17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नौकरी छोड़ जैविक खेती कर रहे कृष्णकांत पाठक के लंगड़ा मालदा आम की दिल्ली-बेंगलुरु तक है डिमांड

16 वर्षों तक विभिन्न एग्रो बिजनेस कंपनियों में यूनिट सेल्स लीड कम टेक्निकल एडवाइजर की नौकरी करने के दौरान कृष्णकांत पाठक को अहसास हुआ कि सेहत से खिलवाड़ व किसानों के आर्थिक शोषण के साझीदार बन रहे हैं. आखिरकार उन्होंने नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया और जैविक खेती करने का संकल्प लिया.

रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा

झारखंड के लातेहार जिले के बारियातू प्रखंड के फुलसू गांव के रहने वाले किसान कृष्णकांत पाठक जैविक खेती करते हैं. इनके जैविक लंगड़ा मालदा आम की काफी डिमांड है. रांची से दिल्ली-बेंगलुरु तक इनके आम के दीवाने हैं. सबसे खास बात ये है कि आम की खेती में खाद और केमिकल का प्रयोग नहीं करते. करीब ढाई एकड़ में 100 आम के पेड़ हैं. लंगड़ा मालदा, मल्लिका, हापुस, बंबइया, सिपिया समेत अन्य कई प्रजातियां हैं. इनमें लंगड़ा मालदा की काफी मांग है.

नौकरी छोड़ की जैविक खेती की शुरुआत

16 वर्षों तक विभिन्न एग्रो बिजनेस कंपनियों में यूनिट सेल्स लीड कम टेक्निकल एडवाइजर की नौकरी करने के दौरान कृष्णकांत पाठक को अहसास हुआ कि रासायनिक खेती को प्रोत्साहित कर वह न तो समाजहित और न किसानहित में कार्य कर रहे हैं, बल्कि सेहत से खिलवाड़ व किसानों के आर्थिक शोषण के साझीदार बन रहे हैं. आखिरकार एक दिन उन्होंने अपने अंतर्मन की आवाज पर नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया और जैविक खेती करने का संकल्प लिया.

Also Read: World Blood Donor Day 2023: क्यों करें रक्तदान? फायदे बता रहे रिम्स ब्लड बैंक के सीनियर रेजिडेंट डॉ चंद्रभूषण

कभी करते थे रासायनिक खेती

किसान कृष्णकांत पाठक यूं तो वर्षों पहले से खेती करते थे, लेकिन जानकारी के अभाव में रासायनिक खाद एवं उर्वरकों का उपयोग अन्य किसानों की तरह ही किया करते थे. गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र, देवलापार, नागपुर (महाराष्ट्र), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, कांके (रांची) एवं विभिन्न एग्रो बिजनेस कंपनियों में काम करने के दौरान मिले प्रशिक्षण से स्नातक पास श्री पाठक की आंखें खुलीं और उन्होंने रासायनमुक्त खेती का निश्चय किया.

Also Read: World Blood Donor Day 2023: रक्तदान करने से हिचकते हैं, तो इन 15 प्वाइंट्स से दूर करिए सारे भ्रम

शुरुआत में ही बंपर उत्पादन

श्री पाठक ने वर्ष 2016 में जैविक खेती की शुरुआत की. 25 डिसमिल जमीन में टमाटर की खेती की. इसमें सिर्फ गोमूत्र, गोबर और गुड़ से बने अमृत जल का ही प्रयोग किया. किसी भी तरह की रासायनिक खाद व उर्वरक का उपयोग नहीं किया. यकीन नहीं होगा, करीब छह माह की अवधि में 25 क्विंटल टमाटर का उत्पादन हुआ. रासायनिक खेती करने वाले अन्य किसानों के टमाटर का पौधा या तो मर गया था या फिर करीब 10 क्विंटल टमाटर का उत्पादन हुआ था. अमृत जल से जैविक खेती से आस-पास के किसान काफी प्रभावित हुए. इससे उनका भी मनोबल बढ़ा. इसी दौरान 5 डिसमिल जमीन में हरी मिर्च लगायी. 10 माह की अवधि में श्री पाठक ने करीब 3 क्विंटल हरी मिर्च और 25 किलो सूखी मिर्च की बिक्री की.

