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Exclusive: मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में हर किसी को नहीं मिलती बेल, पढ़ें आलोक आनंद से बातचीत की आखिरी कड़ी

स्पेशल एक्ट्स में अपना स्पेशल प्रोविजन्स दिया जाता है. उसी तरह से पीएमएल एक्ट में एक स्पेशल प्रोविजन दिया हुआ है, जो यह बताता है कि बेल किसे दिया जाएगा, किन परिस्थितियों में दिया जाएगा.

विश्वत सेन

रांची : भारत में संयुक्त राष्ट्र में सरकार की ओर से किए गए वादे के अनुसार हवाला के जरिए आने देश में आने वाले पैसे, अवैध तरीके से कमाई गई संपत्ति और पैसों को वैध बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयास और यहां तक कि टेरर फंडिंग को रोकने के लिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट या धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएल एक्ट) बनाया गया. जब इस कानून को बनाया गया और इसके लिए स्वायत्तशासी संस्था प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का गठन किया गया, तो करीब 17 सालों तक किसी को इसकी भनक तक नहीं थी. इन 17 सालों के दौरान पीएमएल एक्ट में दो बार संशोधन भी हुआ, लेकिन आखिरी बार जब वर्ष 2019 के संशोधन के बाद ईडी को सरकार की ओर से जो शक्तियां प्रदान की गईं और जब जांच का दायरा बढ़ा, तो नागरिक कहने लगे की फलां सरकार ने भ्रष्टाचार पर वार करना शुरू कर दिया है. लेकिन, वास्तविकता यही है कि ईडी कभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच नहीं करता. इसके लिए www.prabhatkhabar.in ने झारखंड हाईकोर्ट के वकील आलोक आनंद से खास बातचीत की. अब तक आप इसकी पांच कड़ी पढ़ चुके हैं. पेश है खास बातचीत की छठी और आखिरी कड़ी…

सवाल : हम यह भी जानना चाहते हैं कि जो कोई व्यक्ति मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जांच के दायरे में है, तो वह अपना बचाव कैसे कर सकता है या फिर उसे जमानत कैसे मिलेगी?

आलोक आनंद : देखिए होता क्या है कि नॉर्मल पुलिस के केसेज में होता यह है कि ऑफेंसज दो प्रकार का बेलेबल और नॉन बेलेबल होता है. बेलेबल ऑफेंस में एक ऐसा ऑफेंस डिफाइन किया गया है, जिसमें बिना वारंट के भी अरेस्ट किया जा सकता है. नॉन बेलेबल में मजिस्ट्रेट के द्वारा वॉरंट मैंडेटरी है. बेलेबल ऑफेंस रहने पर एज ऐ राइट ऑफ मैटर आप बेल ले सकते हैं. बेलेबेल ऑफेंस में भी बेल देने के कई पैरामीटरर्स तय किए गए हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स भी हैं. इसमें कोर्ट यह देखता है कि जिस व्यक्ति को बेल दिया जा रहा है, वह बाहर निकलने के बाद सबूतों के साथ छेड़छाड़ करेगा या नहीं, उसने जो अपराध किया हुआ वह कहीं जघन्य तो नहीं है या फिर उसने कोई आर्थिक अपराध तो नहीं किया हुआ है.

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सीआरपीसी और आईपीसी पर प्रिवेल कर जाता है पीएमएलए

आलोक आनंद : अब अगर हम ईडी के स्पेशल की कोर्ट की बात करें तो सामान्य पुलिस केस में बेल देने के मामले में सीआरपीसी और आईपीसी की प्रक्रिया लागू होगी. ईडी के मामले में भी सीआरपीसी का प्रोसिजर है, लेकिन जब पीएमएलए का मामला आ जाएगा, तो सीआरपीसी पर पीएमएलए प्रिवेल कर जाएगा. हालांकि, कानून में यह लिखा हुआ है कि सीआरपीसी में जो प्रक्रियाएं हैं, वह इस पर भी लागू होंगी. लेकिन अब कोई स्पेशल प्रोसिजर इसके तहत दिया हुआ है, जैसा कि हमने जांच, कुर्की-जब्ती आदि मामले में बात की उस प्रकार की, तो फिर वह प्रिवेल कर जाता है.

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क्या है पीएमएलए का सेक्शन 45

आलोक आनंद : अब चूंकि ये स्पेशल एक्ट है, जैसे कि प्रिवेंशन ऑफ अनलॉफुल एक्टिविटी एक्ट, प्रिवेंशन ऑफ टेररिज्म एक्ट या पीएमएलए ये सारे स्पेशल एक्ट हैं. स्पेशल एक्ट्स में अपना स्पेशल प्रोविजन्स दिया जाता है. उसी तरह से पीएमएल एक्ट में एक स्पेशल प्रोविजन दिया हुआ है, जो यह बताता है कि बेल किसे दिया जाएगा, किन परिस्थितियों में दिया जाएगा, किस श्रेणी के व्यक्ति को दिया जाएगा. बेल देते वक्त जो स्पेशल प्रोविजन है, वह सेक्शन 45 पीएमएलए है. सेक्शन 45 पीएमएलए में हस्तक्षेप के बाद विभिन्न प्रकार के फैसले आए. संशोधन को चुनौती दी गई, उस चुनौती पर फैसला दिया गया.

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बेल की क्या है प्रक्रिया

आलोक आनंद : पीएमएलए के विशेष प्रावधान में यह स्पष्ट लिखा हुआ है कि सीआरपीसी में चाहे कुछ भी क्यों न लिखा हुआ हो, किसी भी व्यक्ति को तब तक बेल नहीं दी जाएगी, जब तक कि सबसे पहले पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को बेल अप्लिकेशन को अपोज करने का मौका दिया जाए. दूसरा यह कि पब्लिक प्रॉसिक्टयूटर को बेल अप्लिकेशन के अपोज करने का मौका दे भी दिया गया तो स्पेशल कोर्ट खुद सबसे प्रथम दृष्ट्या संतुष्ट हो जाए कि जिस व्यक्ति ने ऑफेंस क्रिएट किया है, उसे बेल दिया जाना चाहिए या नहीं और ये दोनों ही स्थिति में कोर्ट यदि संतुष्ट हो जाता है, तो वह व्यक्ति विशेष को बेल दे सकता है.

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किसे मिलेगी बेल

आलोक आनंद : मनी लॉन्ड्रिंग कानून के इन सभी कड़े प्रावधानों के बावजूद छह प्रकार के व्यक्तियों को स्पेशल कैटेगरी में डाला गया है, जहां पर कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है कि वह इनके मामलों में बेल दे सकता है. जैसे, 16 साल से कम उम्र का नवयुवक हो, दूसरी महिला हो, तीसरा सिक्ख हो, चौथा इन्फर्म हो, पांचवां किसी व्यक्ति पर किसी अपराध को लेकर आरोप लगता कि उसने अकेले की अपराध किया है तो वह राशि एक करोड़ से कम हो और छठा यह कि बहुत सारे अभियुक्त हैं तो उस परिस्थिति में रकम एक करोड़ से कम हो.

नोट : मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के अधिकार, कानूनी प्रक्रिया, गिरफ्तारी, जांच से लेकर जमानत तक के तमाम मुद्दों को लेकर हमने विशेष साक्षात्कार के जरिए प्रभात खबर.कॉम के पाठकों को समझाने का प्रयास किया. झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद से बातचीत की ये आखिरी कड़ी है. किसी विशेष मुद्दे को लेकर हम फिर आपके सामने जल्द ही हाजिर होंगे.

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