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झारखंड : चंद्रयान के लिए लॉन्चिंग पैड बनानेवाले HEC कर्मी खुद पैसे के लिए है मोहताज

HEC कर्मचारी बच्चों की फीस जमा नहीं कर पा रहे हैं. निजी स्कूलों से नाम कटा कर सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने के लिए मजबूर हैं. कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. जेवर व जमीन बेच रहे हैं और कई बीमारियों से पीड़ित होते जा रहे हैं.

रांची, राजेश झा : HEC का उदघाटन दीपावली के दिन 15 नवंबर 1963 को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था. HEC अपने जीवन काल के 60 वर्षों में समय-समय पर अपनी उपयोगिता साबित करती रही है. मुख्य रूप से देश के औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में HEC ने अपनी महती भूमिका निभाते हुए बोकारो, दुर्गापुर, भिलाई, राउरकेला और विशाखापत्तनम जैसे बड़े स्टील प्लांटों की स्थापना की. जिनकी भूमिका आज भी देश में स्टील उत्पादन में सर्वाधिक है.

इसके अलावा इसरो के लिए तीन लॉन्चिंग पैड, इओटी क्रेन के अलावा अन्य उपकरण, पानी जहाज के उपकरण, सेना के लिए माउंटेन गन, बांग्लादेश युद्ध के समय में गन बैरल, टी-72 टैंक के लिए उपकरण, माइनिंग क्षेत्र की विभिन्न क्षमता के शॉवेल व ड्रैगलाइन का निर्माण किया है. दूसरी ओर वर्तमान में कंपनी के कर्मचारियों का 18 माह का वेतन बकाया हो गया. ऐसे में कर्मचारी बच्चों की फीस जमा नहीं कर पा रहे हैं. निजी स्कूलों से नाम कटा कर सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने के लिए मजबूर हैं. कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. जेवर व जमीन बेच रहे हैं और कई बीमारियों से पीड़ित होते जा रहे हैं.

ऐसे बिगड़ती गयी एचइसी की स्थिति

60 बसंत देख चुके एशिया के सबसे बड़े उद्योग एचइसी की स्थिति एक-दो माह में खराब नहीं हुई है. स्थापना काल से लेकर अभी तक एचइसी समय-समय पर अपनी उपयोगिता भी साबित करता रहा है. राउरकेला स्टील प्लांट, भिलाई स्टील प्लांट, बोकारो स्टील प्लांट व विशाखापत्तनम स्टील प्लांट, सबके निर्माण में एचइसी का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. यही नहीं, निगम ने कोयला उद्योग, रक्षा विभाग, रेलवे, स्पेस तथा रक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण उपकरणों का निर्माण किया है. बाहरी देशों के लिए भी एचइसी ने उपकरणों का निर्माण कर अरबों रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की. 70 के दशक तक एचइसी निर्बाध गति से चलती रही. हालांकि इस दौरान भी एचइसी को घाटे का सामना करना पड़ता था, लेकिन इसकी क्षतिपूर्ति केंद्र सरकार कर दिया करती थी. 70 से 80 का दशक एचइसी के लिए स्वर्णिम काल रहा.

इसी दौरान एचइसी दो बार मुनाफे में आयी. वर्ष 1984-85 में एचइसी ने आंशिक रूप से लाभ कमाया. तब इसके सीएमडी पीसी नियोगी थे. लेकिन इसके बाद से ही एचइसी की अवनति प्रारंभ हो गयी. वर्ष 1991 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने देश में आर्थिक उदारीकरण को लागू किया, तो एचइसी की कमर ही टूट गयी. ठीक इसके एक वर्ष बाद 1992 में पहली बार एचइसी रुग्ण उद्योगों में शामिल हो गयी और बीआइएफआर के अधीन चली गयी. तब इसके सीएमडी एके मिश्रा थे. बाद में कर्मचारियों का वेतन असामयिक हो गया और सभी प्रकार की सुविधाएं धीरे-धीरे बंद होने लगीं. चार वर्ष बाद 1996 में केंद्र सरकार ने 750 करोड़ का पैकेज दिया. तब यह बीआइएफआर से बाहर आ गया, लेकिन यह पैकेज भी एचइसी के लिए लाभदायक साबित नहीं हो सका.

