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अर्श से फर्श पर गिरा HEC, शुरू होने के बाद से लगातार खराब होती गयी स्थिति, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

HEC अपनी कई सफलताओं को समेटने के बाद भी अब बंदी के कगार पर पहुंच गया है. यहां वर्तमान में उत्पादन ठप पड़ा है. कर्मियों का 10 माह और अधिकारियों का 14 माह का वेतन बकाया हो गया है. इसे लेकर कर्मी पिछले 85 दिनों से सड़क पर हैं.

रांची, राजेश झा : एशिया का सबसे बड़ा और भारत के मातृ उद्योग के रूप में विख्यात भारी अभियंत्रण निगम लिमटेड (HEC) अपनी कई सफलताओं को समेटने के बाद भी अब बंदी के कगार पर पहुंच गया है. यहां वर्तमान में उत्पादन ठप पड़ा है. कर्मियों का 10 माह और अधिकारियों का 14 माह का वेतन बकाया हो गया है. इसे लेकर कर्मी पिछले 85 दिनों से सड़क पर हैं. एचइसी की देनदारी 1200 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी है, जिस कारण वेंडर कच्चे माल की सप्लाई नहीं कर रहे हैं. कार्यादेश समय पर पूरा नहीं करने पर कंपनियां अब नये कार्यादेश का ऑर्डर नहीं दे रही हैं.

मालूम हो कि एचईसी की स्थापना वर्ष 1958 में हुई थी और इसका उदघाटन दीपावली के दिन 15 नंवबर 1963 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था. तब उन्होंने कहा था कि एचईसी देश के औद्योगिक विकास में मिल का पत्थर साबित होगा. श्री नेहरू ने ही इसे मातृ उद्योग का दर्जा भी दिया था. एचइसी में स्टील, माइनिंग, सीमेंट, पावर और ऑटोमिट एनर्जी के क्षेत्र में उपकरण का निर्माण किया जाना था.

तीन मुख्य प्लांट है‍ं

  • हेवी मशीन बिल्डिंग प्लांट (एचएमबीपी) : रूस के सहयोग से बना था. उस समय 470 मिलियन की लागत से बना था.

  • फाउंड्री फोर्ज प्लांट (एफएफपी) : चेक गणराज्य के सहयोग से बना था, जिसकी लागत 1090 मिलियन थी.

  • हेवी मशीन टूल्स प्लांट (एचएमटीपी) : चेक गणराज्य के सहयोग से बना था, जिसकी लागत 250 मिलियन थी. एचइसी के एक ही परिसर में फोर्जिंग, कास्टिंग, मशीनिंग और टूल्स प्लांट थे, जो उस समय एशिया की किसी भी कंपनी के पास एक जगह पर नहीं था.

HEC का ऐसे हो पाया निर्माण

ब्रिटिश हुकूमत से जब देश को आजादी मिली, तो भारत जैसे गरीब देश में उद्योगों की स्थापना की जरूरत महसूस हुई. जिससे औद्योगिकीकरण कर देश को विकास के मार्ग पर प्रशस्त किया जा सके. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रूस व चेक गणराज्य के साथ समझौता कर देश में भारी उद्योग लगाने की सहमति दी. उस समय एचइसी को भारत के दक्षिण राज्यों में स्थापित करने की सहमति बनी. लेकिन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसे एकीकृत बिहार में स्थापित करने का प्रस्ताव रखा और पं. नेहरू से इस मुद्दे पर मंत्रणा की. फिर तब के बिहार और अब के झारखंड में स्थापित करने की सहमति बनी.

इसे लेकर दक्षिण भारत के राज्यों और वर्तमान के झारखंड की मिट्टी को परखा गया और जांच करायी गयी कि इस उद्योग को किस जगह पर बेहतर ढंग से स्थापित और संचालित किया जा सकता है. तब डॉ राजेंद्र प्रसाद के विचारों से सहमत होते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू ने इसे झारखंड की राजधानी रांची में स्थापित करने का निर्णय लिया. क्योंकि इस क्षेत्र में भरपूर मात्रा में खनिज संपदा होने के साथ यहां की मिट्टी औद्योगिकीकरण के लिए सबसे अच्छी थी. उस समय बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ विधानचंद्र रॉय इसे अपने यहां लगाना चाहते थे. उस समय बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के अथक प्रयास से और तत्कालीन रेल मंत्री बाबू जगजीवन राम के त्वरित प्रयास से एचइसी का रांची में बनना संभव हो सका.

