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Exclusive: नक्सलियों का आधार खत्म, साइबर क्राइम का अब राज्य से करेंगे खात्मा: झारखंड ADG व IG

नक्सलवाद की चुनौतियां, साइबर क्राइम, कम्युनिटी पुलिसिंग, पुलिस ट्रेनिंग से लेकर भविष्य की योजनाओं और लंबित मामलों को लेकर की जा रही कार्रवाई पर विस्तार से चर्चा की

एडीजी अभियान संजय आनंदराव लाठकर व आइजी अभियान अमोल वीणुकांत होमकर प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित संवाद कार्यक्रम में गुरुवार को शामिल हुए. बूढ़ा पहाड़ में नक्सलियों के खिलाफ अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले दोनों अधिकारियों ने झारखंड पुलिसिंग पर अपनी बातें रखीं.

नक्सलवाद की चुनौतियां, साइबर क्राइम, कम्युनिटी पुलिसिंग, पुलिस ट्रेनिंग से लेकर भविष्य की योजनाओं और लंबित मामलों को लेकर की जा रही कार्रवाई पर विस्तार से चर्चा की. पुलिस अफसरों ने कहा कि झारखंड की नक्सल आत्मसमर्पण नीति और केंद्रीय बलों के साथ समन्वय को देश भर में सराहा जा रहा है. झारखंड में पुलिसिंग को और बेहतर करने की कार्ययोजना भी उन्होंने अपने विजन बताये.

Q किसी राज्य की स्थिति का चेहरा वहां की पुलिस होती है, मुंबई व दिल्ली जैसे विकसित राज्यों की तुलना में झारखंड पुलिस को आप कहां देखते हैं?

एडीजी का जवाब : देखिए, जब हम पुलिस व्यवस्था की बात करते हैं, तो हमें हमारे लेगसी को भी देखना चाहिए कि किस व्यवस्था के तहत हमने प्रारंभ किया था और कहां हम हैं. आज राज्य गठन के 22 साल के बाद हम देखते हैं कि झारखंड पुलिस ने जो मुकाम हासिल किया है, वाकई वह काबिले तारीफ है.

हम इसकी तुलना महाराष्ट्र या दिल्ली पुलिस से करेंगे, तो यह उचित नहीं होगा. हमें बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल आदि से तुलना करना है. तुलना पर हम देखते कि झारखंड पुलिस आनेवाले समय में बेहतर प्रदर्शन करेगी.

Q राज्य बने 22 साल गुजर गये. पहले नक्सली और अब साइबर अपराधी राज्य की छवि को धूमिल कर रहे हैं. क्या साइबर अपराधियों के खिलाफ भी कोई अभियान चला कर कार्रवाई होगी?

एडीजी का जवाब : पूरे देश को पता है कि हमारे यहां साइबर अपराधियों का केंद्र जामताड़ा था. लेकिन वर्ष 2017 के बाद से झारखंड पुलिस ने जो कार्रवाई साइबर अपराधियों के खिलाफ की है, उससे स्थिति बदली है. केंद्रीय व अन्य एजेंसियों की भी सहायता ली गयी है. राज्य में छह साइबर थानों के अलावा सीआइडी का भी रांची में एक साइबर थाना स्थापित किया गया है. हमलोग प्रोफेशनल तौर पर मामले में कार्रवाई कर रहे हैं.

आज स्थिति यह है कि साइबर अपराधी जामताड़ा छोड़ भाग कर दूसरे जिलों व सीमावर्ती क्षेत्रों में जा रहे हैं. देश में मेवात (राजस्थान) जैसा दूसरा सेंटर खुल गया है. अब आपको जामताड़ा में पहले जैसा साइबर अपराध नहीं दिखेगा, लेकिन अब भी यह चुनौती है. हम लोग स्टेप उठाये हैं. साइबर थाना के कर्मियों को लगातार प्रशिक्षित कर रहे हैं. साइबर लेबोरेटरी का निर्माण कराया गया है.

