वित्त एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ रामेश्वर उरांव ने प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में बुधवार को अपनी बातें खुल कर रखीं. राज्य के वित्तीय हालात से लेकर पार्टी-संगठन पर साफगोई से अपनी राय जाहिर की. आइपीएस अधिकारी के रूप में काम के अनुभव और पुराने रोचक प्रसंगों को याद किया़ राजनीति में चल रहे अहम मुद्दों, नीतियों और भावी कार्यक्रम को लेकर चर्चा की़ मंत्री रामेश्वर उरांव ने राज्य सरकार की उपलब्धियां गिनायीं, तो केंद्र से मिल रहे सहयोग की प्रशंसा की, पेश है संवाद कार्यक्रम में प्रभात खबर के सवाल और मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव के जवाब़
जब आपकी सरकार बनी थी, तो उस वक्त राज्य की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किया गया था. वर्तमान स्थिति कैसी है?
राशि और इसका प्रबंधन अलग-अलग विषय है. सरकार अधिक से अधिक लोगों को लाभ देना चाहती है. खजाना खाली होने का बयान जो पहले दिया जाता था, वह राजनीतिक नहीं था. उस वक्त यही स्थिति थी. सैलरी, पेंशन और सामाजिक पेंशन जैसी कई महत्वपूर्ण स्कीम होती है. इसके लिए पैसा होना जरूरी है. इसके लिए पैसा नहीं होगा, तो स्थिति खराब हो जायेगी. दूसरे राज्यों ने कोरोना के दौरान वेतन और अन्य सुविधाओं में कटौती की. हम लोगों ने ऐसा नहीं किया.
सीएम और सीएस के साथ बैठक हुई. तय हुआ, सैलरी पूरी देनी है. इस कारण दिये. पेंशन में कटौती नहीं की. वर्तमान वित्तीय स्थिति बेहतर है. वैसे हर जरूरत पूरी करने के लिए अभी भी पैसा नहीं है. इस कारण हम फिजूलखर्ची रोक रहे हैं और अब तक इसमें सफल रहे हैं. एक विभाग शहर का ड्रोन से सर्वे कराना चाहता था. इस पर 40 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना थी, लेकिन मैंने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी. मैंने कहा, यह काम काम 10 करोड़ में मैनुअल हो सकता है, फिर 40 करोड़ क्यों खर्च करें. इससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता.
Q सरकार ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने का फैसला लिया है, इससे राज्य पर कितना वित्तीय बोझ बढ़ेगा. नयी पेंशन योजना सही है या पुरानी व्यवस्था ही ठीक थी?
अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नयी पेंशन योजना लायी गयी थी. यह खराब नहीं थी. अच्छी थी. पेंशन का वित्तीय भार पड़ता है. अब लोगों की औसत आयु 80-85 साल हो गयी है. ऐसे में वित्तीय भार रहेगा ही. पहले 10-10 फीसदी सरकार और लाभुक का पेंशन में शेयर होता था. इसे 14 और 10 कर दिया गया है. पर लोगों की मांग थी कि पुरानी पेंशन योजना लागू हो. हम लोगों ने वादा किया था और उसे पूरा किया है. पर इसका असर 15 साल के बाद दिखेगा. यह तय है कि बोझ काफी होगा. सरकार को देखना होगा कि इसे कैसे पूरा करें.
वित्तीय मामलों में राज्य की निर्भरता केंद्र सरकार पर बढ़ी है, इसकी वजह क्या है? जीएसटी लागू होने के बाद से राज्य का कितना पैसा केंद्र पर बकाया है?
यह कहना कि केंद्र पर निर्भरता बढ़ी है, ठीक नहीं है. पैसा केंद्र या राज्य सरकार का नहीं है. यहां एक फेडरल स्ट्रक्चर है. इसमें केंद्र राज्य सरकार से टैक्स लेता है, तो वह उसका हिस्सा देता है. फिर राज्य टैक्स वसूलता है, तो हम खर्च करते हैं, लेकिन, व्यवस्था बदली है, तो यह हमें स्वीकार है. अब राज्य का केंद्र के पास कोई बकाया नहीं है. हम केवल राजनीति करने के लिए केंद्र पर दबाव नहीं बना सकते हैं. राजनीति में हैं, तो कुछ तो बोलना होगा.
