिल होते थे. छठ उठाने के बाद अब उन्हीं के साथ चार सालों से छठ कर रहे हैं. छठ मईया की कृपा प्राप्त हुई है. इसलिए हर साल छठ कर रहे हैं.

बेटे की मनोकामना हुई पूरी

भुईयांडीह पटेल नगर निवासी राजेश्वरी देवी छत्तीसगढ़ी समाज की है. 40 वर्ष पहले उनकी सास ने छठ उठाया था, तभी से घर में छठ पूजा हो रही है. बाद में जब उन्हें और उनकी देवरानी, जो सगी बहनें हैं, को बेटी हुई, तब उनके लिए पुत्र संतान की कामना रखते हुए वर्ष 2005 में छठ उठाया. उसी साल देवरानी को बेटा हुआ. एक साल बाद उन्हें भी छठ मैया की कृपा प्राप्त हुई और बेटा हुआ.

पूजा के जरिये करते हैं धन्यवाद

सोनारी गौतम नौ लक्खा अपार्टमेंट में रहनेवाली सोमा बनर्जी पिछले 11 वर्षों से छठ कर रही हैं. उनके साथ देवर और देवरानी ने भी छठ उठाया है. सोमा बताती है कि आस-पड़ोस के लोगों को छठ करते देख छठव्रत करने की इच्छा हुई. फिर छठ उठाया. कुछ मांगने की जरूरत नहीं होती, बस हम सभी पूजा के जरिये उनका आभार और धन्यवाद देते हैं.

बेटी स्वस्थ हुई, तो जगी आस्था

बंटी राव, लता राव कदमा में रहते हैं. ये तेलुगू समाज से हैं. चार साल से लता छठ कर रही हैं. लता बताती हैं कि उनकी बेटी अस्वस्थ हो गयी थी. छठ मैया की कृपा से उसका इलाज संभव हुआ और वह पूरी तरीके से स्वस्थ हो गयी. लता ने बताया कि उन्होंने अपने एक बिहारी सहेली के साथ छठ व्रत उठाया था. अब वह खुद ही कर लेती हैं.

मैया ने पूरी की हर मनोकामना

कदमा निवासी बाला गायत्री और सोनारी निवासी मालिनी सगी बहनें हैं. दोनों ही मद्रासी समाज से हैं. पिछले साल दोनों ने साथ में छठ उठाया है. बाला गायत्री बताती हैं कि ननद की शादी बिहारी परिवार में हुई है. हर साल उनके यहां छठ में शामिल होती रही. फिर मनोकामना लेकर छठ प्रारंभ की.मैया की कृपा प्राप्त हुई.

लापता बेटा मिला, तो पूजा की शुरू

लक्ष्मी मोहंती वर्ष 2009 से छठ कर रही हैं. वह ओडिया समाज से हैं. वर्ष 2004 में पति के निधन के बाद वह इस कदर टूट गयी थीं कि भगवान के प्रति उनकी आस्था और विश्वास पूरी तरह से खत्म हो गया था. बाद में बड़े बेटे ने छठ पूजा के दिन ही नदी घाट जाने की जिद की. ना कर दी. कुछ समय के बाद उनके लापता होने की खबर आयी.

पागलों जैसे खोजते हुए जब बेटा नहीं मिला, तो उन्होंने छठ मैया को पुकारा. लक्ष्मी बताती हैं कि पहले अर्घ्य के दिन जब रात भर बेटा नहीं लौटा, तो दूसरे दिन सुबह नदी घाट गयी और मन में था कि बेटा नहीं मिला, तो इसी नदी में कूद जाना है. पर उसी समय भुवनेश्वर से परिजनों ने फोन पर बेटे के मिलने की सूचना दी. उसी साल मां का धन्यवाद करते हुए व्रत शुरू की.

सिंगापुर में सामूहिक रूप से तैयार होता है खरना का प्रसाद

सिंगापुर में बिजहार सोसाइटी के अंतर्गत रहनेवाले बिहार-झारखंड के 11 लोग इस वर्ष छठ कर रहे हैं. सामूहिक रूप से खरना का प्रसाद तैयार होगा. अर्घ का प्रसाद सोयाइटी के माध्यम से तैयार होता है. संस्थापक सदस्य प्रकाश कुमार हेतमसरिया ने बताया कि सोसाइटी में रहने वाले बिहार व झारखंड के लोग हर साल छठ करते हैं. यह आयोजन 10 वर्षों से हो रहा है.

