रांची: झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजभाषा प्रकोष्ठ द्वारा ‘विश्वविद्यालय में राजभाषा क्रियान्वयन कैसे करें’ विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. यह कार्यशाला विश्वविद्यालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए आयोजित की गयी थी. इस कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई. इस अवसर पर विषय विशेषज्ञ के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के हिंदी अधिकारी डॉ विचित्र सेन गुप्त उपस्थित हुए. इस अवसर पर डॉ विचित्र सेन ने अपने व्याख्यान में कहा कि राजभाषा नीति का उद्देश्य यह नहीं है कि अंग्रेजी को समाप्त कर दिया जाए, बल्कि यह है कि हिंदी को बढ़ावा देते हुए द्विभाषी पद्धति को अपनाया जाए.
हिंदी भाषी होते हुए भी अधिकतर कार्य करते हैं अंग्रेजी में
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी अधिकारी डॉ विचित्र सेन गुप्त ने हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग को लेकर विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को सुझाव देते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा टिप्पणी तथा प्रारूपण का कार्य हिंदी में करने की कोशिश करें. इसके साथ उन्होंने विश्वविद्यालय में अनुवाद समिति का गठन करने का सुझाव दिया. विश्वविद्यालय के कुलसचिव केके राव ने कहा कि हम हिंदी भाषी होते हुए भी अधिकतर कार्य अंग्रेजी में करते हैं. उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि हम हिंदी ‘क’ क्षेत्र में होते हुए भी हिंदी में काम करने से बचते हैं.
आज भी हिंदी को बढ़ावा देने की बात चिंतनीय
विश्वविद्यालय के ओएसडी डॉ जेएन नायक ने मुख्य वक्ता का स्वागत करते हुए कहा कि आजादी के 76 साल बाद भी हम हिंदी को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं. यह हमारे लिए सोचनीय है. विश्वविद्यालय के हिंदी अधिकारी डॉ उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’ ने कहा कि हिंदी हमारी राजभाषा है और इस भाषा का निरंतर प्रयोग ही हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिला सकता है.
कार्यक्रम में ये थे उपस्थित
इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो कुंज बिहारी पंडा, उप-कुलसचिव उज्जवल कुमार, पीआरओ नरेंद्र कुमार समेत विश्वविद्यालय के अनेक अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन डॉ उपेंद्र कुमार ‘सत्यार्थी’ तथा धन्यवाद ज्ञापन उपकुलसचिव अब्दुल हलीम ने किया.