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नॉन-स्कूलिंग कितना सही? जानिए इसके फायदे और नुकसान

नॉन-स्कूलिंग यानी फ्लाइंग कैंडिडेट का ट्रेंड शहर के कई मान्यता प्राप्त स्कूलों में दिख रहा है. खासकर शहरी क्षेत्र के बाहर चल रहे स्कूलों में फ्लाइंग कैंडिडेट का एडमिशन लिया जा रहा है. इन स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति को दिखाने के लिए अलग से अटेंडेंस रजिस्टर तैयार किया जाता है.

शहर के कई निजी स्कूलों में इन दिनों नन स्कूलिंग कैंडिडेट का ट्रेंड दिख रहा है. यानी विद्यार्थियों को सिर्फ नाम के लिए इन स्कूलों में एडमिशन मिल जाता है. पढ़ाई के लिए उन्हें स्कूल जाने की जरूरत नहीं पड़ती. इसका कारण है स्कूली पढ़ाई के साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी. अधिकतर विद्यार्थी 10वीं बोर्ड परीक्षा के बाद जेइइ और यूजी नीट की तैयारी में जुट जाते हैं. कई विद्यार्थियों को आठवीं-नौवीं से ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग में एडमिशन दिला दिया जाता है. छात्र साल में एक बार फाइनल परीक्षा देने के लिए अपने स्कूल जाते हैं.

एक साथ पूरी फीस देने के लिए तैयार हैं अभिभावक

एक निजी स्कूल के पूर्व प्राचार्य ने बताया कि जेइइ, नीट, क्लैट, सीए-सीएस सहित विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन के लिए अभिभावक अपने बच्चों को दूसरे राज्यों में कोचिंग के लिए भेज देते है. बच्चे की नॉन-स्कूलिंग के एवज में एक साथ पूरी फीस चुकाने तक को तैयार हो जाते हैं. दूसरी तरफ स्कूल प्रबंधन को भी लगता है कि इन छात्रों की सफलता से उनके स्कूल की ब्रांडिंग होगी. दूसरी तरफ सीबीएसइ और आइसीएसइ क्लासरूम स्टडी के लिए विद्यार्थियों को लगातार प्रेरित कर रहे हैं.

राजधानी से बाहर संचालित स्कूलों में हो रहा फ्लाइंग कैंडिडेट का नामांकन

एक प्राचार्य ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि नॉन-स्कूलिंग यानी फ्लाइंग कैंडिडेट का ट्रेंड शहर के कई मान्यता प्राप्त स्कूलों में दिख रहा है. खासकर शहरी क्षेत्र के बाहर चल रहे स्कूलों में फ्लाइंग कैंडिडेट का एडमिशन लिया जा रहा है. इन स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति को दिखाने के लिए अलग से अटेंडेंस रजिस्टर तैयार किया जाता है. इस रजिस्टर में नियमित उपस्थिति वाले विद्यार्थियों के साथ फ्लाइंग कैंडिडेट की उपस्थिति नियमित रूप से दर्ज की जाती है. प्राचार्य के साथ-साथ क्लास टीचर को भी फ्लाइंग कैंडिडेट की पूरी जानकारी रहती है.

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10वीं परीक्षा के बाद ही शुरू हो जाता है पैरवी का खेल

गुरुनानक स्कूल के पूर्व प्राचार्य डॉ मनोहर लाल ने बताया कि अभिभावक 10वीं बोर्ड के रिजल्ट के बाद से ही फ्लाइंग कैंडिडेट की पैरवी शुरू कर देते हैं. इस दौरान अभिभावक रिजल्ट के आधार पर बच्चे का भविष्य तय करते हैं. प्राचार्य को बच्चे की शैक्षणिक उपलब्धि का लालच दिया जाता है. अभिभावक एक साथ 11वीं-12वीं की पूरी फीस देने को तैयार रहते हैं. साथ ही स्कूल की मूलभूत सुविधाओं में सहयोग देने की भी बात कहते हैं. यही कारण है कि कुछ स्कूल नॉन-स्कूलिंग को बढ़ावा दे रहे हैं.