Also Read: World TB Day 2023: टीबी मुक्त झारखंड का सपना कैसे होगा साकार, क्या कर रहे निक्षय मित्र व टीबी चैंपियन?

किसानों को करते हैं प्रशिक्षित

टमाटर की खेती के लिए प्रसिद्ध फुलसू गांव के कृष्णकांत पाठक न सिर्फ जैविक खेती करते हैं, बल्कि आस-पास के कई गांवों के ग्रामीणों को प्रशिक्षित कर जागरूक भी करते हैं. इसका असर हुआ. लातेहार जिले के बारियातू प्रखंड के लाटू गांव में 20 एकड़, फुलसू में पांच एकड़, करमा में 10 एकड़ में किसान जैविक खेती कर रहे हैं. लातेहार के साथ-साथ रांची के करीब 20 गांवों में जैविक कृषि का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

Also Read: साइलेंट किलर हाइपरटेंशन के इन लक्षणों को नहीं करें नजरअंदाज, जिंदगी के लिए काफी महंगी पड़ सकती है लापरवाही

बीएयू के सीईओ सिद्धार्थ जायसवाल का मिला मार्गदर्शन

कृष्णकांत पाठक बीएयू (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय) के बीपीडी में किसानों को जैविक कृषि का प्रशिक्षण देते हैं. वे बताते हैं कि बीएयू के बीपीडी विभाग के सीईओ सिद्धार्थ जायसवाल के मार्गदर्शन में उन्होंने जैविक खेती करना शुरू किया. रसायनमुक्त आम की खेती का असर ये हुआ कि आज बारियातू व बालूमाथ प्रखंड के आसपास के गावों में करीब 40 हजार आम के फलदार पौधे लगाकर लोग खेती कर रहे हैं. आने वाले दिनों में ये क्षेत्र आम का हब हो जाएगा.

Also Read: बिकती बेटियां: बचपन छीन खेलने-कूदने की उम्र में बच्चियों की जिंदगी बना दे रहे नरक, कैसे धुलेगा ये दाग ?

कैसे करते हैं आम की खेती

श्री पाठक बताते हैं कि आम की खेती के लिए वे कंपोस्ट का प्रयोग करते हैं और अमृत जल से सिंचाई करते हैं. बगीचे में सूखे पत्ते नहीं जलाये जाते हैं. लिहाजा यही सड़-गलकर खाद बन जाते हैं. आम का मंजर आने पर दो बार कीटनियंत्रक (जैविक) का प्रयोग करते हैं. कीटनियंत्रक गौमूत्र व नीम का पत्ता से तैयार किया जाता है. 10 लीटर पानी में एक लीटर देसी गाय का गोमूत्र मिलाकर मंजर पर स्प्रे करते हैं. 90-100 दिनों दिनों में आम तैयार हो जाता है. आम की तुड़ाई के बाद उसे ठंडा स्थान में खुले में करीब चार घंटे रखें. इसके बाद ही उसकी बिक्री करें. उनके आम की मांग भुवनेश्वर, ब्रह्मपुर (ओडिशा), नोएडा, दिल्ली, बेंगलुरु और झारखंड में रांची समेत अन्य जिलों में है.

Also Read: कोमालिका बारी : तीरंदाज बिटिया के लिए गरीब पिता ने बेच दिया था घर, अब ऐसे देश की शान बढ़ा रही गोल्डन गर्ल

किसानों के लिए वरदान है जैविक खेती

किसान कृष्णकांत पाठक कहते हैं कि पोषण, अच्छी आय और टिकाऊ खेती के लिए वरदान है जैविक खेती. इसमें सेहत में सुधार के साथ-साथ अच्छी आमदनी भी है. किसान अभी भी जागरूक होकर जैविक की ओर नहीं लौटे, तो अपनी ही जमीन में मजदूरी की नौबत आ जायेगी. जैविक खेती में 90 फीसदी खर्च में कमी आ जाती है. इसके साथ ही उत्पादन क्षमता सह भंडारण क्षमता बढ़ जाती है.

Also Read: EXCLUSIVE: झारखंड में सखी मंडल की दीदियां कर रहीं काले गेहूं की खेती, गंभीर बीमारियों में है ये रामबाण ?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें