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Zero Power Cut: 60 फीसदी बढ़ा बिजली का नेटवर्क, फिर भी झारखंड में जीरो पावर कट कब?

22 वर्ष बाद हकीकत यह है कि आज भी जीरो पावर कट राज्य के लिए सपना है. जब कभी झारखंड को पावर हब बनाने की बात होती थी, तो कहा जाता था कि झारखंड देश के दूसरे राज्यों को बिजली देगा.

Jharkhand News: 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य का गठन हुआ. तब सरकार की प्राथमिकता थी कि लोगों को 24 घंटे बिजली मिले. लोगों को जीरो कट पावर देने की बात कही गयी. यानी कि सातों दिन 24 घंटे बिजली. इसके लिए तरह-तरह के वायदे किये गये. लेकिन 22 वर्ष बाद हकीकत यह है कि आज भी जीरो पावर कट राज्य के लिए सपना है. जब कभी झारखंड को पावर हब बनाने की बात होती थी, तो कहा जाता था कि झारखंड देश के दूसरे राज्यों को बिजली देगा. दूसरी ओर आज स्थिति यह है कि झारखंड ही दूसरे राज्यों पर बिजली के लिए आश्रित है. इसकी वजह है कि 22 वर्षों में झारखंड में बिजली की मांग तीन गुना बढ़ गयी. उपभोक्ता भी आठ गुना बढ़ गये हैं. हालांकि झारखंड अलग राज्य होने के पूर्व राज्य में बिजली के नेटवर्क में 60 प्रतिशत इजाफा हुआ है. 22 वर्षों में लगभग 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक की बिजली संरचना तैयार करने पर खर्च हो चुके हैं. लेकिन पूरे राज्य में 24 घंटे लगातार बिजली मिलना आज भी सपने जैसा ही है.

निजी कंपनियों ने लगाये नये प्लांट, पर बिजली संकट कायम

झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से डीवीसी, टाटा पावर और कुछ निजी कंपनियों ने नये पावर प्लांट लगाये. राज्य में डीवीसी के कोडरमा में 1000 मेगावाट के पावर प्लांट लगे हैं. वहीं डीवीसी व टाटा पावर के संयुक्त उपक्रम मैथन पावर लिमिटेड द्वारा धनबाद के मैथन में भी एक हजार मेगावाट का पावर प्लांट लगाया गया है. इसके अलावा दो निजी कंपनियों इनलैंड पावर ने 55 मेगावाट और आधुनिक पावर ने 285 मेगावाट के अतिरिक्त बिजली प्लांट राज्य में लगाये. झारखंड सरकार का अपना पावर प्लांट टीवीएनएल में है. यहां से लगभग 380 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. सिकिदिरी हाइडल से 120 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है. वहीं, राज्य सरकार के पतरातू थर्मल पावर प्लांट को एनटीपीसी के साथ ज्वाइंट वेंचर में बनाया जा रहा है. इसकी क्षमता 4000 मेगावाट की होगी. जल्द ही नॉर्थ कर्णपुरा पावर प्लांट से 1980 मेगावाट उत्पादन होगा. वहीं अडानी के गोड्डा प्लांट से 1600 मेगावाट का उत्पादन होगा. जिसमें 800 मेगावाट की पहली यूनिट चालू हो गयी है.

पावर हब बनता झारखंड, तो 51 हजार मेगावाट होता उत्पादन

झारखंड को पावर हब बनाने की बात कही गयी थी. राज्य गठन के बाद 34 निजी कंपनियों ने झारखंड में लगभग 51 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए एमओयू किया था. लेकिन केवल तीन कंपनियां ही यहां पावर प्लांट लगाने में सफल रहीं. 31 कंपनियों ने झारखंड से नाता तोड़ लिया है. तिलैया में केंद्र सरकार की परियोजना 3960 मेगावाट अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट भी रद्द कर दी गयी. देवघर में 4000 मेगावाट का यूएमपीपी बनना है, लेकिन अभी यह ठंडे बस्ते में है. कहा जाता है कि अगर एमओयू कर चुकी सभी कंपनियां राज्य में पावर प्लांट लगा लेतीं, तो झारखंड न केवल पूर्वी भारत, बल्कि देश में सबसे अधिक बिजली उत्पादन करनेवाला राज्य बन जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