वर्ष 1998 में एचइसी फिर बीआइएफआर के अधीन चली गयी और बीआइएफआर ने इसे अंतिम रूप से बंद करने की सिफारिश कर दी. इसके बाद मामला हाइकोर्ट में चला गया. इसके बाद केंद्र व राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद फिर एचइसी को पैकेज देने की सहमति बनी. अगस्त 2004 में एस विश्वास ने निगम की कमान संभाली तथा इसमें सुधार के संकेत मिलने लगे. केंद्र सरकार ने 21 सौ करोड़ का पुनर्वास पैकेज पास किया. राज्य सरकार ने एचइसी के लिए पैकेज देने की घोषणा की. मई 2007 में एचइसी के सीएमडी बने जीके पिल्लई. इसके बाद एचइसी वर्ष 2006-07 में 2.86 करोड़ लाभ में रही. वहीं 2007-08 में 4.17 करोड़ लाभ, 2008-09 में 18.37 करोड़ लाभ, 2009-10 में 44.27 करोड़ लाभ, 2010-11 में 38.14 करोड़ लाभ, 2011-12 में 8.58 करोड़ लाभ, 2012-13 में 20.38 करोड़ लाभ और 2013-14 में 299.31 करोड़ लाभ में रहा. इसके बाद एचइसी फिर घाटे में रही. वर्ष 2014-15 में 241.68 करोड़ का घाटा, 2015-16 में 144.77 करोड़ का घाटा, 2016-17 में 82.27 करोड़ का घाटा, 2017-18 में 446 करोड़ का लाभ, 2018-19 में 93 करोड़ का घाटा और 2019-20 में 405.37 करोड़ का घाटा हुआ है.

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मां का इलाज नहीं करा पाये डिप्टी मैनेजर शशि कुमार

एचइसी में डिप्टी मैनेजर पद पर कार्यरत शशि कुमार 18 माह के बकाया वेतन को लेकर परेशान हैं. वह कहते हैं कि आइआइटी हैदराबाद से एमटेक किया और वर्ष 2014 में एचइसी में योगदान दिया. इसरो के लिए एचइसी में बनाये गये कई उपकरणों में योगदान दिया. लेकिन कभी यह नहीं सोचा था कि ऐसा समय भी आयेगा. वेतन नहीं मिलने से मां का समुचित इलाज नहीं करा पाया और 04 मार्च 2022 को मां का देहांत हो गया. घर में पत्नी और एक बच्चा है. वेतन के अभाव में बच्चे का नामांकन सरकारी स्कूल में कराया है. 22.5 लाख रुपये लोन है. लेनदार हर दिन घर पर आता है. तनाव के कारण कई तरह की बीमारी हो गयी है. अब इतना पैसा भी नहीं है कि पेट्रोल भरा कर कार्यालय आना-जाना करें. इसलिए पैदल आते-जाते हैं. पत्नी का कुछ जेवर बेच चुके हैं और अब जमीन बेचने के लिए एग्रीमेंट करनेवाले हैं.

कार है, लेकिन पेट्रोल के पैसे नहीं : पुर्णेंदु मिश्रा

एचइसी में मैनेजर पद पर कार्यरत पुर्णेंदु मिश्रा ने कहा कि सस्त्र यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु से इंजीनियरिंग की. इसके बाद वर्ष 2011 में एचइसी में योगदान दिया. वेतन के अभाव में दोस्त और रिश्तेदार से कर्ज लिया है. बैंक से लोन लिया है, लेकिन समय पर किस्त नहीं दे पा रहे हैं. बच्चे की ट्यूशन फीस बकाया है. जिसे लेकर कई बार स्कूल से नोटिस आया है. पैसा के अभाव में किसी भी समारोह में नहीं जा रहे हैं. बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है. हर तरह की परेशानी है. कार है, लेकिन उसमें पेट्रोल भराने के लिए पैसे नहीं हैं. इसलिए अब कार्यालय पैदल ही आना-जाना कर रहे हैं. भविष्य में लेकर चिंतित है कि आगे क्या होगा और कैसे परिवार चलेगा. इसे लेकर अब बीमार भी रहने लगे हैं.

क्रेडिट कार्ड से कर्ज लिया है काफी परेशान हैं: सुरेंद्र सिंह

एचइसी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि आइआइटी रुड़की से मेकेनिकल इंजीनियर की डिग्री लेने के बाद वर्ष 2014 में एचइसी में योगदान दिया. दो-तीन नहीं, बल्कि पूरे 18 माह का वेतन बकाया है. ऐसे में रांची जैसे शहर में घर कैसे चला रहे है, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. क्रेडिट कार्ड से कर्ज लिया है. हर एक दिन बाद पैसा मांगने लोग घर आ जाते हैं. जैसे सरकार और एचइसी प्रबंधन आश्वासन देती है, वैसे ही हम भी आश्वासन देते हैं. क्वार्टर में लीकेज है. बारिश होने पर छत से पानी टपकता है. पैसा नहीं कि इसे दुरुस्त कराये. एचइसी में कोई सुनने वाला नहीं है. भविष्य को लेकर सशंकित हैं.

