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झारखंड लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा के तहत मिले रोजगार, 10 लाख जॉब कार्ड बन कर तैयार

झारखंड में प्रवासी श्रमिकों का आना जारी है. लाखों की संख्या में झारखंड में आनेवाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना एक चुनौती है. हेमंत सरकार इस चुनौती को अवसर में बदलने में लगी है. इन प्रवासी श्रमिकों को भी मनरेगा से जोड़ने की योजना पर राज्य सरकार ब्लू प्रिंट तैयार कर ली है. इसके लिए 10 लाख जॉब कार्ड बन कर तैयार हो गया है.

रांची : झारखंड में प्रवासी श्रमिकों का आना जारी है. लाखों की संख्या में झारखंड में आनेवाले प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना एक चुनौती है. हेमंत सरकार इस चुनौती को अवसर में बदलने में लगी है. इन प्रवासी श्रमिकों को भी मनरेगा से जोड़ने की योजना पर राज्य सरकार ब्लू प्रिंट तैयार कर ली है. इसके लिए 10 लाख जॉब कार्ड बन कर तैयार हो गया है.

मनरेगा के तहत झारखंड में करीब 49 लाख ग्रामीण परिवार जॉब कार्ड होल्डर हैं. एक्टिव जॉब कार्ड करीब 22 लाख परिवार के पास है. एक्टिव मजदूर करीब 29 लाख हैं. झारखंड में हर साल औसतन 14 लाख परिवार के 18 से 19 लाख लोग मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं. इस समय लॉकडाउन के कारण काफी संख्या में मजदूर गांव में पहले से मौजूद हैं. पहले इनमें से कई लोग शहरों में भी काम करने जाया करते थे, जो अब बंद है. अब जाहिर है कि इस एक्टिव जॉब कार्ड की संख्या में इजाफा होगा. इसी को ध्यान में रख कर ब्लू प्रिंट तैयार किया गया है.

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क्या है पांच सूत्री ब्लू प्रिंट

इसके तहत ऊपरी जमीन की मेढ़बंदी, ट्रेंच कम बंड तकनीकी अपनाकार, ऐसे स्थानों पर जहां ढलान 5-20 प्रतिशत के बीच है, वहां कार्य किया जा सकता है- ऐसे स्थान जहां ढलान 5 प्रतिशत से कम हो, वहां खेतों की मेढ़बंदी हो- नाले के ऊपरी भाग में नाला पुनर्जीवन कार्य (एलबीएस) हो- नाला के निचले भाग में नाला पुनर्जीवन कार्य (गाद की निकासी) हो- मनरेगा और 15वें वित्त आयोग की राशि से सोख्ता गड्ढा का निर्माण हो

योजना का उद्देश्य

वर्षा जल के बहाव को कम करना करते हुए वर्षा जल का संरक्षण करना है. जमीन में नमी की मात्रा को बढ़ाना है. टांड़ खेत के पानी को खेतों में ही रोकना है. ऊपरी जमीन का संवर्धन एवं उसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाना है. इसके लिए जल संरक्षण की विभिन्न संरचनाओं का निर्माण करना है.

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प्रवासी श्रमिकों को भी मिलेगा रोजगार

सरकार की ओर से तैयार इस ब्लू प्रिंट में झारखंड लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराना पहली प्राथमिकता है. वर्तमान में राज्य में मनरेगा के तहत कार्य करने वाले एक्टिव मजदूर करीब 29 लाख हैं. प्रवासी श्रमिकों के आने से इसकी संख्या में इजाफा हाेगी, इस पर भी ध्यान रखा गया है. साथ ही अधिक संख्या में जॉब कार्ड भी प्रिंट करा कर रखा गया है, ताकि कोरेंटिन से लौटने के साथ ही उन्हें काम मुहैया करायी जा सके.

मनरेगा का काम नहीं मिला, तो मिलेगी बेरोजगारी भत्ता

मनरेगा के तहत एक परिवार को साल में 100 दिन काम मुहैया कराना होता है. वहीं, हर पंचायत में कम से कम 100 मजदूरों को हर दिन रोजगार देने की जरूरत है. झारखंड में पिछले साल करीब 45 दिन औसतन सभी मजदूरों को काम मिला है. अगर कर्मियों की शिथिलता के कारण किसी मजदूर को काम नहीं मिलता है, तो उसे बेरोजगारी भत्ता के रूप में पहले महीने में एक चौथाई और एक महीने बाद पूरी मजदूरी का आधा पैसा मुहैया कराना पड़ता है. यह पैसा संबंधित कर्मचारी के वेतन से काट कर देने का प्रावधान है.

