Jharkhand News, Ranchi Coronavirus Update रांची : कोरोना वायरस की दूसरी लहर पहली लहर से ज्यादा खतरनाक हो चुकी है. कोरोना का दूसरा स्ट्रेन तेजी से लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है. इससे संक्रमितों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है. अस्पतालों में गंभीर अवस्था में संक्रमित भर्ती हो रहे हैं. इस कारण डॉक्टरों को भी इलाज करने में परेशानी हो रही है. हालांकि इस बीच राहत की बात यह है कि प्रोन वेंटिलेशन (छाती के बल सोना) तकनीक फेफड़ा को स्वस्थ करने में मददगार साबित हो रही है. डॉक्टर भी दवा के साथ-साथ इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं.
राज्य के सरकारी व निजी अस्पतालों में भर्ती 80 से 90 फीसदी गंभीर संक्रमितों को डॉक्टर दवा के साथ प्रोन वेंटिलेशन का अभ्यास करा रहे हैं. प्राेन वेंटिलेशन का यह अभ्यास आठ से 10 घंटे तक कराया जा रहा है. वार्ड में भर्ती गंभीर संक्रमितों को दिन या रात किसी भी समय इसका अभ्यास करने को कहा जा रहा है.
इसका फायदा यह हो रहा है कि फेफड़ा में वायरस का फैलाव नहीं हो रहा है. इससे मरीज को तेजी से आराम मिलता है. राजधानी के कई निजी अस्पतालों में दवा व खाने के समय की तरह प्रोन वेंटिलेशन का समय भी निर्धारित कर दिया गया है. एक साथ वार्ड में भर्ती संक्रमितों को पेट के बदल लिटाया जाता है.
विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना संक्रमितों में ऑक्सीजन का लेवल तेजी से गिरता है. ऑक्सीजन लेवल गिरने से ही संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. अगर संक्रमित नियमित रूप से प्रोन वेंटिलेशन का अभ्यास करें, तो फेफड़ा में संक्रमण का फैलाव तो कम होगा ही साथ ही ऑक्सीजन का लेवल भी सुधर जायेगा. फेफड़ा को जब पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने लगता है, तो संक्रमित को सांस लेने की समस्या से निजात मिल जाती है.
कई कोरोना संक्रमित होम आइसोलेशन में रह कर अपना इलाज करा रहे हैं. डॉक्टरों के निर्देश पर दवा ले रहे हैं. डॉक्टर संक्रमितों को दवाओं के साथ प्रोन वेंटिलेशन (ज्यादा से ज्यादा पेट के बल सोने) की सलाह दे रहे हैं. इससे मरीजों का ऑक्सीजन लेवल सही रह रहा है. ऑक्सीजन का लेवल सही होने पर उनको बाहर से ऑक्सीजन देने की जरूरत नहीं पड़ रही है. निरंतर अभ्यास से संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत भी नहीं हो रही है.
प्रोन वेंटिलेटर तकनीक एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में अपनायी जाती है. प्रोन वेंटिलेशन में मरीज को उल्टा कर लिटा दिया जाता है. इससे लंग्स में मौजूद फ्लूड इधर-उधर हो जाता है और फेफड़ा में ऑक्सीजन पहुंचने लगता है. फेफड़ा का फैलाव ज्यादा होता है और लंग्स सिकुड़ता नहीं है.
Posted By : Sameer Oraon