इंजीनियरिंग कर पुलिस विभाग में आये कर्मियों को भी साइबर अपराध उन्मूलन में लगाया गया है. जामताड़ा से साइबर अपराधी बगल के जिलों गिरिडीह, देवघर, आसनसोल, बिहार के गया व नालंदा में शिफ्ट हुए हैं. नक्सल की तरह साइबर अपराधी हमारे रडार पर है. साइबर अपराध पर कुछ हद तक काबू पाया गया है. आने वाले समय में हमलोग साइबर अपराध को खत्म करने की दिशा में कार्रवाई करेंगे.

Q नक्सली सहित अन्य मामलों को लेकर अक्सर चर्चा में रहनेवाला पुलिस मुख्यालय पिछले ढाई साल से शांत है. कुछ बदला है या बदलने की कोशिश का परिणाम है?

आइजी का जवाब : डीजीपी के निर्देश पर काम हो रहा है. हमारा काम ज्यादा बोले, यह हमारे लिए महत्व रखता है. इसके परिणाम भी सामने हैं. दिल्ली में आयोजित डीजी- आइजी कांफ्रेंस में झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस और सीआरपीएफ के द्वारा की गयी कार्रवाई की सराहना की गयी. इसे एक सक्सेस स्टोरी के रूप में देखा जा रहा है. क्योंकि इसकी सराहना देश के स्तर पर हो रही है.

धनबाद के जज की हत्या मामले की जांच के लिए बनी एसआइटी के आप प्रमुख रहे हैं. ऐसे हाइप्रोफाइल मामलों की जांच में किन चुनौतियों से गुजरना पड़ता है. ऐसे मामले में कनीय पुलिसकर्मियों को कुछ संदेश देना चाहेंगे?

एडीजी का जवाब : एक सप्ताह के लिए हमने एसआइटी को हेड किया. धनबाद के तत्कालीन जज साहब की मृत्यु की जांच कर रहा था. जब भी कोई हाइप्रोफाइल केस होता है, तो पुलिस से लोगों की उम्मीद ज्यादा रहती है. जिस प्रोफेशन से पीड़ित जुड़ा रहता है, उस प्रोफेशन के भी लोगों का अपेक्षाएं होती है. चूकि वह जुडिशियरी के अफसर थे.

इसलिए निश्चित तौर पर जांच कर जल्द से जल्द यह सामने लाना था कि उनकी मौत कैसे और किन परिस्थितियों हुई. इसमें हमने सात दिन में अलग-अलग टीम बना कर साइंटिफिक ढंग से अनुसंधान शुरू किया. सात दिनों की जांच में झारखंड पुलिस ने जो परिणाम सामने लाया, उसकी जांच केंद्रीय एजेंसी सीबीआइ के पास जाने के बाद भी हमारे किसी भी अनुसंधान के बिंदु पर सवाल नहीं उठाया गया.

बल्कि सीबीआइ के उच्च अधिकारियों ने यह कहा कि आपलोगों ने इतने कम समय में जांच में यहा पहुंच गये हैं. फिर हमारी जांच की दिशा में ही आगे जाकर सीबीआइ ने चार्जशीट किया. सीबीआइ का पूरा चार्जशीट आप देखेंगे, तो पाएंगे कि हमने 90 प्रतिशत से ज्यादा साक्ष्य एक सप्ताह में एकत्रित कर लिया था. विशेषकर हमारी टीम द्वारा एकत्र किये गये किसी भी साइंटिफिक एविडेंस को किसी स्तर पर नकारा नहीं गया. यह हमारी पूरी टीम की सफलता थी.

इसमें सीआइडी, आइजी बोकारो, डीआइजी बोकारो, एसएसपी धनबाद, एसपी से लेकर कांस्टेबल तक जो भी टीम के सदस्य थे. सभी ने मिल कर तत्काल कार्रवाई की. पेट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी को देख कर आरोपियों को 24 घंटे में पकड़ा गया. फिर हममें विश्वास जगा. ऐसे हाइप्रोफाइल के मामले में अगर हम दब जाएंगे, तो फिर परफॉर्म नहीं कर पायेंगे, लेकिन हमें खुशी है कि झारखंड पुलिस किसी दबाव में नहीं आयी और प्रोफेशनल ढंग से काम किया.

