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राजधानी रांची में मैदानों का हाल बदहाल, बच्चों को खेलने – कूदने के लिए नहीं मिल रही जगह

राजधानी की आबादी 22 लाख से अधिक है, लेकिन यहां ओपेन स्पेस और खेलकूद के मैदान नाम मात्र के बच गये हैं. जो बचे-खुचे मैदान हैं, उनकी हालत भी कुछ अच्छी नहीं है. शहर के सबसे बड़े ओपेन स्पेस में शुमार मोरहाबादी मैदान भी केवल नाम मात्र का रह गया है.

झारखंड राज्य गठन से पहले रांची शहर की आबोहवा बिलकुल अलग थी. मोरहाबादी मैदान, हरमू मैदान व रांची पहाड़ी सहित बरियातू फायरिंग रेंज के पास मौजूद खुली जगह खेलने और टहलने के लिए मुफीद थी. शहर के कई मोहल्लों के आमने-सामने कहीं न कहीं कोई खाली जगह थी. यहां बच्चे खेल सकते थे. वहीं बुजुर्ग सुबह-शाम टहलते थे. दूसरी ओर आज हालात विपरीत हो गये हैं. राजधानी बनने के बाद शहर में बड़ी-बड़ी इमारतें और बंगले तो बन रहे हैं, लेकिन यहां खेलने-कूदने व टहलने के लिए विशेष जगह नहीं बची है. ऊपर से नगर निगम की अदूरदर्शिता और गलत नीति ने मैदानों की संख्या कम कर दी है. कई मैदानों में पार्क बना दिये गये हैं, जिसमें पैसे देकर ही इंट्री ली जा सकती है. ऐसे में बच्चे यहां आने से परहेज करने लगे हैं. धीरे-धीरे बच्चे व बड़े अपने-अपने घरों में ही ज्यादा समय बिताने को मजबूर हैं. आज हम इसी मुद्दे पर राजधानी की नब्ज टटोलने की कोशिश कर रहे हैं.

मोरहाबादी मैदान में साल भर होता रहता है कार्यक्रम

राजधानी की आबादी 22 लाख से अधिक है, लेकिन यहां ओपेन स्पेस और खेलकूद के मैदान नाम मात्र के बच गये हैं. जो बचे-खुचे मैदान हैं, उनकी हालत भी कुछ अच्छी नहीं है. शहर के सबसे बड़े ओपेन स्पेस में शुमार मोरहाबादी मैदान भी केवल नाम मात्र का रह गया है. यहां साल भर सरकारी व राजनीतिक कार्यक्रम के अलावा मेला आदि होते रहते हैं. इसके लिए जिला प्रशासन बकायदा आयोजकों से मोटी रकम भी वसूलता है. वहीं, आम लोगों के खेलने-कूदने के लिए बने इस मैदान में दिनभर वाहन सीखनेवाले अपना वाहन लेकर घूमते रहते हैं. इस कारण मैदान में दिनभर धूल का गुबार उड़ता रहता है. इधर रांची नगर निगम शहरवासियों से कई तरह के टैक्स तो वसूलता है, लेकिन बदले उन्हें कोई विशेष सुविधा नहीं देता है. दूसरी ओर देश के कई शहरों में निगम द्वारा जनता के खेलने-कूदने और टहलने के लिए पर्याप्त मात्रा में ओपेन स्पेस का निर्माण किया गया है.

निगम ने पार्क को बनाया कमाई का जरिया

रांची नगर निगम ने भी शहर में पार्कों का निर्माण कराया है, लेकिन उन्हें भी कमाई का जरिया बना लिया गया है. मोरहाबादी का चिल्ड्रेन पार्क, ऑक्सीजन पार्क, हरमू हाउसिंग कॉलोनी का सेक्टर-7 पार्क, सिदो-कान्हू पार्क या शहर के अन्य इलाकों के पार्कों में इंट्री फीस के नाम पर लोगों से 10-30 रुपये तक की वसूली होती है. वाहन पार्क करने का अलग से चार्ज लिया जाता है. सौंदर्यीकरण के नाम पर इन पार्कों में धड़ाधड़ रेस्टोरेंट खोले जा रहे हैं.

मोबाइल और कंप्यूटर में सिमट गये हैं बच्चे

मोबाइल और कंप्यूटर आने के पहले बच्चों का काफी समय खेलकूद में गुजरता था, लेकिन आज के दौर में बच्चे मोबाइल और कंप्यूटर में सिमट कर रह गये हैं. खेल के मैदान से उनका नाता खत्म हो गया है. बच्चे खेल के मैदान में खेले जानेवाले क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी के गेम को मोबाइल पर खेलने लगे हैं. ऐसे में बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होने लगा है और वह बीमार होने लगे.

राजधानी में मैदानों का हाल बदहाल

एचइसी के आवासीय मैदान बदहाल : एचइसी की स्थापना के साथ ही आवासीय कॉलोनी में हर 12 क्वार्टर के बीच में एक खेल का मैदान बनाया गया. आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद एचइसी प्रबंधन ने आवासों को दीर्घकालीन लीज पर देना शुरू किया. इसके बाद गैरेज और दुकानों के निर्माण के कारण मैदानों का अस्तित्व खत्म हो गया.

एथलेटिक्स मैदान एचइसी 

1963 में बने एचइसी के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कभी विभिन्न प्रकार के खेलों के राज्य और राष्ट्रीय स्तर के आयोजन होते थे. लेकिन आज इसकी देखरेख करनेवाला कोई नहीं है. हर समय खुला रहने के कारण यह स्टेडियम अब जानवरों का चारागाह और शराबियों का अड्डा बनकर रह गया है.