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झारखंड में प्रतिदिन मजदूरी दर 194 रुपये

झारखंड में मनरेगा के तहत एक कार्य दिवस के बदले 194 रुपये मिलते हैं. ऐसे में मजदूरों को पर्सनल असेट तैयार कर मदद पहुंचायी जाती है. मसलन, मजदूर के खेत में तालाब की खुदाई या कुएं का निर्माण या फिर जानवरों के लिए शेड का निर्माण कराया जाता है. मनरेगा के तहत व्यक्तिगत एसेट यानी अपनी संपत्ति बनाने के मामले में झारखंड पूरे देश में नंबर वन राज्य है.

मनरेगा में केंद्र और राज्य सरकार की भागीदारी

मनरेगा के तहत मजदूरों को जो पैसे मिलते हैं, उसमें केंद्र सरकार राज्य सरकार की हिस्सेदारी को लेकर झारखंड में प्रतिदिन 194 रुपये दिये जाते हैं और यह पूरा खर्च केंद्र सरकार वाहन करती है. इसे दो कैटेगरी में समझा जा सकता है. भौतिक मजदूरी दर की बात है, तो उसकी पूरी राशि केंद्र सरकार देती है. इसके अलावा कई ऐसे काम होते हैं, जिसमें मेटेरियल का इस्तेमाल होता है, मटेरियल पर जो खर्च होता है उसका 75 फीसदी केंद्र सरकार और 25 फीसदी राज्य सरकार देती है. इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि अगर 100 रुपये खर्च होते हैं, तो उसमें 90 रुपये केंद्र सरकार वहन करती है और 10 रुपये राज्य सरकार देती है.

जल संरक्षण पर ध्यान देने से गांव हो सकता है सूखा मुक्त

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि मनरेगा के तहत कुंआ, तालाब निर्माण और वृक्षारोपण के अलावा जल संरक्षण का काम प्रमुखता से कराया जाता है‌. हालांकि, इससे जुड़ी योजनाएं ग्राम पंचायत के स्तर पर तैयार होती हैं, लेकिन अब मनरेगा के तहत जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. इसके साथ ही पर्यावरण के संवर्धन के लिए वृक्षारोपण पर जोर दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसी योजना के तहत पिछले कुछ वर्षों में झारखंड के 40 ऐसे गांव हैं, जिन्हें सूखा मुक्त बना दिया गया है. गांव में ही जल संरक्षण की व्यवस्था होने से किसानों की वर्षा पर निर्भरता कम हो रही है.

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10 लाख जॉब कार्ड बन कर तैयार, धैर्य ने खोएं, हिम्मत बनाये रखें : ग्रामीण विकास मंत्री

झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि कुशल व अकुशल प्रवासी मजदूरों को उनके क्षमता के अनुसार कार्य मिले, इसके लिए राज्य सरकार ने तैयारी कर ली है. जो प्रवासी मजदूर 14 दिनों के कोरेंटिन अवधि को पूरा कर अपने घर जा रहे हैं, उन्हें मनरेगा के तहत कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि अब तक करीब 4,600 प्रवासी मजदूरों ने मनरेगा के तहत कार्य करने की बातें कही हैं. इसके तहत करीब 3,500 प्रवासी मजदूरों को जॉब कार्ड मुहैया करा दिया गया है. जैसे- जैसे प्रवासी मजदूरों का कोरेंटिन अवधि खत्म होता जायेगा, उन्हें मनरेगा के तहत कार्य के लिए जॉब कार्ड मुहैया कर दिया जायेगा. मंत्री ने कहा कि 10 लाख जाॅब कार्ड बन कर तैयार हो गया है, जिसे राज्य के सभी जिलों में भेज दिया गया है. उन्होंने कहा कि किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है. राज्य सरकार प्रवासी समेत अन्य लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की व्यवस्था में लगी है. धैर्य न खोएं. हिम्मत बनाये रखें. सरकार आपके साथ है.

Posted By : Samir ranjan.

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