Q झारखंड पुलिस में पांच या दस साल से भी लंबित मामलों का निष्पादन अभियान चला कर हुआ, काफी मामलों का निपटारा भी हुआ. क्या वजह है मामलों के लंबित होने का ?

एडीजी का जवाब : हमारी जांच की एक प्रक्रिया है. हमें बिहार पुलिस की परंपरा प्राप्त हुई है. जांच के दौरान इंस्पेक्टर, डीएसपी, एसपी, जोनल डीआइजी, आइजी और सीआइडी के स्तर पर अलग-अलग समीक्षा होती है. संबंधित अधिकारी अपने स्तर से जांच के बिंदु पर दिशा-निर्देश देते हैं. इन निर्देशों का अनुपालन करने में कई स्तर पर तेजी से काम नहीं हुआ. मामले में मुख्य सचिव व डीजीपी ने मेरी अध्यक्षता में लंबित मामलों के निष्पादन के लिए एक टीम बनायी.

कई मामले प्रभार नहीं देने और कई के पास 50 से ज्यादा केस की जांच लंबित थे. हमने पद के अनुसार केस का बंटवारा किया. धनबाद जैसे जिले में हमले दूसरे राज्यों में जाने के लिए कुल 12 टीम बनायी. वह टीम जिस राज्य में गयी, वहां दूसरे अनुसंधानकर्ता के केस की जांच कर रिपोर्ट दी. इससे कम समय में हमलोगों को यह सफलता हाथ लगी.

सीएम की अध्यक्षता में 20 जनवरी को हुई समीक्षा में यह बात सामने आयी कि मार्च के बाद अब चार साल पुराने मामलों के निपटारे की कार्रवाई होगी. यह कवायद तब तक जारी रहेगी जब तक पुलिस मैनुअल के मुताबिक तय समय में जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती. इससे आइओ के पास केस कम होगा और जांच बेहतर ढंग से समय पर पूरा होगा.

Q नक्सली लंबे समय से पुलिस को चुनौती दे रहे. उनके खिलाफ पुलिस का अभियान लंबे समय से जारी है. अब भी कई बड़े नक्सली बचे हुए हैं?

एडीजी व आइजी का जवाब : पिछले तीन साल में पुलिस ने 1375 नक्सलियों और उग्रवादियों को गिरफ्तार किया. इसमें एक करोड़ का इनामी नक्सली प्रशांत बोस भी शामिल है. इन नक्सलियों पर 2.63 करोड़ रुपये इनाम घोषित थे. इस दौरान 57 नक्सलियों और उग्रवादियों ने सरेंडर किया है. इसमें बूढ़ा पहाड़ का इंचार्ज बिमल भी शामिल है. इस तरह 1.31 करोड़ के इनामी नक्सलियों ने सरेंडर किया, जबकि 33 नक्सली इस अवधि में एनकाउंटर में मारे गये.

नक्सली बुद्धेश्वर का मारा जाना काफी महत्वपूर्ण था. इसी तरह पीएलएफआइ के उग्रवादी जीदन गुड़िया का मारा जाना काफी महत्वपूर्ण रहा था, क्योंकि यह पीएलएफआइ के लिए डेथ ब्लो था. इस कार्रवाई से नक्सलियों और उग्रवादियों की कमर टूट गयी. इसी तरह रूपेश कुमार सिंह खुद को पत्रकार बताता था, लेकिन वास्तविक रूप से वह स्पेशल एरिया कमेटी मेंबर था.

वह पंजाब से लेकर दिल्ली, हरियाणा और बंगाल सहित अन्य इलाके में नक्सलियों की गतिविधियों को कंट्रोल करता था. इसलिए उसकी गिरफ्तारी भी पुलिस के लिए काफी महत्वपूर्ण रही थी. रूपेश कुमार सिंह के खिलाफ इंटेलीजेंस एजेंसी के पास पहले से जानकारी थी. उसके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई की गयी है. वह पहले भी बिहार से जेल जा चुका है. ऐसी कार्रवाई से नक्सलियों का विभिन्न इलाके में आधार खत्म हो गया है.

