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झारखंड: पूर्व विधायक हरिहर नारायण प्रभाकर का रिम्स में निधन, स्पीकर रबीन्द्र नाथ महतो ने जताया शोक

झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने पूर्व विधायक हरिहर नारायण प्रभाकर के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं उनके परिजनों को इस वक्त सहनशक्ति प्रदान करे.

राजधनवार (गिरिडीह) रामकृष्ण: पूर्व विधायक हरिहर नारायण प्रभाकर का आज शनिवार की सुबह रांची के रिम्स में निधन हो गया. वे धनवार विधानसभा क्षेत्र से 1977, 1985 और 1990 में विधायक चुने गए थे. झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने उनके निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं उनके परिवारजनों को इस दु:ख की घड़ी में सहनशक्ति प्रदान करे. आपको बता दें कि सात बार इन्होंने चुनाव लड़ा था, लेकिन तीन बार इन्हें जीत हासिल हुई. धनवार विधानसभा की सियासत में उनकी सक्रियता भले ही तीस-पैतीस वर्ष ही रही, लेकिन अपनी राजनीतिक क्षमता, बेबाक वक्ता, प्रशासनिक पकड़ और सार्वजनिक उपलब्धता के लिए हमेशा याद किये जायेंगे.

दिवंगत आत्मा को ईश्वर दे शांति

झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रबीन्द्र नाथ महतो ने धनवार सीट से पूर्व विधायक रहे हरिहर नारायण प्रभाकर के निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने शोक जताते हुए कहा है कि ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे एवं उनके परिवारजनों को यह दु:ख सहने की शक्ति प्रदान करे. इनके निधन से इलाके में शोक की लहर है.

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तीन बार विधायक रहे हरिहर नारायण प्रभाकर

हरिहर नारायण प्रभाकर तीन बार विधायक रहे हैं. 1977, 1985 और 1990. धनवार विधानसभा क्षेत्र से ये चुनाव जीतते रहे थे. 1977 में धनवार विधानसभा सीट से ये पहली बार विधायक बने थे. संयुक्त बिहार में दो बार भारतीय जनता पार्टी के विधायक रहे और 1990 में कांग्रेस पार्टी से विधायक बने.

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सात बार लड़ चुके थे चुनाव

अलग-अलग पार्टियों से तीन बार धनवार विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हरिहर नारायण प्रभाकर हमारे बीच नहीं रहे. शनिवार सुबह इलाज के दौरान रिम्स रांची में 90 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अंतिम सांस ली. एमए, एलएलबी डिग्री धारी हरिहर नारायण प्रभाकर ने अपनी राजनीति की शुरुआत 1952 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के कार्यकर्ता के रूप में की थी. 1964 में वे जरीडीह हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए थे. 1967 में उन्होंने सीपीआई छोड़ दी. बाद में नौकरी भी छोड़ दी और 1969 में भारतीय जनसंघ में शामिल हो गये.

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1972 में लड़े थे पहली बार चुनाव

1972 में उन्हें गिरिडीह जिले में पार्टी के जिला संगठन सचिव के रूप में पूर्णकालिक राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का अवसर मिला. उसी वर्ष वे भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में धनवार विधान सभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन तीसरे स्थान पर रह गए. 1977 तक भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. प्रभाकर ने 1977 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और धनवार सीट से जीत हासिल की. हालांकि, 1980 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में वह हार गये. उन्होंने 1981 में गिरिडीह विधानसभा क्षेत्र में (भाजपा के टिकट पर) उपचुनाव लड़ा, लेकिन नया क्षेत्र और कथित रूप से स्थानीय संगठन में जातीय भेदभाव के कारण जीत हासिल नहीं हुई. फिर उन्होंने 1985 के चुनाव में (भाजपा के टिकट पर) 15,464 वोटों के साथ धनवार विधानसभा सीट जीत लिया.

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1990 में कांग्रेस से जीते

1990 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर फिर से धनवार विस सीट पर विजयी रहे. बाद में वे पुनः भाजपा में लौट आये और भाजपा की बिहार राज्य इकाई के सचिव बने. दिसंबर 2004 में उन्होंने भ्रष्टाचार से निपटने के पार्टी के तरीके से असंतुष्ट होकर भाजपा से इस्तीफा दे दिया. वे लोक जन शक्ति पार्टी में शामिल हो गये और 2005 के चुनावों में उन्होंने लोक जन शक्ति पार्टी के उम्मीदवार के रूप में धनवार सीट से चुनाव लड़ा और 5,192 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे. उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और धीरे-धीरे उनकी राजनीतिक सक्रियता भी कम होती गयी. धनवार विधानसभा की सियासत में उनकी सक्रियता भले ही तीस-पैतीस वर्ष ही रही, लेकिन अपनी राजनीतिक क्षमता, बेबाक वक्ता, प्रशासनिक पकड़ और सार्वजनिक उपलब्धता के लिए हमेशा याद किये जायेंगे.

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