HEC के घाटे में जाने के कई कारण

HEC के अधिकारी बताते हैं कि एचईसी के घाटे में जाने के कई कारण रहे हैं. प्रारंभिक दौर में एचईसी उपकरणों का निर्माण तो करता था, लेकिन उसकी कीमत केंद्र सरकार तय करती थी. लिहाजा निगम को कभी भी लागत के अनुसार कीमत नहीं मिली. निगम में चार-चार सीएमडी बदले गये. यहीं नहीं, राजनीतिक लोगों को भी सरकार ने सीएमडी जैसे पदों पर बिछाया. इसमें केडी मालवीय का नाम लिया जा सकता है. एचइसी में आवश्यकता के मुताबिक कर्मियों की बहाली नहीं की गयी. कई अधिकारियों ने यहां परिवारवाद को जन्म दिया और नियुक्तियां करते गये. लिहाजा कर्मचारियों की संख्या 22 हजार तक पहुंच गयी. खर्च कम करने की नीति के तहत वर्ष 1992 में वीआरएस की स्कीम लागू की गयी. इससे भी एचइसी को नुकसान का सामना करना पड़ा.

सीएमडी जीपी पांडेय के कार्यकाल तक एचइसी की स्थिति खराब रही. अगस्त 2004 में एस विश्वास ने निगम की कमान संभाली, तो इसमें सुधार के संकेत मिलने लगे. केंद्र सरकार ने 21 सौ करोड़ का पुनर्वास पैकेज पास किया. राज्य सरकार ने एचइसी के लिए पैकेज देने की घोषणा की. मई 2007 में एचइसी के सीएमडी बने जीके पिल्लई. इसके बाद एचइसी वर्ष 2006-07 में 2.86 करोड़ लाभ में रहा. वहीं 2007-08 में 4.17 करोड़ लाभ, 2008-09 में 18.37 करोड़ लाभ, 2009-10 में 44.27 करोड़ लाभ, 2010-11 में 38.14 करोड़ लाभ, 2011-12 में 8.58 करोड़ लाभ, 2012-13 में 20.38 करोड़ लाभ और 2013-14 में 299.31 करोड़ लाभ में रहा. लेकिन इसके बाद एचइसी फिर घाटे में रहा. वर्ष 2014-15 में 241.68 करोड़ का घाटा, 2015-16 में 144.77 करोड़ का घाटा, 2016-17 में 82.27 करोड़ का घाटा, 2017-18 में 446 करोड़ का लाभ, 2018-19 में 93 करोड़ का घाटा और 2019-20 में 405.37 करोड़ का घाटा हुआ है.

2019 के बाद लगातार आयी गिरावट

वर्ष 2019 में भेल के सीएमडी नलीन सिंघल को एचइसी के सीएमडी को प्रभार दिया गया है. जिसके बाद एचइसी की स्थिति और खराब होती गयी. एचइसी के तीनों निदेशक निदेशक वित्त ए पांडा, निदेशक कार्मिक एमके सक्सेना व निदेशक विपणन सह उत्पादन डॉ राणा एस चक्रवर्ती के बीच समन्वय नहीं होने से एचइसी की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती गयी. वर्तमान में कर्मियों को 10 माह और अधिकारियों को 14 माह का वेतन बकाया है. अधिकारी पिछले 80 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं और कंपनी का उत्पादन लगभग ठप पड़ा हुआ है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान विदेश में उपकरणों की मांग