शेष बचे नक्सलियों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है. जिस तरीके से कार्रवाई की जा रही है, उससे आने वाले दिन में वे या तो सरेंडर करेंगे या एनकाउंटर के दौरान मारे जायेंगे या फिर गिरफ्तार होंगे. कोल्हान इलाके में बचे शीर्ष नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जारी है. वहां नक्सली भी जानते हैं कि अब उन्हें संगठन चलाना मुश्किल है. टिके रहना मुश्किल है. उनके पास करो या मरो की स्थिति है.

इसलिए वे अपने सारे संसाधन का प्रयोग पुलिस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कर रहे हैं. पिछले तीन वर्षों में कई बड़े नक्सलियों ने सरेंडर किया है. सरेंडर करने वाले कई नक्सली अपने- अपने क्षेत्र में संगठन के बैक बोन थे. महाराज प्रमाणिक, अमन गंझू, सुरेश मुंडा, बिमल के सरेंडर करने से पुलिस को कई जानकारियां मिली.

महाराज और अमन की निशानदेही पर पुलिस ने भारी मात्रा में हथियार, गोली और आइइडी बरामद किये. झारखंड सरकार की सरेंडर पॉलिसी देश की सबसे अच्छी सरेंडर पॉलिसी है. क्योंकि सरेंडर करने के बाद उनके और उनके परिवार की सुरक्षा से लेकर पढ़ाई, शादी, पुनर्वास, प्रशिक्षण सहित अन्य लाभ दिये जाते हैं. लीगल सलाह भी दी जाती है. सरेंडर करने वाले ओपेन जेल में अपने परिवार के साथ रह सकते हैं. इसका लाभ पुलिस को मिल रहा है.

पुलिस नक्सलियों के गांव जाकर उनके परिवार से मिल कर उन्हें सरेंडर पॉलिसी की जानकारी दी जा रही है. स्थानीय भाषा में भी सरेंडर पॉलिसी को प्रचारित किया जा रहा है. नक्सलियों के खिलाफ चौतरफा कार्रवाई से नक्सलियों को पता है कि या तो अब वे मारे जायेंगे या पकड़े जायेंगे. इसलिए आने वाले दिनों में ज्यादा से ज्यादा नक्सली सरेंडर कर सकते हैं. इस पर काम हो रहा है.

Q झारखंड के विकास में सबसे बड़ी बाधा नक्सल है. अब भी इनकी धमक विकास कार्यों व खनन क्षेत्रों में है. इनके आर्थिक स्रोत पर अब तक हुई कार्रवाई नाकाफी लगती है. क्या कहेंगे?

आइजी का जवाब : विकास से संबंधित कुछ कार्यों के दौरान नक्सलियों ने आगजनी की घटना को अंजाम दिया है, लेकिन झारखंड में पिछले 10 या पांच वर्ष के आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस तरह से घटनाओं में लगातार गिरावट आयी है. पहले साल में सैकड़ों घटनाएं होती थी, लेकिन अब एक- दो घटनाएं होती है. नक्सली जैसे जैसे खात्मे की ओर जा रहे है, उन्हें लेवी भी नहीं मिल रहा है.

पैसे पहुंचानेवाले ठेकेदार पर भी कार्रवाई होने से नक्सलियों को फंड अर्थात लेवी नहीं मिल रहे हैं. नक्सलियों की वर्तमान कार्रवाई एक्ट ऑफ डेसपरेशन का है. घटना को अंजाम देने के लिए पीछे लेवी वसूलना है. इसलिए जो घटनाएं हो रही है. उस पर कार्रवाई की जा रही है. अगर लातेहार में कोई घटना होती है. तब पुलिस को भी यह पता है कि वह कोई बड़ा नक्सली दस्ता नहीं है. घटना के पीछे का उद्देश्य है डर या अपनी उपस्थित दर्ज करा कर पैसे वसूलना.