30-40 महिलाएं खीर का प्रसाद बनाती है, जिसे करीब 300 लोग ग्रहण करते हैं. कोरोना काल के बाद एक बार फिर धूमधान से छठ पर्व मनाया जा रहा है. भावना हेतमसरिया ने बताया कि पूजा की सभी सामग्री मिल जाती है, गन्ना, केला के लिए स्टोर में एक महीने पहले ही ऑर्डर देना पड़ता है. ये सामान मलयेशिया से आते हैं.

ये कर रही हैं छठ व्रत :

ममता झा, विभा शरण, ममता मंडल, सुनीता सिंह, पायल प्रिया, अमृता, गीता यादव, दीप्ति ठाकुर, सविता सिंह, लीना मिश्रा.

व्रत के लिए पहली बार आयी हूं राजधानी

लालपुर की रितिका मंजरी पति गौतम और एक साल के बेटे कबीर के साथ छठ व्रत करने रांची आयी हैं. वह पहली बार रांची में छठ का व्रत कर रही हैं. उन्होंने कहा : रांची में छठ उठाने का कारण है कि बच्चे अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़े रहे. जिस दिन भारत के लिए हमारी फ्लाइट थी, उसी दिन बेटे की तबीयत खराब हो गयी, लेकिन छठी मइया की कृपा से दूसरे दिन वह अचानक ठीक हो गया. फिर हमलोगों ने दोबारा टिकट लिया और गुरुवार को भारत पहुंचे.

यहां जैसा उत्साह और आनंद कहीं नहीं

अशोक नगर की दुर्गा चौबे 38 वर्षों से पति अशोक चौबे के साथ न्यू जर्सी, अमेरिका में रहती हैं, लेकिन छठ महापर्व के लिए हर साल रांची आती हैं. उन्होंने कहा : पहले मेरी सास व्रत करती थीं. इस बार ननद के घर छठ में शामिल होने के लिए आयी हूं. वह बताती है कि रांची में पली-बढ़ी हूं, इसलिए यहां की संस्कृति को कैसे भूल सकती हूं. न्यू जर्सी में भी काफी लोग छठ व्रत करने लगे हैं, लेकिन यहां जैसा उत्साह और आनंद नहीं मिलता.

रांची से लेकर आयी हूं पीतल का सूप

बरियातू की रेणु सिंह मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) में पति सतीश चंद्र के साथ वर्षों से रह रही हैं. वह सात वर्षों से छठी मइया का व्रत कर रही हैं. रेणु सिंह ने बताया कि : मेलबर्न में कई भारतीय मिलकर छठ महापर्व का व्रत करते हैं. अपने घरों में विधि-विधान से सभी अनुष्ठान करते हैं. यहां छठ महापर्व में इस्तेमाल होनेवाली पूजा की सभी सामग्री आसानी से मिल जाती है़ हालांकि बांस का सूप नहीं मिलता है. इसलिए रांची से ही पीतल का सूप और डलिया लेकर आयी हूं. अपनी संस्कृति से जुड़कर काफी अच्छा लगता है.

आसानी से मिल जाती है पूजन सामग्री

अरगोड़ा की नीतू प्रसाद 22 वर्षों से अमेरिका में रह रहीं हैं. वह पिछले चार सालों से छठ महापर्व का व्रत कर रही हैं. दो साल न्यू जर्सी और दो साल भारत में छठ व्रत कर चुकी हैं. वह कहती हैं : न्यू जर्सी में जहां हम लोग रहते हैं, वहां छठ व्रत की पूजन सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती है. सभी व्रती तालाब पर अर्घ देते हैं. नहाय-खाय के लिए बाजार से कद्दू खरीद कर लायी, जो 250 रुपये किलो मिला. अब अमेरिका के लोग भी धीरे-धीरे इस परंपरा को समझने लगे है. कई अमेरिकी दोस्त छठ के प्रसाद के लिए आते हैं.

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