Jharkhand Primitive Tribe News: झारखंड राज्य का गठन आदिवासियों के नाम पर हुआ था. यहां 30 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. कई आदिम जनजातियां इस प्रदेश में निवास करती हैं. आदिवासियों के नाम पर राज्य में राजनीति तो खूब होती है, सरकारें घोषणाएं भी खूब करती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर देखेंगे, तो आदिम जनजातियां बहुत ही बुरी दशा में जी रही हैं. इनके सिर पर छत नहीं है. सरकारी योजनाओं को लागू करने में प्रशासनिक अधिकारियों की कोई दिलचस्पी नहीं है. सबर जनजाति के लोगों को पेंशन भी नहीं मिल रही.
पूर्वी सिंहभूम के बड़ाम ब्लॉक में स्थित तामुकबेड़ा सबर टोला प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता सबूत है. अधिकारियों की उदासीनता का गवाह है. इस टोले के 11 परिवार के लोग आर्थिक तंगी में जी रहे हैं. एक महिला को छोड़कर किसी और को पेंशन नहीं मिलती. हालांकि, झारखंड सरकार की ओर से कई तरह की पेंशन योजना चलायी जा रही है. आदिम जनजाति के लोगों के लिए विशेष रूप से पेंशन योजना की व्यवस्था है, लेकिन इस टोले के लोगों को इसका लाभ नहीं मिलता.
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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि सबर जनजाति के लिए 18 साल के बाद पेंशन की व्यवस्था है. यानी 18 साल की उम्र का हर सबर पेंशन का हकदार है. लेकिन, तामुकबेड़ा सबर टोला में रह रहे लोगों को इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. इस टोला में लव सबर, कुश सबर, अर्जुन सबर, परेश सबर, नकुल सबर, शत्रुघ्न सबर, शामली सबर, सुफल सबर, अनीता सबर, लुकान सबर के परिवार रहते हैं.
झारखंड में 1932 का खतियान लागू होने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक रामदास सोरेन ने सरकार की कई उपलब्धियां गिनायीं. उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी की जब से राज्य में सरकार बनी है, हर वर्ग के लोगों का ख्याल रखा गया है. हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली सरकार ने तरह-तरह की पेंशन की व्यवस्था की है. इसमें वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन समेत कई तरह की पेंशन शामिल है.
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रामदास सोरेन के दावों के उलट एक सच्चाई यह भी है कि आदिम जनजाति, जो अब विलुप्त हो रही है, के लोगों के लिए सरकार ने पेंशन की व्यवस्था की है, लेकिन इसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. 11 परिवारों में मात्र एक महिला लुकान सबर को पेंशन मिलती है. वह भी हर महीने नहीं मिलती. तीन-चार महीने में एक बार पेंशन मिलती है. लुकान सबर अपनी बहू और पोती के साथ एक जर्जर आवास में रह रही है.