एचईसी में बने उपकरण की मांग देश के अलावा विदेशों में भी है. एचइसी ने युगोस्लाविया के लिए एल्यूमीनियम इलेक्ट्रोलिसर विथ एनोड मैकेनिज्म और चार रोल क्रशर का निर्माण किया. बुलगारिया, हंगरी व क्यूबा देश के लिए मेटालर्जिकल क्रेन, चार रोड क्रशर और ब्रिज री-लोडर क्रेन का निर्माण किया. श्रीलंका के लिए स्टील मेल्टिंग शॉप इक्यूपमेंट और कोक ओवेन इक्यूपमेंट का निर्माण किया. तुर्की के लिए कोक ओवेन इक्यूपमेंट व कंटींयूअस कास्टिंग इक्यूपमेंट का निर्माण किया. रूस के लिए कोक ओवेन इक्यूपमेंट, सिंटरिंग प्लांट इक्यूपमेंट, क्रशिंग एंड ग्राइडिंग इक्यूपमेंट, माइनिंग इक्यूपमेंट, फोर्ज्ड रोल एंड हॉलेज विंचेस, मिनी स्टील कास्टिंग, कोल चार्जिंग कार, डोर एक्सट्रेक्टिंग मशीन, ब्लास्ट फर्नेस इक्यूपमेंट व इलेक्ट्रोलायजर पोर्टस का निर्माण किया. वहीं बांग्लादेश के लिए सीमेंट प्लांट के लिए विभिन्न तरह के उपकरणों का निर्माण किया. जिसमें एचइसी को अरबों रुपये की विदेशी मुद्रा मिली.

समय-समय पर लगातार साबित की उपयोगिता

एचईसी ने अपने जीवन काल के 60 वर्षों में समय-समय पर अपनी उपयोगिता साबित की है. मुख्य रूप से देश के औद्योगिकरण के क्षेत्र में एचइसी ने अपनी महती भूमिका को निभाते हुए बोकारो, दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला, विशाखापत्तनम जैसे बड़े स्टील प्लांटों की स्थापना की. जिनकी भूमिका आज भी देश में स्टील उत्पादन में सर्वाधिक है. इसके अलावा इ सरो के लांचिंग पैड, पानी जहाज के उपकरण, सेना के लिए माउंटेन गन, बांग्लादेश युद्ध के समय में गन बैरल, टी-72 टैंक के लिए उपकरण, माइनिंग क्षेत्र में विभिन्न आकार के शावेल और क्रेन का निर्माण सफलतापूर्वक किया है.

प्लांटों का जीर्णोद्धार और बकाया का भुगतान हो : अभिजीत

एचईसी के पूर्व सीएमडी अभिजीत घोष ने कहा कि एचइसी की मशीनें 60 वर्ष पुरानी हो गयी हैं. एचइसी को भविष्य में चलाने के लिए केंद्र सरकार को आर्थिक रूप से मदद करनी होगी. एफएफपी और एचएमबीपी यूनिट को निजी कंपनियों से अपग्रेड कराना आवश्यक है. एचएमटीपी को बंद कर देना चाहिए. मैन पावर को घटाकर बैलेंस करना चाहिए, एचइसी की देनदारी को पूरी तरह समाप्त कर नये तरीके से करने की आवश्यकता है. मैनेजमेंट कंट्रोल बढ़िया हो और फैसले जल्द लिये जायें.

कुप्रबंधन से एचइसी की हुई दुर्गति : भवन सिंह

हटिया मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भवन सिंह ने कहा कि एचइसी कुप्रबंधन के कारण आज बंदी के कगार पर है. एचइसी पर बार-बार सीएमडी सहित अन्य निदेशकों को थोपा गया. वर्ष 2019 से भेल के सीएमडी नलीन सिंघल को एचइसी के सीएमडी का कार्यभार दिया गया. अपने कार्यकाल के दौरान वह महज चार बार ही एचइसी आये हैं. पिछले दिनों एचइसी के तीनों निदेशकों में तालमेल नहीं होने से एचइसी बंदी के द्वार पर आ गया. एचइसी ने राज्य सरकार को जमीन दी, लेकिन पैसे की बंदरबांट कर दी गयी.

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