शकील अख्तर, रांची : पिछली एनडीए सरकार के कार्यकाल में कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कागज पर ही स्ट्रॉबेरी की खेती करवायी. महालेखाकार (एजी) द्वारा गुमला डिस्ट्रिक्ट हर्टिकल्चर ऑफिस में नमूना जांच के दौरान मामला पकड़ में आया है. एजी ने सरकार को रिपोर्ट भेज दी है. साथ ही पकड़ में आयी कागजी खेती पर उच्चाधिकारियों का मंतव्य मांगा है. एजी द्वारा इससे पहले रांची और खूंटी में फूलों की कागजी खेती का पर्दाफाश किया जा चुका है.
सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि विभाग के आदेश के आलोक में वित्तीय वर्ष 2019-20 में गुमला जिले में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए 24.71 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती की योजना बनायी गयी. इसके तहत एक हेक्टेयर यानी 2.47 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी के 24,692 पौधे लगाये जाने थे. 50 प्रतिशत अनुदान पर चलनेवाली इस योजना के लिए हर्टिकल्चर ऑफिसर ने 24.71 एकड़ जमीन पर खेती के लिए स्ट्रॉबेरी पौधों का सिर्फ 50 प्रतिशत ही आपूर्ति का आदेश दिया.
अफसर ने यह मान लिया कि किसान स्ट्रॉबेरी के बाकी 50 पौधे खुद खरीदेगा. हर्टिकल्टर ऑफिस के दस्तावेज की जांच के दौरान पाया गया कि 24.71 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 2,46,900 पौधों की जरूरत थी. इसके मुकाबले 50 प्रतिशत यानी 1,23,450 स्ट्राबेरी के पौधों की आपूर्ति के लिए मोरहाबादी स्थित मेसर्स शशांका एग्रोटेक प्रा लि को आदेश दिया गया.
सप्लायर ने स्ट्रॉबेरी के पौधों की आपूर्ति के बदले भुगतान के लिए दो दिसंबर 2019 को अपना बिल दिया. डिस्ट्रिक्ट हर्टिकल्टर ऑफिस ने आपूर्ति को सही मानते हुए सप्लायर को भुगतान कर दिया. हालांकि नमूना जांच के दौरान ऑडिट टीम को एेसा कोई सबूत नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए कार्यालय से या सप्लायर से पौधे लिये हैं. किसानों द्वारा पौधे लेने से संबंधित किसी तरह का दस्तावेज नहीं होने की वजह से महालेखाकार ने स्ट्राॅबेरी की खेती को संदेहास्पद करार दिया है. किसानों द्वारा खुद 50 प्रतिशत पौधा खरीदने का भी कोई सबूत जांच के दौरान नहीं मिला.
महालेखाकार ने सरकार को भेजी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों का मंतव्य मांगा
गुमला डिस्ट्रिक्ट हर्टिकल्चर ऑफिस में नमूना जांच के दौरान पकड़ में आया मामला
वर्ष 2019-20 में गुमला में 24.71 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती की थी योजना
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए खेत तैयार होने का प्रमाणपत्र भी जांच के दौरान नहीं मिला
किसानों द्वारा पौधे लेने से संबंधित किसी तरह का दस्तावेज नहीं होने पर हुआ संदेह
चयन प्रक्रिया पर भी सवाल
रिपोर्ट में स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए किसानों की चयन प्रक्रिया पर भी सवाल उठाये गये हैं. स्ट्राॅबेरी की खेती के लिए किसानों का चुनाव करने के लिए समाचार पत्रों के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार करना था. लेकिन जांच के दौरान इसका सबूत नहीं मिला. किसानों के चयन में भी गड़बड़ी पायी गयी. योजना का लाभ वैसे किसानों को देना था, जिनके पास अपनी जमीन हो. स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए खेतों को तैयार करने के लिए 2.25 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से किसानों को अनुदान देना था.
खेत तैयार होने का प्रमाणपत्र भी जांच के दौरान नहीं मिला. जिन किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए चुने जाने का उल्लेख था, उसमें से ज्यादातर के आवेदन में जमीन का खाता-प्लॉट नंबर लिखा ही नहीं था. खेती की योजना से जुड़ा वीडियो व फोटो भी नहीं था. ऑडिट टीम ने जब इस संबंध में हर्टिकल्टर ऑफिसर से पूछा, तो उन्होंने कहा कि सब डिजिटल फाॅर्मेट में है. प्रिंट कर बाद में महालेखाकार कार्यालय को भेज दिया जायेगा.
Post by : Pritish Sahay