22 साल में नयी तकनीक का कंपनियां करने लगीं इस्तेमाल

22 वर्षों में बिजली कंपनियों द्वारा तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा है. स्काडा प्रणाली के माध्यम से रांची, जमशेदपुर और धनबाद तीन शहरों में स्वचालित गलती-निगरानी लागू की गयी है. रांची शहरी क्षेत्र में स्मार्ट मीटर लगाने का काम शुरू हो चुका है. राज्य के बिजली उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा देने के लिए विभिन्न आइटी माध्यमों को विकसित किया गया है. जैसे सेल्फ बिलिंग मोबाइल सुविधा पोर्टल और ऊर्जा मित्र जैसी व्यवस्था की गयी है.

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650 से बढ़कर 2500 मेगावाट हो गयी राज्य में बिजली की मांग

वर्ष 2001 में बिजली उपभोक्ताओं की संख्या छह लाख थी. 2010 में राज्य में 14 लाख बिजली के उपभोक्ता थे, जो 2017 में बढ़ कर 28 लाख हो गये हैं और वर्ष 2022 तक ग्रामीण विद्युतीकरण के कारण उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 48 लाख 72 हजार 914 हो गयी है. वर्ष 2001 में बिजली की मांग 650 से 750 मेगावाट प्रतिदिन की थी, जबकि खर्च 260 करोड़ रुपये प्रति माह था. अब उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ने से मांग प्रतिदिन 2200-2500 मेगावाट की हो गयी है. हालांकि झारखंड राज्य में बिजली उत्पादन में कोई इजाफा नहीं हुआ है. टीवीएनएल के 380 मेगावाट को छोड़कर जेबीवीएनएल को सारी बिजली एनटीपीसी, डीवीसी और अन्य कंपनियों से खरीदनी कर पड़ती है. तब उपभोक्ताओं को बिजली मिल पाती है.

झारखंड में 18 से 53 हो गयी ग्रिडों की संख्या

वर्ष 2001 से पहले झारखंड में ग्रिडों की कुल संख्या 18 थी. जिसमें 220/132 /33 केवी के तीन और 132/33 केवी के दो ग्रिड सबस्टेशन थे. वहीं ट्रांसमिशन लाइन 2122 सर्किट किमी थी, लेकिन 22 वर्षों में नेटवर्क का विस्तार किया गया है. 35 नये ग्रिड सबस्टेशन बनाये गये और 4385 सर्किट किमी नयी ट्रांसमिशन लाइन बनायी गयी. राज्य में इस समय कुल 53 ग्रिड सबस्टेशन और 6507.17 सर्किट किमी ट्रांसमिशन लाइन है. वहीं आनेवाले एक से दो वर्षों में ग्रिड सबस्टेशन और 3726 किमी सर्किट किमी ट्रांसमिशन लाइन भी बनाने की दिशा में काम हो रहा है.

आधारभूत संरचना में हुए काम भविष्य के लिए भी योजना तैयार

झारखंड में बिजली की आधारभूत संरचना लचर थी. बीते 20 वर्षों में आधारभूत संरचना पर काफी काम हुए हैं और आगे की योजना भी बनायी गयी है. अलग राज्य बनते ही यह महसूस किया जाने लगा कि जब तक आधारभूत संरचना का विकास नहीं होगा, तब तक हर घर में बिजली पहुंचाना संभव नहीं हो सकेगा. सरकार ने वितरण नेटवर्क से लेकर ट्रांसमिशन नेटवर्क तक को सुधारने की दिशा में काम आरंभ किया. यह काम अभी भी जारी है. निरंतर प्रक्रिया के तहत वितरण नेटवर्क से लेकर ट्रांसमिशन नेटवर्क, पावर सबस्टेशन और ग्रिड सब स्टेशन बनाने की दिशा में काम हो रहे हैं.