नॉन-स्कूलिंग एक छात्र ने बतायी परेशानी

2023 में जेइइ मेन और एडवांस के झारखंड टॉपर रहे आयुष कुमार सिंह भी नॉन-स्कूलिंग छात्र रहे हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआत से ही उनका लक्ष्य जेइइ एडवांस था. स्कूल में दाखिला ले लिया, लेकिन नियमित स्कूल नहीं जाता था. उन्होंने कहा कि नॉन-स्कूलिंग का एक मात्र फायदा समय की बचत है, लेकिन नुकसान ज्यादा. स्कूल में अनुशासित दिनचर्या तय हो जाती है. प्रत्येक विषय को रूटीन के हिसाब से पढ़ते हैं, जो घर में रहकर संभव नहीं हो पाता. मैंने खुद ही किसी एक विषय को चुन उसकी पढ़ाई की. एक-एक कर सभी सब्जेक्ट के सिलेबस को प्रतियोगिता परीक्षा के लिए हिसाब पूरा किया. स्कूल टेस्ट की जगह प्रैक्टिस पेपर हल करता था. इसी बीच अचानक स्कूल से परीक्षा की सूचना मिल जाती. उस स्थिति स्कूल सिलेबस के रिवीजन में परेशानी होती थी. अतिरिक्त विषय में अच्छे अंक नहीं मिले.

शैक्षणिक नुकसान तय

करियर काउंसेलर विकास कुमार का कहना है कि नॉन-स्कूलिंग विद्यार्थियों का शैक्षणिक सत्र नियमित उपस्थिति वाले विद्यार्थियों से कम होता है. ये बच्चे पूरी तरह स्कूल से ड्राॅप आउट की स्थिति में होते हैं. उनकी कोई अनुशासित दिनचर्या नहीं होती है. यही कारण है कि सिलेबस की पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं. हालांकि 10 फीसदी बच्चे ही ऐसे हाेते हैं, जो नॉन-स्कूलिंग को प्राथमिकता दे रहे हैं.

ऐसे चिह्नित होंगे फ्लाइंग कैंडिडेट

  • सीबीएसइ व आइसीएसइ बोर्ड के प्राचार्यों को प्रत्येक 60 दिन की उपस्थिति का रिकॉर्ड क्षेत्रीय कार्यालय को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है.

  • स्कूल के प्रैक्टिकल एग्जाम के प्रत्येक बैच की फोटोग्राफी कर बोर्ड को उपलब्ध करानी होगी

  • प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थियों की ग्रुप फोटोग्राफी क्षेत्रीय कार्यालय को भेजनी होगी

  • हर हाल में 75% नियमित उपस्थिति, 210 से 200 दिन की क्लास में 160 दिन से अधिक उपस्थिति जरूरी

नकेल कसने की तैयारी में सीबीएसइ-आइसीएसइ

इधर, सीबीएसइ और आइसीएसइ बोर्ड सत्र-2023 से नॉन-स्कूलिंग अभ्यर्थियों पर नकेल कसने की तैयारी में जुट गये हैं. अब क्लासरूम स्टडी के तहत 75 फीसदी उपस्थिति हर हाल में पूरी करनी होगी. उपस्थिति पूरी न होने पर विद्यार्थियों को स्कूल की परीक्षाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं मिलेगी. साथ ही रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया से भी विद्यार्थियों को वंचित कर दिया जायेगा. इस संबंध में बोर्ड ने मान्यता प्राप्त सभी स्कूलों को दिशा-निर्देश दे दिया है. नोटिफिकेशन में कहा गया है कि प्राचार्य किसी भी रूप में नॉन-स्कूलिंग कैंडिडेट को बढ़ावा न दें. साथ ही विद्यार्थियों की उपस्थिति का रिकॉर्ड समय-समय पर क्षेत्रीय कार्यालय को भेजें.

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