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जलनिधि घोटाला : दोगुनी कीमत का फर्जी बिल बना निकाले पैसे

जलनिधि (पायलट प्रोजेक्ट) घोटाले में शामिल अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिल कर बाजार से दोगुनी कीमत पर सामग्री की खरीद का फर्जी बिल बनाया था. इन फर्जी बिलों के सहारे ट्रेजरी से पैसों की निकासी की गयी

शकील अख्तर, रांची : जलनिधि (पायलट प्रोजेक्ट) घोटाले में शामिल अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिल कर बाजार से दोगुनी कीमत पर सामग्री की खरीद का फर्जी बिल बनाया था. इन फर्जी बिलों के सहारे ट्रेजरी से पैसों की निकासी की गयी. नमूना जांच के दौरान मिले इन तथ्यों की गंभीरता को देखते हुए पाकुड़ के तत्कालीन उपायुक्त ने राज्यस्तरीय टीम गठित कर योजना की जांच कराने और दोषी पाये गये अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा की थी. हालांकि नवंबर-2018 में सरकार को भेजी इस रिपोर्ट के आलोक में न तो जांच हुई और न ही कार्रवाई.

केस-1

लिट्टीपाड़ा के ग्राम बड़ा सरसा में योजना संख्या-25/2016-17 की जांच हुई. इसमें 250 फीट के बदले 150 फीट बोर मिला. वहीं 10 हजार रुपये के काम के बदले मापी पुस्तिका में 34.79 हजार का काम दिखाया गया. जिस समरसेबल पंप का मूल्य 22 हजार रुपये था, उसके लिए 50 हजार रुपये का बिल बनाया गया. 70 फीट की जगह 40 फीट केसिंग का इस्तेमाल किया गया.

Post by : Pritish Sahayहिरणपुर प्रखंड की गोपाल पहाड़ी पंचायत के बागशीशी ग्राम में डीप बोरिंग की जांच की गयी. योजना संख्या 17/2016-17 की जांच में 150 एमएम डाया बोर होल का वास्तविक काम 82.56 हजार रुपये का किया गया था. हालांकि मापी पुस्तिका में इतने काम के लिए 1.04 लाख रुपये खर्च होने का उल्लेख किया गया था. प्राक्कलन में 200 एमएम की जाली लगाने का प्रावधान था. लेकिन नहीं लगाया गया.

केस-3

पकुड़िया प्रखंड के बीच पहाड़ी पंचायत के करमानाला गांव में डीप बोरिंग की जांच हुई. योजना संख्या -01/2016-17 की जांच में पाया गया कि 150 एमएम डाया बोर होल के लिए वास्तविक खर्च 33.54 हजार के बदले मापी पुस्तिका में 83.81 हजार लिखा गया. 36 मीटर समरसेबल पाइप इस्तेमाल किया गया. हालांकि इसके बदल 100 मीटर का इस्तेमाल दिखाया. इस योजना में 70.87 हजार रुपये का फर्जी बिल का इस्तेमाल किया गया

केस-4

महेशपुर प्रखंड की छक्कुधारा ग्राम पंचायत में जांच की गयी. योजना संख्या-08/2016-17 में ड्रिलिंग के 56.45 हजार रुपये के वास्तविक काम के बदले मापी पुस्तिका में 1.04 लाख रुपये का काम दर्ज किया गया. एमएस केसिंग के बदले पीवीसी पाइप का इस्तेमाल किया गया. मोटर को 60 मीटर की गहराई पर रखा गया. लेकिन 100 मीटर पर रखने का दावा करते हुए 81.17 हजार रुपये का खर्च दिखाया गया.

22 हजार के समरसेेबल पंप का 50 हजार का फर्जी बिल : सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने जल निधि योजना लागू की है. इस योजना के तहत डीप बोरिंग करने के साथ ही परकूलेशन टैंक का निर्माण कराना है. वित्तीय वर्ष 2016-17 में योजना के क्रियान्वयन के दौरान गड़बड़ी की शिकायत मिलने के बाद तत्कालीन डीसी ने योजना की नमूना जांच करायी. जांच के दौरान जल निधि योजना में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी करने और फर्जी बिल बना कर ट्रेजरी से पैसों की निकासी करने का पता चला. अधिकारियों और ठेकेदारों ने 22 हजार के समरसेबल के लिए 50 हजार का बिल बनाया.

दोषी भूमि संरक्षण अधिकारियों व इंजीनियरों पर कार्रवाई नहीं :कई स्थानों पर योजना का इस्तेमाल सिंचाई के बदले घरों में पानी पहुंचाने के लिए किया गया. नमूना जांच में मिले तथ्यों के आधार पर तत्कालीन डीसी दिलीप झा ने नवंबर-2018 में सरकार को रिपोर्ट भेजी. इसमें गलत प्राक्कलन बनाने और भुगतान करने के साथ ही फर्जी बिल का इस्तेमाल करने के मामले में दोषी पाये गये अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की.

उन्होंने नमूना जांच के दौरान मिले तथ्यों के आधार पर तत्कालीन जिला भूमि संरक्षण पदाधिकारी दिलीप कुमार गुप्ता, भूमि संरक्षण पदाधिकारी रामानंद प्रसाद, पर्यवेक्षक और मापी पुस्तिका में गलत ब्योरा दर्ज करनेवाले इंजीनियरों को प्रथमदृष्टया दोषी करार दिया. साथ ही राज्यस्तरीय टीम बनाकर योजना की विस्तृत जांच कराने की अनुशंसा की. हालांकि इस मामले में अब तक किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है.

Post by : Pritish Sahay

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