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CM हेमंत सोरेन ने झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुआ बिशप निर्मल मिंज के निधन पर जताया शोक, उन्हें ऐसे किया याद

Jharkhand News, रांची न्यूज : झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुआ बिशप निर्मल मिंज के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के संरक्षण और समृद्ध बनाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहते थे. डॉ मिंज का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है. आपको बता दें कि कल बुधवार शाम को उनका निधन हो गया था. वे पिछले कुछ दिनों से कोरोना से पीड़ित थे. रांची के डिबडीह स्थित आवास में उनका निधन हुआ. वे 94 वर्ष के थे.

Jharkhand News, रांची न्यूज : झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुआ बिशप निर्मल मिंज के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के संरक्षण और समृद्ध बनाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहते थे. डॉ मिंज का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है. आपको बता दें कि कल बुधवार शाम को उनका निधन हो गया था. वे पिछले कुछ दिनों से कोरोना से पीड़ित थे. रांची के डिबडीह स्थित आवास में उनका निधन हुआ. वे 94 वर्ष के थे.

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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने थियोलॉजिकल कॉलेज के प्राचार्य व गोस्सनर कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य एवं एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के प्रथम बिशप रहे डॉ निर्मल मिंज के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के संरक्षण और समृद्ध बनाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहते थे. डॉ मिंज का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है. झारखंड उनके योगदान को सदैव स्मरण रखेगा. मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की शांति और शोकाकुल परिजनों को दुख सहन करने की शक्ति देने की कामना ईश्वर से की.

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बिशप निर्मल मिंज को 2017 में साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान से भी नवाजा गया था. गोस्सनर कॉलेज के प्राचार्य के रूप में उन्होंने इतिहास में पहली बार झारखंड के आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई शुरू करवाई थी. उनके ही प्रयासों से रांची विश्वविद्यालय में भी इन भाषाओं की पढ़ाई शुरू हुई थी. वे 1970 से 1976 तक स्टडी कमीशन ऑफ द लूथेरन वर्ल्ड फेडरेशन के सदस्य रहे थे. चर्च में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुए उन्होंने कुड़ुख में गिरजा की धर्मविधि चलायी और कुड़ुख में गीत गाना भी शुरू कराया. इसमें जस्टिन एक्का ने उनकी काफी मदद की. छोटानागपुर की मसीही कलीसिया में मांदर जैसे आदिवासी वाद्य यंत्र के प्रथम प्रयोग का श्रेय भी उन्हें जाता है.1980 के मध्य से उन्होंने झारखंड अलग प्रांत के लिए एक बौद्धिक मार्गदर्शक के रूप में ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के साथ काम करना शुरू किया

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1987 में गठित झारखंड समन्वय समिति के सक्रिय सदस्य बने. उनकी शिक्षा चैनपुर, गुमला, पटना यूनिवर्सिटी, सेरामपुर यूनिवर्सिटी और अमेरिका के लूथर सेमिनरी, यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा में हुई थी. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से पीएचडी किया था. वे अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी, चार बेटियां समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं. उनकी बड़ी बेटी सोना झरिया मिंज सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय की कुलपति हैं, वहीं दूसरी बेटी डॉ शांति दानी मिंज सीएमसी वेल्लोर में डॉक्टर हैं. तीसरी बेटी पादरी निझर मिंज हैं और चौथी बेटी अकय मिंज नेशनल हेल्थ मिशन की स्टेट प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर हैं.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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