कोयले के अवैध खनन में शामिल लोगों के जानमाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब देने से हर सरकार और प्रतिष्ठान बचते हैं और एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि यह एक बड़ी समस्या है और इसके निवारण की जिम्मेदारी भी केंद्र और राज्य सरकारों एवं कोल इंडिया को लेनी चाहिए.
देश में जहां कहीं भी कोयले के खदान हैं, वहां अवैध खनन के मामले भी खूब हैं. बात अगर सिर्फ झारखंड की करें तो यहां हजारों परिवार कोयले के अवैध खनन से जुड़े हैं. अवैध खनन की वजह है पेट की आग. गरीबी और बेरोजगारी की वजह से यहां के लोग कोयले का अवैध खनन करते हैं, चूंकि खनन के दौरान इन्हें सुरक्षा के कोई उपाय उपलब्ध नहीं होते हैं इसलिए अकसर अवैध खनन में शामिल लोग दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं और प्रति वर्ष सैकड़ों लोगों की जान जाती है.
अवैध खनन में शामिल कितने लोगों की प्रतिवर्ष मौत हो जाती है इसका कोई सटीक आंकड़ा इसलिए उपलब्ध नहीं है क्योंकि जब भी अवैध खनन के मामले सामने आते हैं, तो खुद खनन में शामिल परिवार जल्द से जल्द लाश को वहां से निकालकर भागना चाहते हैं और उसका क्रियाकर्म करना चाहते हैं. वजह यह है कि वे एक गैरकानूनी काम में शामिल होते हैं. कई बार तो अवैध खनन के दौरान मौत हो जाने पर दाह-संस्कार भी संभव नहीं हो पाता है. वहीं अगर घटना बड़ी हो और मामला प्रकाश में आ जाये तो बस इतना ही होता है कि संबंधित लोगों के परिजनों को लाश सौंप दी जाती है और मामला खत्म.
विस्थापितों के नेता काशीनाथ केवट का कहना है कि कोयला खदान इलाके में अवैध खनन की घटनाएं आम हैं और दुर्घटनाएं भी अकसरहां होती रहती हैं. बावजूद इसके इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है. दुर्घटना के बाद तो कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि ना तो पुलिस और ही सीसीएल यह मानने को तैयार होते हैं कि कोई दुर्घटना हुई है.
झारखंड के धनबाद में अवैध खनन सिर्फ कोयले का ही नहीं होता है, फायर क्ले, फ्लाई ऐश और ओवर बर्डन का भी अवैध खनन होता है. सिर्फ धनबाद में ही 10 हजार से अधिक परिवार अवैध खनन से जुड़े हैं. दरअसल यहां पूरे साल कृषि नहीं होती है, ऐसे में गरीबों के पास अवैध खनन कमाई का एक अच्छा जरिया बन जाता है.
कोल माफिया पूरे इलाके में सक्रिय हैं जिनके जरिये अवैध खनन का कोयला, फायर क्ले आदि की बिक्री हो जाती है. कोयला अगर सात-आठ हजार रुपये प्रतिटन बिकता है तो फायर क्ले एक हजार रुपये प्रतिटन बिकता है.
अवैध खनन ज्यादातर उन खदानों में होता है जहां कोल इंडिया ने खनन का काम बंद कर दिया है. कई खदानों में पानी भरा होता है. जिन खदानों से कोयला निकालने का काम बंद कर दिया जाता है उसे बालू या फ्लाई ऐश से भरा जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इस काम में कोताही बरती जाती है. परिणामस्वरूप अवैध खनन के दौरान दुर्घटनाएं होती रहती हैं. अवैध खनन में जुटे लोग छोटी-छोटी सुरंग बनाकर खनन करते हैं, कई बार जमीन धंस जाती है तो कई बार जहरीली गैस का रिसाव होने की सूचना मिलती है, जिससे खनन में जुटे मजदूर की मौत होती है.
अवैध खनन की जानकारी प्रशासन को है और अगर यह कहा जाये कि एक तरह से अवैध खनन को प्रशासन की मौन स्वीकृति है तो गलत नहीं होगा . धनबाद के निरसा के बीसीसीएल कापासारा कोलियरी, ईसीएल के मुगमा कोलियरी और ईसीएल के चापापुर कोलियरी, हजारीबाग- रामगढ़ के कोयला खदान, बोकारो के कोयला खदान सहित कई खदानों में अवैध खनन के कारण दुर्घटना की खबर आती रहती है.
अवैध खनन एवं कोयला चोरी को पूरी तरह से लॉ एंड ऑर्डर मुद्दा बताकर केंद्र सरकार इससे अपना पल्ला झाड़ लेती है, जबकि स्थानीय प्रशासन कई बार दुर्घटना को स्वीकार करती ही नहीं. कोल इंडिया के अधिकारी यह तो मानते हैं कि अवैध खनन होता है, लेकिन वे इस मसले पर कोई भी अधिकारिक बयान नहीं देना चाहते हैं. चूंकि अधिकतर अवैध खनन बंद पड़े खदानों में होता है, इसलिए उनपर सीधे तौर पर आरोप भी नहीं लगाया जा सकता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर अवैध खनन से जुड़े लोगों की जान क्या इतनी सस्ती है कि उसे ऐसे ही जाया होने दिया जाये या फिर सरकारें इस दिशा में कोई ठोस कदम उठायेगी? प्रस्तावित खनन नीति में अवैध खनन की जो परिभाषा दी गयी है उसपर झारखंड सरकार को आपत्ति है और हेमंत सरकार ने इसपर अपनी आपत्ति भी जता दी है.
Posted By : Rajneesh Anand