राज्य गठन के बाद से लगातार कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है, इसके क्या कारण हैं?
बजट में जब आय कम और खर्च ज्यादा दिखाया जाता है, तो इसे डेफसिट बजट (घाटे का) कहते हैं. इसमें बजट, फिसकल, रेवेन्यू और प्राइमरी कई तरह की चीजें होती हैं. अगर हम कर्ज लेते हैं, तो हमें चुकाना पड़ता है. यह कोई निजी मामला, तो है नहीं. जनता के हित के लिए पैसा लेते हैं और उसे चुकाते हैं. लोगों को संतुष्ट करने के लिए ऐसा करना पड़ता है. इस कारण कर्ज राज्य की वित्तीय व्यवस्था का एक हिस्सा है.
चालू वित्तीय वर्ष के सात माह गुजर गये हैं, लेकिन अंत्योदय परिवार को चीनी नहीं मिल पायी, वहीं दाल वितरण की योजना भी नहीं शुरू हो पायी़, वजह क्या है?
सात नहीं, छह. यह सही है कि छह माह से चीनी नहीं मिल पा रही है. असल में सिंगल टेंडर हो रहा था. इसमें चीनी की कीमत बाजार की कीमत से अधिक कोट (43 रुपये प्रति किलो) की जा रही थी. हम बाजार भाव से अधिक में चीनी लेने पर सहमत नहीं थे. फिर से टेंडर हुआ. लोगों ने अब कम कीमत कोट की. चीनी की आपूर्ति शुरू हो गयी है. रांची की चीनी हजारीबाग चली गयी थी, उसे ट्रांसपोर्ट किया गया है. जल्द रांची में भी चीनी की आपूर्ति शुरू हो जायगी. दाल का वितरण दिसंबर माह से शुरू हो जायेगा.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मिलनेवाला राशन भी बैकलॉग में चल रहा है. विपक्षी दल की ओर इसमें अनियमितता बरतने का आरोप भी लगाया जाता है?
राज्य सरकार पर चावल देने का बोझ है. एफसीआइ ही दो माह देर से अनाज देता है. गरीब कल्याण योजना हम समय से पूरा करना चाहते हैं. ट्रांसपोर्ट के कारण भी देरी होती रही है.
आप लंबे समय तक पुलिस सेवा में रहे. फिर राजनीति में आये. दोनों में कौन सी पारी को आपने ज्यादा बेहतर पायी… या यूं कहे कि इंज्वॉय किया?
मुझे दो पोस्टिंग अच्छी लगी. एक तो बिहार में जब सीआइडी के हेड थे. यहां तीन तरह से मामला सुलझाया जाता था. फंसाव, धंसाव व तीसरा था दूध का दूध और पानी का पानी. हम तीसरे तरह से मामला सुलझाने में विश्वास रखते थे. इस दौरान कई बड़े-बड़े मामले आये. लक्ष्मणपुर बाथे मामले में बहुत मेहनत करनी पड़ी. करीब 70 लोग आरोपी बने थे. बाद में इसमें कई लोग बरी हो गये. कई को आजीवन कारावास की सजा भी मिली.
उसी दौरान कई किडनैपिंग गिरोह सक्रिय थे. उन्हें समाप्त करने के लिए काम किया. एक मामला बिहार के विधायक का था. उनको जानबूझ कर एक मामले में फंसा दिया गया था. सरकार का दवाब था. इसके बावजूद उनको सत्यता के आधार पर बरी किया गया. उस वक्त वह सरकार से नाराज थे. बाद में सरकार से नाराजगी दूर हुई और वह बिहार में मंत्री बने. पर आनंद पुलिस की नौकरी में अधिक आया. जब भी बिहार में कोई बड़ी घटना, सांप्रदायिक तनाव होता था, तो उस पर नियंत्रण के लिए मुझे ही लगाया जाता था.
