COP26 ग्लासगो शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे को कम करने के लिए विकासशील देशों ने जिनमें भारत भी शामिल है यह संकल्प लिया है कि वे अपने देश में कोयले के इस्तेमाल को जितना संभव हो पायेगा कम करेंगे. इसी क्रम में भारत ने यह घोषणा की है कि 2070 तक वह नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल कर लेगा.
भारत का यह संकल्प बहुत बड़ा फैसला है, क्योंकि अगर भारत ऐसा करता है उसे एनर्जी ट्रांजिशन की ओर तेजी से बढ़ना होगा जिसका वादा भारत ने किया है. एनर्जी ट्रांजिशन के बारे में प्रभात खबर से खास बातचीत करते हुए डाॅ संदीप पई ( सीनियर रिसर्च लीड, सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज, वाशिंगटन डीसी स्थित थिंक-टैंक) ने कहा कि 2015 में हुए पेरिस समझौते को लागू करने और पूरी दुनिया को क्लाइमेंट चेंज के बढ़ते खतरे से बचाने के लिए एनर्जी ट्रांजिशन एक बहुत ही महत्वपूर्ण और जरूरी कदम है. लेकिन एनर्जी ट्रांजिशन एक बहुत बड़ा काम है और इसे पूरा करने के लिए रास्ते में कई बाधाएं और चुनौतियां हैं भी है, जिसे दूर करना सरकार का काम है.
डाॅ संदीप पई ने कहा कि अभी हमारे देश में एनर्जी का मुख्य स्रोत फॉसिल फ्यूल है जिसमें कोयला, पेट्रोलियम उत्पाद और प्राकृतिक गैस शामिल हैं. एनर्जी ट्रांजिशन का अर्थ है कोयले और अन्य फाॅसिल फ्यूल पर से निर्भरता हटाकर उसे सोलर और विंड एनर्जी पर लेकर आना है. यह ग्रीन एनर्जी है, जो ऊर्जा का स्थायी स्रोत तो है ही यह वातावरण के लिए भी खतरा पैदा नहीं करता है. चूंकि हमारे देश में ऊर्जा का 80 प्रतिशत स्रोत कोयला और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त होता है इसलिए एनर्जी ट्रांजिशन एक बहुत ही बड़ा और महत्वपूर्ण मसला है.
डाॅ संदीप पई का कहना है कि एनर्जी ट्रांजिशन से बड़ा बदलाव होगा और यह इतना बड़ा बदलाव होगा कि इसका प्रभाव स्पष्ट तौर पर दिखेगा. एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए हमारे पास बहुत ही कम समय है. मात्र दो से तीन दशक में हमें पूरी तरह कोयले पर से निर्भरता खत्म कर उसे सोलर एनर्जी और पवन ऊर्जा पर लेकर आना है. एनर्जी ट्रांजिशन का परिणाम होगा देश में लगभग दो करोड़ लोगों का बेरोजगार हो जाना, ऐसे में सरकार के सामने यह चुनौती होगी कि वो कैसे इतने सारे लोगों को जीविका का कोई दूसरा और सशक्त माध्यम उपलब्ध कराये.
झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां एनर्जी ट्रांजिशन का सबसे ज्यादा प्रभाव दिखेगा और यह प्रदेश सबसे ज्यादा खतरे में नजर आता है. कोयला खदानों से झारखंड सरकार को 10 प्रतिशत रेवेन्यू आता है, ऐसे में उनका बंद हो जाना बहुत असरकारी होगा. हजारों बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार का काम है और इसके लिए सरकार को योजना बनानी होगी और उनका जस्ट ट्रांजिशन करना होगा. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां एनर्जी ट्रांजिशन में काफी समस्याएं भी आयेंगी क्योंकि सोलर प्लांट लगाने के लिए बहुत अधिक जमीन की जरूरत होती है. एक कोयला खदान से 10 से 15 गुणा अधिक जमीन की जरूरत सोलर प्लांट के लिए होती है. यहां सरकार को तय करना होगा कि वह किस तरह जमीन का अधिग्रहण करे. लोगों को ग्रीन एनर्जी के प्रति जागरूक करना भी बहुत बड़ा काम है.
जस्ट ट्रांजिशन का अर्थ है कोयला और उससे जुड़े उद्योगों में लगे लोगों को एनर्जी ट्रांजिशन के बाद बेहतर और न्यायसंगत जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराना. झारखंड में कई तरह के मजदूर कोयला आधारित उद्योग पर निर्भर हैं, जिनमें 1.5 लाख पेंशनर्स हैं. वहीं कई काॅन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी हैं तो कई पेरोल पर भी हैं. इन सबको जस्टिस बेस जीविका देना सरकार का दायित्व है और इसके लिए अभी से गंभीर योजना बनानी होगी. एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया बहुत तेजी से होती है, जैसा मैंने अमेरिका और यूके में देखा है. उस वक्त लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे. ऐसा ना हो इसके लिए सरकार को प्रो-एक्टिव होकर काम करना होगा.
डाॅ संदीप पई का कहना है कि सोलर एनर्जी बहुत सस्ती होती है, ऐसे में जब लोगों को सस्ते दर पर एनर्जी उपलब्ध होगी तो वे कोयले से दूर जायेंगे. इसलिए इन चीजों की अभी से मैपिंग करके झारखंड सरकार को दूरदर्शी रवैया अपनाना होगा.
जस्ट ट्रांजिशन के लिए झारखंड सरकार को अपने यहां निवेशकों को आमंत्रित करना चाहिए. उन्हें बुनियादी सुविधाएं देनी चाहिए, ताकि वे आपके प्रदेश में आयें और लोगों को कोयला से इतर रोजगार मिले. झारखंड में टूरिज्म की काफी संभावनाएं हैं इस क्षेत्र में भी बेहतर प्लानिंग करके सरकार लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकती है, क्योंकि झारखंड एक बहुत ही खूबसूरत राज्य है. झारखंड के जंगली फलों के कारोबार को भी सरकार बढ़ा सकती है और वहां लोगों को रोजगार दिला सकती है. लेकिन इन सारी चीजों को करने के लिए सरकार को गंभीरता से योजना बनानी होगी और उसपर काम करना होगा. अन्यथा हमारा राज्य पिछड़ जायेगा.