घरवालों को सुविधा से वंचित रख रहे हैं : पीके प्रकाश

एचइसी में मैनेजर पद पर कार्यरत पीके प्रकाश कहते हैं कि एनआइटी, पटना से पढ़ाई की है. जब एचइसी में योगदान दिया था, तो कई सुनहरे सपने देखे थे, जो अब चकनाचूर होते जा रहे हैं. वेतन के अभाव में अब खाने के लाले पड़ते जा रहे हैं. छह लोगों का परिवार है. दो बच्चे स्कूल जाते हैं. टयूशन फी बकाया है. सीपीएफ से लोन लेकर भोजन चल रहा था और वह भी अब समाप्त हो गया है. माता-पिता और बच्चों की मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रहे हैं. कार लोन पर लिये हैं. कई माह से किस्त भी नहीं दी है. तनाव के कारण अब ब्लड प्रेशर असमान्य होता गया है. इसके लिए दवाई लेनी शुरू कर दी है. अब जमीन बेचना ही विकल्प बच गया है.

केंद्र की उदासीनता से संकट में एचइसी

एचइसी को बचाने के मुद्दे पर हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन के महामंत्री राणा संग्राम ने कहा कि केंद्र सरकार की उदासीनता के कारण एचइसी बंदी के कगार पर पहुंच गयी है. कर्मियों का 18 माह का वेतन बकाया हो गया है. एचइसी के पास 1300 करोड़ रुपये से अधिक का कार्यादेश है, लेकिन कार्यशील पूंजी के अभाव में कारखाना बंद होने की स्थिति में पहुंच गया है. राज्य सरकार ने स्मार्ट सिटी के नाम पर सैकड़ों एकड़ जमीन सस्ती दर पर ले ली, लेकिन एचइसी को चलाने में सहयोग नहीं किया. भारी उद्योग मंत्रालय पिछले कई वर्षों से स्थायी सीएमडी की नियुक्ति नहीं कर रहा है, जिससे कार्य प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की मदद के बगैर एचइसी नहीं चल सकता है. एचइसी को केंद्र सरकार मशीनों के जीर्णोद्धार के लिए राशि उपलब्ध कराये, आवासीय परिसर की अनुपयोगी 200 एकड़ जमीन को बेचने की अनुमति दे. बैंक गारंटी फिर से चालू करे, आवासीय परिसर के जर्जर हो रहे क्वार्टरों को दीर्घकालीन लीज पर दे.

-राणा संग्राम, महामंत्री, हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन

आधुनिकीकरण के लिए केंद्र पैसा दे

एचइसी मजदूर संघ के महामंत्री रमाशंकर प्रसाद ने कहा कि एचइसी में स्थापना काल के बाद समयानुसार मशीनों का आधुनिकीकरण नहीं किया गया. जिससे यहां की मशीनों में दिन प्रतिदिन कार्य करने की क्षमता घटती गयी. एचइसी के पास वर्तमान में लगभग 1356 करोड़ का कार्यादेश है, जिसे पूरा करने के लिए लागत पूंजी की आवश्यकता है. आधुनिकीकरण के लिए केंद्र पैसा दे. एचइसी के कर्मचारी आज भी अपने कार्य को करने में उतने ही निपुण और दक्ष हैं, जितना कंपनी को स्थापित करने के समय थे. कर्मचारी आज भी पुरानी तकनीक एवं अपने निपुणता के अनुरूप किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए निपुण है. चंद्रयान -1 चंद्रयान -2 और चंद्रयान-3 का लॉन्चिंग पैड एचइसी के कर्मचारियों ने मिलकर पुरानी तकनीकी मशीनों से ही बनाया है. आज भी एचइसी में इसरो के लिए लॉन्चिंग पैड का कार्य प्रगति पर है. लेकिन केंद्र एचइसी को बचाने की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दे रहा है. अधिकारियों की तरफ से प्लान भारी उद्योग मंत्रालय को सौंपा गया है.

