झारखंड अलग होने के 22 वर्ष बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं पर 75 फीसदी आबादी को महानगर के अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. ग्रामीण व ब्लॉक स्तर पर बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने के कारण लोग इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज और निजी अस्पतालों पर निर्भर हैं. चिकित्सा सेवा लोगों को नजदीकी क्षेत्र में उपलब्ध नहीं होने की मुख्य वजह राज्य में डॉक्टरों की बेहद कमी है. राज्य में 8,465 लोगों के इलाज के लिए एक डॉक्टर है.
वहीं, एक अस्पताल पर 68,995 लोगों के इलाज का भार है. राज्य के अस्पतालों में बेड की संख्या 11,184 है. यानी लगभग तीन हजार लोगों पर एक बेड उपलब्ध है. हालांकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार एक हजार की आबादी पर 1.5 बेड होना चाहिए. यही कारण है कि इस दिशा में देश की तुलना झारखंड अभी भी निचले पायदान पर खड़ा है. नीति आयोग की रिपोर्ट की मानें तो देश में 7,000 लोगों के इलाज पर एक डॉक्टर है.
स्वास्थ्य सूचकांक में राज्यों को तीन श्रेणी में रखा गया है, जिसमें बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं. झारखंड इसमें 48 अंक के साथ महत्वाकांक्षी प्रदेशों की सूची में है. वहीं, केरल ओवरऑल स्कोर 82.20 के साथ प्रथम स्थान पर है और दूसरे नंबर पर 72.42 स्कोर के साथ तमिलनाडु है. हालांकि चिकित्सा सेवा को सुदृढ़ करने की दिशा में सरकार प्रयास कर रही है. शिशु व मातृ मृत्यु दर में कमी आयी है. वहीं संस्थागत प्रसव बढ़ कर 75.8% हो गया है. सिजेरियन से प्रसव व नियमित टीकाकरण में सुधार हुआ है.
जिला और पीएचसी व सीएचसी अस्पतालों में एक्स-रे, एमआरआइ और सीटी स्कैन की मशीनें लगायी गयी हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल नहीं होता है. ग्रामीण इलाकों में पीएचसी व सीएचसी में डॉक्टर नहीं मिलते है. यहां नर्स के जिम्मे स्वास्थ्य सेवाएं होती है. वहीं, नर्स नियमित टीकाकरण और कोरोना टीकाकरण में लगी रहती हैं.
सदर अस्पताल की संख्या 23
पीएचसी की संख्या330
सीएचसी व रेफरल अस्पताल188
हेल्थ सब सेंटर की संख्या 3958
सरकारी अस्पताल 4530
सरकारी डॉक्टर3419
नर्सों की संख्या1487
बेड की संख्या 11184
स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करने के लिए डॉक्टर व पारा मेडिकल स्टॉफ की नियुक्ति की जा रही है. 134 नये प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने की प्रक्रिया चल रही है. स्वास्थ्य केंद्रों के संचालन के लिए बड़ी संख्या में नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की गयी है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में देवघर एम्स को बड़ा बदलाव माना जा रहा है. 750 बेड के इस अस्पताल में आउटडोर (ओपीडी) व इंडोर (भर्ती) की सुविधा शुरू हो गयी है. एमबीबीएस में 100 और 60 सीट पर नर्सिंग की पढ़ाई हो रही है. एम्स देवघर के ओपीडी में 400 से ज्यादा मरीज को परामर्श दिया जा रहा है.
कांके के सुकुरहुट्टू में 400 करोड़ की लागत से बने टाटा कैंसर हॉस्पिटल में ओपीडी शुरू हो गया है. भविष्य में कैंसर के मरीजों को बेहतर सुविधा मिलेगी. डॉक्टरों की नियुक्ति व अन्य प्रक्रिया चल रही है.
हृदय रोगियों को मुफ्त इलाज की सुविधा मुहैया कराने के लिए राज्य सरकार ने श्रीसत्य साई हॉस्पिटल के साथ एमओयू किया है. हर वर्ष एक हजार रोगियों का मुफ्त इलाज होगा.
वर्ष 2014 में शिशु मृत्यु दर एक हजार में 34 थी, अब यह घटकर 27 हो गयी है
मातृ मृत्यु दर वर्ष 2014 में प्रति लाख 165 थी, लेकिन वर्तमान में घटकर 113 हो गयी है
संस्थागत प्रसव वर्ष 2014 में 61.90 % था, यह बढ़कर 75.8 फीसदी हो गया है.
नि:शुल्क सिजेरियन वर्ष 2014 में 312 था, वह वर्तमान में 1725 हो गया है
नियमित टीकाकरण वर्ष 2014 में 61.90 फीसदी था, वह बढ़कर 87% हो गया है