मोरहाबादी आर्चरी मैदान

30 साल पहले बिरसा मुंडा फुटबॉल मैदान के निर्माण के वक्त बगल में एक और मैदान बना था. शुरू में यहां साई द्वारा तीरंदाजी का अभ्यास और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं. इससे इसका नाम आर्चरी मैदान पड़ा. अब चारों तरफ से घेर कर इसे पार्क बना दिया गया है, जहां तीरंदाज अभ्यास करते हैं.

रातू रोड का ओटीसी मैदान

रातू रोड के ओटीसी मैदान में कभी अंग्रेज हॉकी खेलते थे और टूर्नामेंट हुआ करता था. कभी हरा-भरा यह मैदान आज देखरेख के अभाव में दयनीय हालत में पहुंच गया है. लेकिन इसे बेहतर बनाने के लिए न तो सरकार और न ही रांची नगर निगम द्वारा कोई प्रयास किया जा रहा है.

गोस्सनर मैदान

जीइएल चर्च कॉम्प्लेक्स के पीछे का मैदान सौ साल पुराना है. यहां बच्चे क्रिकेट खेलते हैं. साथ ही फुटबॉल टूर्नामेंट भी होते हैं. रखरखाव के अभाव में मैदान की स्थिति दयनीय हो गयी है. यह अब खेलने लायक नहीं बचा है. चिंता की बात यह है कि इसकी बेहतरी के कोशिश भी नहीं हो रही है.

हिंदपीढ़ी का खेत मैदान

हिंदपीढ़ी के खेत मोहल्ला में भी एक ऐतिहासिक मैदान हुआ करता था. इसी मैदान से महात्मा गांधी रामगढ़ अधिवेशन के लिए निकले थे. वहीं इस मैदान में आसपास के बच्चे खेलते थे और सुबह से शाम तक बच्चों का यहां जमावड़ा लगा रहता था. लेकिन अब इस मैदान पर अवैध कब्जा हो गया है.

निर्माण की वजह से सिकुड़ता गया मैदान

मोरहाबादी मैदान में सर्वप्रथम बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम का निर्माण किया गया. इससे इस मैदान का क्षेत्रफल आधा हो गया. इसके अलावा प्रशासन द्वारा मैदान के दक्षिणी छोर पर 200 फीट बाइ 100 वर्गफीट के स्टेज का निर्माण कराया गया. स्टेज के बगल में जो भूखंड बचा हुआ था, उसे प्रशासन द्वारा ढाल दिया गया. आज इस भूखंड पर चिल्ड्रेन पार्क आने वाले लोग वाहन पार्क करते हैं. वहीं बचे हुए हिस्से पर डीटीओ द्वारा प्रति सप्ताह वाहन ड्राइविंग का टेस्ट लिया जाता है. इसके बाद जो भी बचा-खुचा मैदान था, उसे जुडको के द्वारा टाइम्स स्क्वॉयर की तर्ज पर विकसित करने के लिए मैदान के चारों ओर बड़ी-बड़ी एलइडी स्क्रीन लगा दी गयी है. इसके लिए मैदान के चारों और लोहे के मोटे-मोटे पिलर खड़े किये गये हैं.

यह हाल है शहर में खोले गये पार्कों की

राजधानी बनने के बाद पिछले 20 साल से रांची नगर निगम ने शहर के विभिन्न इलाकों में पार्कों का निर्माण किया है. पार्कों के उदघाटन के बाद नगर निगम की ओर से इसके संचालन का ठेका निजी ठेकेदारों को सौंप दिया गया है. पार्क का ठेका लेने के बाद ठेकेदार यहां इंट्री फीस से लेकर पार्किंग शुल्क तक लोगों से वसूल रहे हैं. अब कमाई के लिए पार्क के अंदर धड़ल्ले से रेस्टोरेंट भी खोले जा रहे हैं.

चिल्ड्रेन पार्क, मोरहाबादी में तीन-तीन रेस्टोरेंट

मोरहाबादी स्थित चिल्ड्रेन पार्क में कुछ अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से तीन-तीन रेस्टोरेंट खोल दिये गये हैं. रोज शाम को इन रेस्टोरेंट में पार्टियां होती हैं. महफिलें सजती हैं. लेकिन नगर निगम के किसी अधिकारी का ध्यान इस और नहीं गया है.

जाकिर हुसैन पार्क खुलने के कुछ दिनों बाद लटका ताला

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत रांची नगर निगम द्वारा अक्तूबर 2021 में जाकिर हुसैन पार्क का जीर्णोद्धार किया गया था. इस पार्क को 75 घंटे में तैयार कर आम लोगों के लिए खोला गया था. पार्क खुलने के कुछ दिन बाद तक यहां प्रतिदिन बच्चों व बड़ों का जमावड़ा लगा रहता था. लेकिन कुछ दिन बाद निगम ने इस पार्क को बंद कर दिया. आज हालत यह है कि पिछले एक साल से पार्क में ताला लगा हुआ है. नतीजा लोग यहां आते तो हैं, लेकिन उन्हें पार्क का मजा नहीं मिल पाता है.

तीन साल से बंद है स्वामी विवेकानंद कोकर पार्क

कोकर डिस्टिलरी पुल स्थित स्वामी विवेकानंद पार्क भी देखरेख के अभाव में जंगल में तब्दील हो गया है. पार्क में जगह-जगह बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग आयी हैं. पाथ वे घास से पूरी तरह से ढंक गये हैं. असामाजिक तत्वों द्वारा बाड़ को भी जगह-जगह तोड़ दिया गया है.

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