-रमाशंकर प्रसाद, महामंत्री, एचइसी मजदूर संघ

आज भी देश को एचइसी की जरूरत

एचइसी में जीएम पद पर कार्यरत सह एचइसी ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेमशंकर पासवान ने कहा कि आज भी देश को एचइसी की जरूरत है. चंद्रयान मिशन में एचइसी में अभी तक तीन तरह के लॉन्चिंग पैड का निर्माण किया गया है. वहीं अभी भी इसरो का कार्य एचइसी में चल रहा है, जो देश में एचइसी के अलावा दूसरी कंपनी नहीं कर सकती है. इसके अलावा इसरो के लिए कई तरह के उपकरण, पानी जहाज के लिए उपकरण, स्टील कंपनियों के स्पेयर्स पार्ट्स (जो दूसरी कंपनी नहीं बना सकती है), विभिन्न तरह के शॉवेल, रेल के लिए व्हील-एक्सल और सेना के लिए उपकरण व उसके स्पेयर्स पार्ट्स का निर्माण एचइसी में ही संभव है. उन्होंने कहा कि कई ऐसे उपकरण हैं, जिनकी एचइसी में कम राशि में आपूर्ति की जाती है. वहीं विदेश या अन्य कंपनियों से बनाने पर दो से तीन गुना अधिक पैसा कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है, इसलिए एचइसी की उपयोगिता आज भी है.

-प्रेमशंकर पासवान, जीएम सह अध्यक्ष, एचइसी ऑफिसर्स एसोसिएशन

मोमो बेच कर चला रहे हैं परिवार : कौशल किशोर

एचइसी में सप्लाई कर्मी वेतन के अभाव में सेक्टर टू मार्केट के पास मोमो बेच रहे हैं. कौशल किशोर ने बताया कि एचइसी में वर्ष 2006 में मशीन ऑपरेटर के पद पर योगदान दिया. वेतन के अभाव में पत्नी का जेवर बेच कर मोमो की दुकान पत्नी के साथ लगा कर किसी तरह छह लोगों का भरण-पोषण कर रहे हैं. दो बच्चे हटिया में निजी स्कूल में हैं. लेकिन फीस नहीं देने के कारण इस सत्र में नाम कटाना पड़ा. अब दोनों बच्चे सरकारी स्कूल में जाते हैं. लोन का किस्त नहीं दे पा रहे हैं. इसे लेकर हमेशा परेशान रहते हैं. एशिया का सबसे बड़ा उद्योग ऐसी स्थिति में आ जायेगा, यह कभी सोचा नहीं था.

टाइल्स लगाने का कार्य कर रहे हैं अशोक राम

एचइसी में सप्लाई कर्मी अशोक राम बताते हैं कि वर्ष 2007 में एचइसी में योगदान दिया. 80 हजार रुपये सीपीएफ से लोन लिया और वह खाने-पीने में खर्च हो गया. उसका किस्त भी नहीं दे पा रहे हैं. वेतन के अभाव में अब टाइल्स लगाने का काम करते हैं. वह भी बहुत मुश्किल से मिलता है. पत्नी भी काम करती है. जगन्नाथपुर स्थित एक निजी स्कूल में बच्चे का नामांकन कराया था. जहां फीस नहीं देने पर निकाल दिया गया.

12 डिसमिल जमीन बेच कर जिंदा हैं : रघुवीर

एचइसी में सप्लाई कर्मी रघुवीर महतो कहते हैं – वेतन नहीं मिलने से परेशान हैं. एक लाख रुपये का कर्ज है. कहां से चुकायेंगे, यह समझ नहीं आता है. बसारगढ़ में पुस्तैनी 12 डिसमिल जमीन पिछले दिनों बेची है, तो घर-परिवार चल रहा है. शरीर में कई तरह की बीमारी हो गयी है. समुचित इलाज नहीं कराने से बीमारी बढ़ती जा रही है. वेतन के साथ-साथ एचइसी ने कर्मियों का इलाज भी बंद कर दिया है. एचइसी ने इएसआइ को पैसा भुगतान नहीं किया है. इस कारण समुचित इलाज भी नहीं करा रहे हैं.

बच्चियों का नामांकन नहीं कराया : यशराज

एचइसी में फीटर का कार्य करनेवाले सप्लाई कर्मी लाल यशराज नाथ शाहदेव कहते हैं कि पैसे के अभाव में मानसिक परेशानी बढ़ गयी है. पांच लोगों का परिवार चलाना मुश्किल होता जा रहा है. दो बेटियों का नामांकन नहीं करा पा रहे हैं. एक पीजी में है और दूसरा ग्रेजुएशन में. एक बेटा है, जो हटिया में एक निजी स्कूल में है और उसकी फीस भी बकाया है. दो लाख से अधिक का कर्ज हो गया है. एचइसी की स्थिति देखते हुए कोई कर्ज देने के लिए भी तैयार नहीं है. अब जमीन बेचने की नौबत आ गयी है.

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