ठंड शुरू हो चुकी है, लेकिन झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले 13 लाख से अधिक बच्चों को 22 नवंबर तक पोशाक, स्वेटर और जूते-मोजे के पैसे नहीं मिले हैं. झारखंड शिक्षा परियोजना ने अगस्त में ही जिलों को इसके लिए राशि उपलब्ध करा दी थी. साथ ही बच्चों का बैंक खाता खुलवा कर राशि उपलब्ध कराने का निर्देश भी दिया था. विभाग ने जिलों को 15 नवंबर तक बच्चों को पोशाक की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को कहा था, लेकिन पैसे नहीं मिलने से बच्चे इस कड़ाके की ठंड में बिना स्वेटर और जूतों के ही स्कूल जाने को विवश हैं.
जानकारी के मुताबिक, राज्य में कुल 38,29,076 लाख बच्चों को पोशाक दिया जाना है. इनमें से अब तक 24,49,980 बच्चों को ही पोशाक की राशि मिली है. वहीं, 13,79,096 बच्चे आज भी ठंड में बिना स्वेटर व जूते-मोजे के ही स्कूल जा रहे हैं. पहली से पांचवीं तक के बच्चों को दो सेट पोशाक, एक स्वेटर व जूता-मोजा के लिए 600 रुपये दिये जाते हैं. वहीं, छठी से आठवीं तक के बच्चों को पोशाक के लिए 400 रुपये, स्वेटर के लिए 200 व जूता-मोजा के लिए 160 रुपये दिये जाते हैं.
भारत सरकार द्वारा बच्चों की पोशाक के लिए 600 रुपये दिये जाते हैं. छठी से आठवीं तक के बच्चों को जूता-मोजा के लिए 160 रुपये राज्य सरकार देती है. गौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में आठवीं तक की सभी वर्ग की छात्राओं और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के छात्रों की पोशाक के लिए 60 फीसदी राशि केेंद्र सरकार व 40 फीसदी राशि राज्य सरकार देती है. यह राशि समग्र शिक्षा अभियान के तहत दी जाती है. जबकि, अन्य सभी बच्चों को पोशाक की राशि राज्य सरकार की ओर से दी जाती है.
जिला बच्चे (% में)
रामगढ़ 80
पाकुड़ 79
पू सिंहभूम 79
सिमडेगा 77
देवघर 74
गढ़वा 74
सरायकेला 73
खूंटी 71
रांची 71
गुमला 70
गिरिडीह 68
जामताड़ा 67
जिला बच्चे (% में)
कोडरमा 66
लातेहार 65
प सिंहभूम 65
पलामू 64
बोकारो 60
दुमका 59
धनबाद 59
चतरा 57
गोड्डा 51
हजारीबाग 46
लोहरदगा 39
साहिबगंज 37
बच्चों को राशि नहीं उपलब्ध हो पाने का प्रमुख कारण बैंक खाता नहीं होना है. राज्य में कक्षा 12वीं तक लगभग 50 लाख बच्चे नामांकित हैं. इनमें से लगभग 17 लाख विद्यार्थियों का अब तक बैंक खाता नहीं खुला है. इस कारण विद्यार्थियों को राशि नहीं मिल पायी है.
पोशाक के लिए राशि उपलब्ध कराने में साहिबगंज जिला की स्थिति सबसे खराब है. साहिबगंज में 22 नवंबर तक केवल 37 फीसदी बच्चों को ही राशि मिली थी. लोहरदगा में 39, जबकि हजारीबाग में 46 फीसदी बच्चों को राशि मिली थी.