12 हजार करोड़ की लागत से सुधारा जा रहा वितरण नेटवर्क

पिछले तीन वर्षों से 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से वितरण नेटवर्क को सुधारने की योजना पर काम चल रहा है. इसमें पावर सबस्टेशन बनाने से लेकर, ट्रांसफारमर और तार बदलने का काम भी किया जा रहा है. राज्य में अब तक लगभग 1.33 लाख ट्रांसफारमर लगाये गये हैं. राज्य में 719 किमी 33 केवी लाइन हो गयी है. 1806 किमी 11 केवी लाइन और 1.55 लाख किमी एलटी लाइन का जाल बिछाया गया है. इसके अलावा सभी शहरी क्षेत्रों में तेजी से तार बदलने और ट्रांसफारमर बदलने के काम किये जा रहे हैं. रांची, जमशेदपुर और धनबाद में भूमिगत केबुल भी बिछाये जा रहे हैं. ट्रांसमिशन नेटवर्क पर भी काम हो रहा है.

राज्य गठन के पूर्व बिजली विहीन थे 80 प्रतिशत गांव, पहुंची बिजली

झारखंड अलग राज्य गठन के पूर्व राज्य के 80 प्रतिशत गांव ऐसे थे, जहां के लोगों ने कभी बिजली को देखा भी नहीं था. 29736 गांवों में केवल 8000 गांवों में ही बिजली पहुंची थी. राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना से लेकर अटल ग्राम ज्योति योजना तक से राज्य के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का काम किया गया. आज 20 वर्षों में यह स्थिति है कि राज्य के शत-प्रतिशत गांवों में बिजली पहुंच गयी. सभी गांवों तक बिजली का नेटवर्क का विस्तार कर दिया गया है. यह और बात है कि गांवों में निर्बाध रूप से बिजली की आपूर्ति कभी नहीं होती है. गांव के लोगों को आज भी आठ से 10 घंटे ही बिजली मिल पाती है.

मैन पावर की है भारी कमी

जेबीवीएनएल में बिजली व्यवस्था बनाये रखने के लिए मैन पावर की जरूरत होती है. वर्तमान में मैन पावर की भारी कमी है. जिसमें कार्यपालक अभियंता के 49, सहायक अभियंता के 370 और कनीय अभियंता के 608 पद रिक्त हैं. फील्ड में बिजली व्यवस्था बनाये रखने के लिए इनकी अहम भूमिका होती है. वहीं सबस्टेशन में टेक्निकल पदों में मैन पावर की कमी है. दूसरी ओर बिजली आपूर्ति को निर्बाध रूप से चलाने के लिए लाइन मैन और एसबीओ की जरूरत होती है. इनके 355 पद रिक्त हैं.

जेबीवीएनएल में मैन पावर की स्थिति

पद स्वीकृत कार्यरत रिक्त

  • जेएम(टेक्निकल कैडर) 781 210 667

  • ऑफिस असिस्टेंट 429 194 235

  • टेक्निकल असिस्टेंट 1150 79 355

  • इडी 3 2 1

  • सीइ 15 5 10

  • इएसइ 40 27 13

  • इइइ 178 129 4

  • एइइ 483 113 370

  • जेइइ 814 206 608

  • मैनेजर(एकाउंट कैडर) 30 13 17

  • मैनेजर(टेक्निकल कैडर) 415 149 256

  • मैनेजर(लॉ) 2 0 2

  • मैनेजर(एचआर) 2 0 2

  • जेएम(टेक्निकल कैडर) 781 210 667

  • ऑफिस असिस्टेंट 429 194 235

  • टेक्निकल असिस्टेंट 1150 795 355

रिपोर्ट : सुनील चौधरी

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