रांची : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) ने लॉकडाउन (Lockdown) के बाद राज्य में उत्पन्न होने वाली स्थिति से निपटने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Cm Hemant Soren) को कई सुझाव दिये हैं. पत्र के माध्यम से उन्होंने (बाबूलाल मरांडी) लॉकडाउन के बाद राज्य में होनेवाली बेरोजगारी की भयावहता और इससे निपटने की गंभीर मसले की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान समय-समय पर पत्र व ट्विटर के माध्यम से सरकार को अवगत कराने और उन मामलों को सरकार द्वारा संज्ञान में लेने को एक अच्छा संकेत माना है.
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखे पत्र में बाबूलाल मरांडी ने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना (Coronavirus) केे संक्रमण एवं बचाव की रोकथाम के लिए पूरे देश में 25 मार्च से लाॅकडाउन है. इस कारण झारखंड के लाखों प्रवासी मजदूर लगभग डेढ़ महीने से पूरी तरह बेरोजगार हैं. इनके सामने खाने-पीने और रहने की समस्या आ गयी है. देशभर में निर्माण से जुड़े कार्य, कल-कारखाने, छोटे व मध्यम उद्योग एवं सभी तरह के कार्य बंद हो जाने से राज्य के करीब 9.5 लाख मजदूर बेरोजगार हो गये हैं. कोरोना महामारी (Corona Pendamic) से उत्पन्न संकट से परेशान ये लोग अपने-अपने गांव/घर लौटना चाह रहे हैं, हालांकि, वर्तमान में कुछ लोग लौट भी चुके हैं. पूरे प्रदेश में करीब 9.5 लाख मजदूर वापस लौटेंगे, ऐसा अनुमान किया जा रहा है.
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उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल (North Chotanagpur Division) के गिरिडीह, कोडरमा, हजारीबाग एवं चतरा जिले से काफी संख्या में मजदूर जीविकोपार्जन के लिए अन्य प्रदेशों में जाते हैं. श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग, झारखंड के आंकड़े के मुताबिक इसकी संख्या 3,98,880 है. इसी तरह पलामू प्रमंडल (Palamu Division) के गढ़वा, पलामू एवं लातेहार जिला से करीब 02 लाख प्रवासी मजदूर हैं, जो अब अपने-अपने घर लौटना चाहते हैं. इतनी बड़ी संख्या में लौटनेवाले मजदूरों केे लिए राज्य सरकार को रोजगार सृजन की आवश्यकता होगी. इन लोगों के पास इतनी जमीन भी नहीं है कि खेतों मे काम कर अनाज पैदा करें और अपना जीविकोपार्जन कर सकें. इनके सामने आसन्न रोजगार की समस्या सहित कई अन्य तरह की समस्या खड़ी होगी, जिससे हम सभी को रूबरू होना पड़ेगा.
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राज्य सरकार को चाहिए कि रोजगार सृजन (Employment generation) के लिए उपरोक्त क्षेत्रों मेें लघु एवं मध्यम प्रकार के उद्योग-धंधे जल्द शुरू करायें, ताकि घर लौटे इन मजदूरों को काम मिल सके. लेकिन, राज्य में उद्योग-धंधों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. उत्तरी छोटानागपुर के चारों जिले (गिरिडीह, कोडरमा, हजारीबाग व चतरा) में उद्योग-धंधे नहीं के बराबर हैं. गिरिडीह शहर एवं कोडरमा शहर में नाममात्र के उद्योग हैं. इसी तरह पलामू प्रमंडल के तीनों जिलें (गढ़वा, पलामू व लातेहार) की स्थिति भी कमोबेस वैसी ही है ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार को पलामू प्रमंडल में भी लघु व मध्यम दर्जे का उद्योग लगाने की सार्थक पहल करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल हो या पलामू प्रमंडल, इन क्षेत्रों में उद्योग-धंधे के लिए जमीन उपलब्धता की समस्या नहीं आयेगी, क्योंकि इन क्षेत्रों में जमीन-खरीद बिक्री होती है. अगर होती भी है, तो हम सब आपसी सहयोग से उद्योग-धंधे को स्थापित कराने का मार्ग सुलभ बनायेंगे. उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल के चारों जिलों का संपर्क राष्ट्रीय मुख्य उच्च पथ से है. साथ ही कोडरमा, गिरिडीह, रेलवे जंक्शन है, जहां से कच्चे माल एवं उत्पादित माल के परिवहन व्यवस्था भी सुलभ हो सकेगी.
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पलामू प्रमंडल उत्तर प्रदेश, बिहार एवं छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा से भी सटा है. इस कारण उद्योग की दृष्टिकोण से यह अनुकूल भी है. डाल्टनगंज एवं गढ़वा रेलवे स्टेशन में रेलवे रैक के आवागमन की सुविधा भी उपलब्ध हो सकेगी. यदि इन क्षेत्रों में उद्योग-धंधे स्थापित होते हैं, तो झारखंड केे वैसे मजदूर जो काम के अभाव में विभिन्न प्रदेशों में जाकर काम करते हैं, उन मजदूरों को यहां काम मिल सकेगा. सरकार को चाहिए कि वापस लौटे मजदूरों के लिए स्कील डेवलपमेंट प्रोग्राम विशेष तौर पर संचालित कराकर उन्हें कार्य कुशल बनाएं, ताकि उद्योग- धंधे में श्रमिक रोजगार पा सकें.
उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए इन प्रक्षेत्रों मेें रोजगार सृजन सहित लघु व मध्यम प्रकार के उधोग-धंधे स्थापित कराने की सार्थक पहल बिना देरी किये करने का आग्रह किया है. इसके लिए राज्य सरकार के उपक्रमों के साथ-साथ उद्यमियों को आमंत्रित कर इन क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहित करने पर भी जोर दिया.