राज्य में एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर जिला से लेकर ब्लॉक स्तर तक अस्पताल भवन बनाये गये हैं, कई जगह बन रहे हैं. राजधानी में ही सदर अस्पताल के नये भवन के निर्माण पर 354 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं. लेकिन मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. कहीं अब भी भवन निर्माण अधूरा है, तो कहीं बिल्डिंग हैंडओवर ही नहीं हो पाया है. बन रहे अस्पतालों के लिए मैनपावर का इंतजाम बड़ी समस्या है. अस्पताल में टेक्नीशियन, नर्स और पारा मेडिकल स्टाफ नहीं हैं. नतीजतन भवन बन जाने के बाद भी इनका कई उपयोग नहीं हो रहा है.
राज्य के जिलों में 600 करोड़ रुपये में बने अस्पताल भवन
राज्य के अलग-अलग जिलों में जहां लगभग 600 करोड़ रुपये से भी ज्यादा अस्पताल भवनों के निर्माण पर खर्च हुए हैं, वहीं रांची सदर अस्पताल की नयी सुपर स्पेशियलिटी बिल्डिंग के ही निर्माण पर 354 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन उपकरणों के लिए प्रशिक्षित मैनपावर की कमी के कारण इसका पूर्ण संचालन अब तक शुरू नहीं हो पाया है. रांची सदर अस्पताल के मामले में हाइकोर्ट की डेडलाइन भी फेल हो गयी है. उधर, 39 करोड़ रुपये की लागत वाले रिम्स के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान की बिल्डिंग आठ साल में तैयार नहीं हो पायी है. तय समय सीमा में हैंडओवर नहीं होने से रिम्स प्रशासन इसके लिए नयी एजेंसी की तलाश कर रहा है. इसके अलावा रांची के अनगड़ा के जोन्हा में तैयार पीएचसी, पांचा और रातू के हेल्थ सबसेंटर की बिल्डिंग भी तैयार है, लेकिन इसे शुरू नहीं किया जा सका है.
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कोडरमा में 30 शैय्यावाला अस्पताल बन गया खंडहर
गुमला के 12 प्रखंडों के 89 गांवों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की स्थापना की गयी है. आयुष्मान भारत योजना के तहत सभी अस्पतालों के भवन बनाये गये हैं, लेकिन सात केंद्र पांच और तीन साल से बंद हैं. कोडरमा में लोगों को (आदिम जनजातियों) बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए लोकाई बागीटांड़ रोड (बिरहोर टोला) के पास करोड़ों की लागत से बना 30 बेड वाला अस्पताल खंडहर में तब्दील हो चुका है. हजारीबाग में 10 साल में 60 से 70 करोड़ खर्च कर पीएचसी और दर्जनों हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के भवन बनाये गये, पर लोगों की परेशानी कम नहीं हुई है. इन भवनों का निर्माण वर्ष 2015 में हुआ था. एक भवन पर ढाई से 3 करोड़ रुपया खर्च आया था.
पलामू-लातेहार के केंद्रों में डॉक्टर व पारा मेडिकल सुविधाएं नहीं
लातेहार सदर अस्पताल में दो साल पहले दो करोड़ की लागत से आइसीयू बनाया गया था. लेकिन, इसके संचालन के लिए ट्रेंड डॉक्टर और पारा मेडिकल स्टाफ का इंतजाम अब तक नहीं हो पाया है. वहीं, जिले के महुआडांड़ प्रखंड के बरदौनी गांव में तीन वर्ष पूर्व दो करोड़ की से उपस्वास्थ्य केंद्र बना था, जो आज तक चालू नहीं हो सका. पलामू के सतबरवा प्रखंड में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण वर्ष 2008 में आठ करोड़ से कराया गया था, लेकिन 12 साल बाद भी 50 बेड के अस्पताल की सुविधा बहाल नहीं पायी है. वहीं, जिले के हैदरनगर के चौकड़ी गांव में अतिरिक्त प्राथमिक उप-स्वास्थ्य केंद्र में बेहतर सुविधा नहीं मिल पा रही है.
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क्या कहते हैं अधिकारी
स्वास्थ्य विभाग लोगों को बेहतर सुविधा पहुंचाने का लगातार प्रयास कर रहा है. कई अस्पताल शुरू किये गये हैं. कुछ की बिल्डिंग तैयार हैं और उन्हें हैंडओवर की प्रक्रिया चल रही है. डॉक्टर सहित अन्य मैनपावर की समस्या शीघ्र दूर कर ली जायेगी.
– अरुण कुमार सिंह,
अपर मुख्य सचिव, स्वास्थ्य विभाग
क्या कहते हैं स्वास्थ्य मंत्री
पूर्व की सरकार ने बिना सोचे-समझे, बिना मैनपावर, बिना आधारभूत संरचना के ही सुदूर क्षेत्रों में भी अस्पताल बनवा दिया. अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स व अन्य मैनपावर की कमी है, जिसके लिए तेजी से प्रयास हो रहा है. सदर अस्पताल भी जनता के लिए शीघ्र उपलब्ध होगा.
– बन्ना गुप्ता, स्वास्थ्य मंत्री
यह भी जानें
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2007 में शुरू हुआ था रांची सदर अस्पताल का निर्माण, 15 साल बाद भी पूर्ण रूप से शुरू नहीं हुआ इसका संचालन
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2014 से शुरू हुआ था रिम्स के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान का निर्माण, लेकिन आठ साल बाद भी हैंडओवर नहीं किया गया