रांची, मनोज सिंह : झारखंड में अब तक पेसा कानून नहीं बना है. ‘पेसा एक्ट-1996’ में जनजातीय बहुल राज्यों को इससे संबंधित कानून बनाना है. झारखंड और ओडिशा में अब तक यह कानून नहीं बना है. इस पर भारत सरकार ने नाराजगी जतायी है. भारत सरकार के पंचायती राज विभाग के सचिव ने राज्य सरकार को कहा है कि अगर कानून नहीं बना, तो केंद्र आर्थिक सहयोग रोक सकती है. पेसा एक्ट के तहत लागू प्रावधानों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार आर्थिक सहयोग करती है. इसके लिए सभी राज्यों का अपना-अपना कानून होना जरूरी है. वित्त आयोग का पैसा लेने के लिए राज्यों को पेसा कानून लागू करना जरूरी है. झारखंड में पांचवीं अनुसूची में 16 जिले आते हैं. राज्य को वित्त आयोग से करीब 1300 से 1400 करोड़ रुपये मिलते हैं.
ग्रामसभा को सशक्त करने के लिए है पेसा कानून
पेसा कानून ग्रामसभा को सशक्त करने के लिए है. इसके तहत जमीन हस्तांतरण सहित कई तरह के अधिकार ग्रामसभा को देने होंगे. पांचवीं और छठी अनुसूची में शामिल राज्यों को 1997 से पूर्व पेसा कानून बनाना था. झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन इसके बाद बना था, इस कारण यहां नये सिरे से कानून बनाने की जिम्मेदारी दी गयी थी. आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगना, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि ने इसे स्वीकार कर लिया है.
16 जिलों के 135 ब्लॉक हैं अनुसूची-5 में
झारखंड में 16 जिलों के 135 ब्लॉक अनुसूची-5 में आते हैं. इसमें करीब 2066 ग्राम पंचायत तथा 16028 ग्रामसभा हैं. सबसे अधिक 18-18 प्रखंड रांची और प सिंहभूम में हैं. पलामू जिले में भी दो पंचायतों में पेसा कानून लागू करना है. सबसे अधिक रांची जिले में 305 पंचायतों में पेसा कानून लागू करना है.
Also Read: झारखंड में शत-प्रतिशत जन्म-मृत्यु रजिस्ट्रेशन प्राप्त करने का लक्ष्य, एक महीने तक चलेगा अभियान
आरजीएसए से मिले 12 करोड़ रुपये
इस वर्ष पंचायती राज विभाग को राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान से 12 करोड़ रुपये मिले हैं. इससे पंचायत प्रतिनिधियों को पेसा संबंधी जानकारी देनी है. इसके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करना है. पेसा का फेसेलिटेटर नियुक्त करना है. पंचायती राज विभाग को वित्त आयोग से पैसा मिलता है. केंद्रीय पदाधिकारियों ने झारखंड को बताया है कि पेसा कानून बनाना सभी राज्यों के लिए जरूरी है. जो सरकार अपने यहां यह कानून नहीं बनायेगी, वहां पैसा रोक दिया जायेगा.
ये अधिकार देने हैं पेसा कानून के तहत
– भूमि अधिग्रहण से पहले सलाह लेना
– जलाशयों के विकास की योजना व प्रबंधन तैयार करना
– लघु उपज का लाइसेंस देना
– लघु उपज में मिलनेवाली छूट की अनुशंसा करना
– स्थानीय संपदा पर नियंत्रण और प्रबंधन करना
पंचायती राज व्यवस्था में बहुत स्पष्टता नहीं
इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता गुंजल मुंडा का कहना है कि अभी जो पंचायती राज व्यवस्था चल रही है, उसमें बहुत स्पष्टता नहीं है. कानून हो जाने से काम आसान हो जायेगा. पंचायत को मजबूत करने की जो कोशिश है, वह हो पायेगी. असल में अभी जो व्यवस्था दिख रही है, वह सच्चाई से थोड़ी दूर है. पंचायती राज व्यवस्था में केवल मुखिया का पावर सेंटर नहीं है.