Q एक रोचक बात है कि जब आप गिरिडीह में एसपी थे, तब नक्सलियों के बरामद कैंप आदि लेकर एफआइआर हुआ था, एडीजी लॉ एंड आर्डर के तौर पर जब लंबित मामलों की आपने समीक्षा की तब पता चला वह मामला भी लंबित है. क्या कहेंगे?

एडीजी का जवाब : जिस समय केस हुआ था, उस समय मैं गिरिडीह का एसपी था. उस वक्त बंकर से कई दस्तावेज, हथियार और विस्फोटक आदि बरामद हुए थे. पुलिस पदाधिकारी के बयान पर मामला उस वक्त दर्ज हुआ था. मिले दस्तावेज में कई नक्सलियों के नाम मिले थे. आगे जो भी नक्सली पकड़े गये या सरेंडर किये, उनसे मामले में पूछताछ की गयी. पता नहीं चला. हमलोग पकड़े या सरेंडर नक्सलियों का जवाब नहीं ले सके. लेकिन दस्तावेज में जिन नक्सलियों के बारे में बताया गया था, उसकी पुष्टि नहीं होने के कारण मामला लंबित है.

Q नक्सलियों के पास लेवी का कितना पैसा है?

एडीजी का जवाब : देखिए, हमारे पास ऐसा कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है, जिससे पता चले कि लेवी का कितना पैसा नक्सलियों के पास है. यह जरूर है कि जब नक्सली पकड़े जाते हैं, सरेंडर करते हैं या फिर उनके बंकर से मिले दस्तावेजों से यह पता चलता है कि उन्हें किससे कितनी राशि लेवी के तौर पर ली है, लेकिन लगातार चलाये गये अभियान का असर है कि नक्सलियों के पास वर्तमान में लेवी की 10 प्रतिशत राशि भी नहीं जाती होगी.

उनकी बाहरी फंडिग पर एक तरह से राेक लगा दी गयी है. कई जगहों पर इन्हें खाने के लिए अनाज भी नहीं मिल रहा. यह ग्रामीणों के पास जाकर खाना मांग कर खाते हैं. इसलिए अब उनके पास सरेंडर के सिवा दूसरा उपाय नहीं है. अगर वे मुठभेड़ पर पुलिस पर गोली चालाएंगे, तो उनको गोली से ही पुलिस जवाब देगी.

Q झारखंड पुलिस के अनुसंधान को लेकर कोर्ट समय-समय पर सवाल उठाता रहा है. ऐसे में बेहतर तरीके से अनुसंधान हो और आरोपियों को कोर्ट से सजा मिले, इस पर कुछ काम हो रहा है क्या?

एडीजी का जवाब : इस संबंध में डीजीपी द्वारा पुलिस आदेश जारी किया गया है. कोर्ट की टिप्पणी की हम समीक्षा करते है. जो कमियां होती है, उसे दूर करने का प्रयास करते हैं, ताकि फिर से इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो. प्रशिक्षण का स्तर ऊंचा किया जा रहा है. रांची के आइटीएस में नये अनुसंधान के तरीके, सीबीआइ और एनआइए से आये अधिकारियों की ट्रेनिंग में सहायता ली जा रही है. झालसा में भी पुलिस अफसरों व एसपी रैंक के अफसर को भेज कर ट्रेनिंग दिलायी गयी है. कोशिश है अनुसंधान को बेहतर किया जा सके.

Q आइजी रैंक के पुलिस अफसरों की कमी से झारखंड पुलिस लंबे समय से जूझ रही, दूसरी ओर कई आइपीएस अफसर लगातार केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा रहे?

एडीजी का जवाब : देखिए, केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने का एक मेनडेटरी प्रॉसेस होता है. उस रेशियों के तहत ही राज्य सरकार क्लीयरेंस देती है. कभी-कभी रेशियो ज्यादा होने पर राज्य सरकार क्लीयरेंस नहीं भी देती है. आइएएस, आइपीएस या आइएफएस अखिल भारतीय सेवा है. इसमें कितने लोगों को राज्य व केंद्र में काम करना है, इसका प्रतिशत तय होता है. जहां तक आइजी रैंक के अफसरों की आप कमी बता रहे हैं, तो वह जिस बैच के हैं, उस समय ऑल इंडिया सर्विस में आइपीएस अफसरों की नियुक्ति कम हुई थी. इसलिए आइजी रैंक में कमी दूसरे राज्यों में भी है.

Q. राज्य बना उस समय से यहां की जनसंख्या में कई गुणा इजाफा हुआ. पुलिस के संसाधन भी बढ़े. आपको नहीं लगता कि दिल्ली व दूसरे राज्यों की तरह रांची, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग व देवघर जैसे जिलों में व्यवस्था लागू होती?

एडीजी का जवाब : यह पॉलिसी डिसीजन की बात है. पुलिस के संसाधनों में लगातार वृद्धि होती आयी है. 10 साल पहले हाइवे पेट्रोलिंग नहीं थी. थानों में गश्ती के लिए पर्याप्त वाहन नहीं थे. पीसीआर वैन नहीं थे. अब हाइवे पेट्रोल के लिए 157 व पीसीआर में 163 वाहन है.

राज्य बनने के समय जवानों की 20 हजार तादाद नहीं थी. अब 70 हजार है. सैप, आइआरबी के अलावा अन्य बलों का गठन किया गया है. पहले थ्री नट थ्री का जमाना था. अब पुलिस के पास एके-47, एक किलोमीटर तक मार करने वाला मोर्टार है. ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है.

Q झारखंड में श्रावणी मेला हो या फिर विभिन्न पर्यटक स्थल, यह आगंतुकों को काफी आकर्षित करते हैं, पर्यटक भी बड़ी तादाद में आते हैं. इनके लिए अलग से सुरक्षा या मॉनिटरिंग की व्यवस्था नहीं है?

एडीजी का जवाब : उस अवधि के लिए पुलिस बलों की तैनाती की जाती है. चाहे श्रावणी मेला हो या मुड़मा सहित अन्य आयोजन. फिलहाल अलग से इसकी कोई व्यवस्था नहीं है.

Q पुलिस के एसटीएफ सहित अन्य पुलिस ट्रेनिंग सेंटरों को बदला जा रहा, क्या ट्रेनिंग के पुराने पैटर्न में भी बदलाव हो रहा है?

आइजी का जवाब : पुलिस व्यवस्था में ट्रेनिंग काफी महत्वपूर्ण है. इस पर झारखंड में हमेशा फोकस किया जाता है. ट्रेनिंग सेंटर में राष्ट्रीय स्तर जैसे कोबरा और अन्य बलों की तर्ज पर ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें कर्नल रैंक के अधिकारियों को झारखंड पुलिस में प्रतिनियुक्त किया गया है. ट्रेनिंग स्कूल में स्पेशल फोर्स को ग्रे-हाउंडस और ओड़िशा की स्पेशल फोर्स एसओजी की तर्ज पर इससे बेहतर ट्रेनिंग के साथ ही जंगल वारफेयर की ट्रेनिंग के साथ आधुनिक तकनीक की भी ट्रेनिंग दी जा रही है.

झारखंड जगुआर के ट्रेनर को राष्ट्रीय स्तर पर अभी ट्रेनिंग के लिए गृहमंत्री मेडल दिया गया है. इससे स्पष्ट है कि झारखंड पुलिस की ट्रेनिंग काफी अच्छी है. डीजीपी और डीजी ट्रेनिंग की ओर आधुनिक तकनीक ओर नये चैलेंज से निबटने के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की जा रही है.

Q आप आइजी अभियान हैं, राज्य व केंद्रीय बलों को आप करीब से देख रहे हैं. यहां की स्थिति के लिए बेहतर कौन है?

आइजी का जवाब : देखिए कौन कम है या कौन अच्छा है, यह सवाल नहीं है. यह पूरा कार्य कोऑर्डिनेशन का है. इसमें सभी आवश्यक है. राज्य पुलिस और केंद्रीय एजेंसी और सेंट्रल फोर्स सभी आवश्यक है. विगत दिनों जितने भी ऑपरेशन हुए. उसमें कोबरा और झारखंड जगुआर की बहुत अहम भूमिका रही. कौन ज्यादा आवश्यक है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि झारखंड को नक्सल मुक्त बनाना.

सभी का उद्देश्य एक है और सभी एक उद्देश्य से काम रहे हैं. झारखंड में इंटर एजेंसी या इंटर फोर्स के बीच जो समन्वय है. उसकी सराहना देश के स्तर पर होती है. मीटिंग में भी इसकी चर्चा होती है. अन्य राज्यों को यह सलाह दी जाती है कि झारखंड में जो कोऑर्डिनेशन है. वैसा ही आप भी कीजिए.

Q. कोल्हान में अभियान चल रहा है. इधर कुछ संस्थाएं व लोग कह रहे है कि सुरक्षाबल आमलोगों पर अत्याचार कर रहे हैं. 20 गांव के लोगों को एक तरह से बंधक बना लिया गया है. वहीं एक जवान भी नक्सलियों के कब्जे में है?

आइजी का जवाब : कोल्हान में अभियान के दौरान नक्सलियों के द्वारा लगाये गये आइइडी की चपेट में कुछ जवान भी घायल हुए हैं. कुछ ग्रामीण भी नक्सलियों के द्वारा लगाये गये आइइडी की चपेट में आये. जिसमें कुछ घायल हुए और कुछ की मौत भी हो चुकी है. नक्सलियों ने पूरे क्षेत्र में आइइडी लगा रखा है. नक्सलियों को पता है कि अब वहां सुरक्षा बल पहुंचेंगे और उनका खात्मा हो जायेगा.

इसलिए नक्सली वहां खुद ही विभिन्न स्थानों पर पोस्टर लगाये हैं. जिसके माध्यम से नक्सलियों ने जंगल में जाने से गांव वालों को मना कर रखा है. यह कहते हुए कि अगर आप बाहर निकलते हैं या जंगल में जाते हैं, तब इसके लिए आप ही जिम्मेवार होंगे. नक्सली किसी को अंदर आने या बाहर जाने नहीं देते हैं. ग्रामीणों का जीवन जंगल पर निर्भर है. इससे स्पष्ट है कि नक्सलियों ने एक तरीके से गांव वालों को बंधक बनाकर रखा है.

पुलिस वहां इसलिए पहुंच रही है कि नक्सलियों के जाल से ग्रामीणों को निकाला जा सकें, ताकि ग्रामीण जंगल में आसानी से जा सकें. पुलिस के लिए आसान होता कि पुलिस चुपचाप बैठी रहती. पुलिस अपनी जान जोखिम में डाल कर वहां जा रही है. यह जानते हुए हम जहां कदम रख रहे हैं वहां आइइडी लगा हो सकता है. पुलिस वहां इसलिए जा रही है, ताकि आइइडी को निकाल कर नक्सलियों से क्षेत्र को मुक्त कराया जा सकें.

ताकि ग्रामीण सुरक्षित जंगल में जा सकें. कुछ ऐसी संस्थाएं हैं, जो नकाब या चोला पहनकर खुद को गांववालों का हितैषी बता रहे हैं. लेकिन वे असल में नक्सलियों के हितैषी हैं. ऐसी लोग जानते हैं कि अगर पुलिस की कार्रवाई इसी तरीके से चलती रही, ताकि आने वाले दिन में नक्सली विवश होकर वहां का इलाका छोड़ देंगे और उनके लिए झारखंड में कहीं जगह नहीं बचेगी. इसलिए पुलिस बल और अफसरों का मनोबल तोड़ने के लिए ऐसे गलत आरोप लगाये जा रहे हैं. अगर कोई शिकायत मिलेगी, तब जांच कर कार्रवाई होगी.

Q आपने सीआरपीएफ सहित अन्य केंद्रीय एजेंसियों में अपनी सेवाएं दी, आपको लगता है कि राज्य पुलिस को वैसी सुविधा नहीं मिलती, जो केंद्रीय बलों को है.

एडीजी का जवाब : देखिए दोनों बलों का नेचर अलग है. उन्हें उनकी जरूरत के मुताबिक संसाधन मुहैया कराया जाता है.

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