रांची : कोयला खदानों की नीलामी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने के लिए हेमंत सोरेन की सरकार पर भारतीय जनता पार्टी के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा के नवनिर्वाचित सांसद दीपक प्रकाश ने हमला बोला है. उन्होंने कहा है कि झारखंड सरकार ने कोल ब्लॉक नीलामी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर राज्य की जनता के हितों के खिलाफ कार्य किया है.
श्री प्रकाश ने शनिवार को राज्य सरकार के कोल ब्लॉक नीलामी के केंद्र के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के निर्णय की तीखी आलोचना की. कहा कि यह कार्य सर्वथा राज्य की जनता के हितों के खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कोरोना काल में धन की कमी का रोना रोती रही है, जबकि केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉक नीलामी के माध्यम से लोगों के रोजगार एवं व्यापार में वृद्धि तथा देश की समृद्धि का रास्ता खोलना चाहा, तो राज्य सरकार उसका विरोध कर रही है.
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उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि जब केंद्र सरकार के कोल ब्लॉक नीलामी के फैसले का राज्य सरकार ने स्वागत किया था, तो ऐसा क्या हो गया कि चंद दिनों के भीतर ही अब वह केंद्र के इस फैसले का विरोध कर रही है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से राज्य में देश भर से बड़ी संख्या में लौटे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मिल सकेगा.
दूसरा, राज्य में वाणिज्यिक गतिविधि बढ़ने से राज्य और यहां के लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ होंगे. उन्होंने कहा कि नये क्षेत्रों में कोयला खनन से राज्य को और अधिक रॉयल्टी मिलेगी, जिससे यहां आधारभूत संरचना के विकास में भारी मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, इससे विभिन्न जिलों को मिलने वाले डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फंड में बढ़ोतरी होगी, जिससे वहां बड़े पैमाने पर विकास कार्य हो सकेंगे.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया था कि कोल ब्लॉक नीलामी को लेकर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. उनका कहना था कि कोल ब्लॉक नीलामी में केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत थी, क्योंकि झारखंड में खनन का विषय हमेशा से ज्वलंत रहा है.
उन्होंने कहा था कि इतने वर्ष बाद नयी प्रक्रिया अपनायी गयी है और इस प्रक्रिया से प्रतीत होता है कि फिर पुरानी व्यवस्था में हम जायेंगे, जिससे हम बाहर आये थे. उन्होंने आरोप लगाया कि मौजूदा व्यवस्था से यहां रह रहे लोगों को खनन कार्य में अभी भी अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है. विस्थापन की समस्या उलझी हुई है.
श्री सोरेन ने कहा था कि केंद्र सरकार को मामले में जल्दबाजी नहीं करने का आग्रह राज्य सरकार पूर्व में कर चुकी थी. लेकिन, केंद्र सरकार की ओर से कोई आश्वासन नहीं मिला, जिससे लगे कि पारदर्शिता बरती जा रही है. इसलिए राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी.
Posted By : Mithilesh Jha