रांची (राजीव पांडेय) : साल 2020 जाने को है. इस गुजरते साल ने कोरोना महामारी का जो जख्म दिया, उस पर मरहम लगानेवाले फ्रंट लाइन कोरोना वॅरियर्स हमेशा याद किये जायेंगे. हम बात कर रहे हैं उन डॉक्टरों, नर्सों, पारा मेडिकल स्टाफ, टेक्नीशियन और सफाईकर्मियों की, जिन्होंने इस दौरान 18 से 20 घंटे तक बिना थके अपनी ड्यूटी निभायी. यह रिपोर्ट कोरोना के खिलाफ जंग लड़नेवाले ऐसे ही ‘फ्रंट लाइन कोरोना वॅरियर्स’ को समर्पित है.
झारखंड में कोरोना का पहला केस 31 मार्च 2020 को रांची से मिला. कोरोना संक्रमित विदेशी महिला को रिम्स के कोविड वार्ड में भर्ती कराना था, लेकिन डॉक्टर, नर्स व कर्मी भयभीत थे. महामारी से जूझने के लिए मानसिक रूप से कोई तैयार नहीं था. इन लोगों ने ऐसी जानलेवा बीमारी के बारे में न पहले कभी सुना था और न ही कभी सामना हुआ था. ऐसे में डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियाें को ट्रेंड करने व संक्रमितों की देखभाल के लिए तैयार करना स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती भरा था. क्रिटिकल केयर के डॉक्टरों ने चुनौती स्वीकार की. उन्होंने कोरोना संक्रमितों का इलाज करना शुरू किया. इसके बाद कारवां बनता गया. क्रिटिकल केयर में 18 से 20 घंटे लगातार सेवाएं दीं. संक्रमितों को इलाज करने के दौरान खुद संक्रमित भी हुए. राज्य के अस्पताल के कंधों पर ही मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी थी. नतीजा यह है कि राज्य में 30 दिसंबर तक 1,14,650 संक्रमित हुए, पर इन्हीं डॉक्टर, नर्स व पारा मेडिकल स्टॉफ के भरोसे 1,12,021 संक्रमित स्वस्थ होकर घर भी लौटे.
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हालांकि 1,025 संक्रमितों को बचाने में सफलता नहीं मिल पायी, लेकिन इनके जज्बा व जोश से आज हमारे डॉक्टर व स्वास्थ्यकर्मी ट्रेंड हो गये हैं. अब हर चुनौती का सामना करने को तैयार हैं. राज्य में कोरोना संक्रमितों की बढ़ती संख्या के बीच राजधानी के डॉक्टरों और अस्पतालों पर ही सारी जिम्मेदारी थी. रिम्स, सीसीएल अस्पताल, मेडिका, राज अस्पताल, पल्स हॉस्पिटल, ऑर्किड अस्पताल, मेदांता, गुरुनानक अस्पताल, सेवा सदन व सेंटाविटा आदि अस्पतालों ने सेवाएं शुरू कीं. राजधानी के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञों ने चुनौती को जिम्मेदारी के रूप में लिया. सरकार ने संक्रमितों के लिए हरसंभव प्रयास किया. निजी अस्पताल पारस के साथ करार कर संक्रमितों के इलाज की व्यवस्था की.
Posted By : Guru Swarup Mishra