यहां तक कि जब लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा लेकर निकले थे, तो उन्हें गिरफ्तार करने की जिम्मेवारी मुझे ही सौंपी गयी थी. मैंने उन्हें गिरफ्तार भी किया. इसके अलावा केंद्र सरकार में जनजातीय आयोग में काम करने में भी बहुत मजा आया. पूरे देश में घूमा. लोगों को समझा-जाना. 32 समुदाय को जनजातीय में शामिल करने पर काम कराया. 16 को शामिल कराया गया. उस दौरान झारखंड में भोक्ता और पुरान को एसटी में शामिल करने की अनुशंसा की गयी थी.
आप कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे, केंद्रीय नेतृत्व ने संगठन की जिम्मेवारी से आपको मुक्त कर दिया, वजह क्या रही?
मैं आपको इसके पीछे की पूरी कहानी बताता हूं. 2010 में ही सोनिया गांधी मुझे झारखंड में प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहती थी. मैं तैयार भी हो गया था, लेकिन, उसी वक्त जनजातीय आयोग में दोबारा मौका मिल गया. हमने सोनिया जी से कहा था कि मैं आयोग से रिजाइन कर देता हूं. पर वह तैयार नहीं हुईं. 2014 में हम चुनाव हार गये. 2019 में कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा. डॉ अजय कुमार पार्टी से नाराज चल रहे थे.
उस वक्त महासचिव से अध्यक्ष के लिए प्रस्ताव मांगा गया था. आरपीएन सिंह कई नाम लेकर गये थे. श्रीमती गांधी किसी नाम पर तैयार नहीं हुईं. उन्होंने कहा मिस्टर उरांव ही अध्यक्ष होंगे. उस वक्त श्रीमती गांधी ने पूछा कि मैं बार-बार आदिवासी को अध्यक्ष बना रहा हूं, क्यों पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर ही है.
उनको बताया कि अब तक जितने भी आदिवासी अध्यक्ष रहे, सभी ईसाई समुदाय के रहे हैं. ईसाई की आबादी मात्र पांच फीसदी ही है और सरना 95 फीसदी हैं. अगर राजनीति करनी है, तो इसका ख्याल भी रखना होगा. इसका फायदा भी हुआ. हमने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया. जब जीते, तो पार्टी ने पद से मुक्त कर दिया. एक आदमी दो पद पर नहीं रह सकता है. हमने तो कहा था कि मंत्री नहीं रहेंगे, पार्टी को मजबूत करने दीजिए. लेकिन सोनिया जी इसके लिए तैयार नहीं हुईं.
राज्य में कांग्रेस कितना तंदुरुस्त है. वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष कैसा काम कर रहे हैं?
मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करूंगा. पार्टी को मजबूत करने के लिए घूमना होगा. जो घूमेगा, वही नेता बनेगा. राहुल गांधी घूम रहे हैं. यह तय है कि राहुल गांधी देश के बड़े नेताओं में शुमार हो गये हैं. महात्मा गांधी इसलिए बड़े राजनेता थे कि वह घूमते थे. वह पूरे देश को समझते थे.
तीन विधायक आपके कैश कांड में फंस गये, सरकार के गिराने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगा. कांग्रेस पर यह बड़ा धब्बा है ?
पहले हम लोग दूसरे को बिकाऊ बोलते थे. अब यह आरोप हम लोगों पर लग रहा है. यह सही नहीं है. 2020 में हम बोले थे कि लोगों को तोड़ने की कोशिश हो रही है. दिल्ली से बोला गया कि क्यों ऐसा बयान दे रहे हैं. हमने उनको बताया कि अगर सतर्क नहीं करेंगे, तो पार्टी टूट जायेगी. इस बार हम लोगों को जितनी निगरानी रखनी चाहिए थी, नहीं रख पाये. मेरी जानकारी में है कि जानेवाले सात लोग थे. पर इतने में दूसरी पार्टी की सरकार नहीं बनती.
सरकार को बेमौसम पिकनिक मनानी पड़ी, रांची-रायपुर सरकार ने दौड़ लगायी. घेरे में कांग्रेस रही. गठबंधन में अब आपकी यानी आपकी पार्टी की कितनी विश्वसनीयता बनी हुई है ?
मैंने पिकनिक पॉलिटिक्स का विरोध किया था, लेकिन सरकार चाहती थी कि हम भी साथ चलें, तो चले गये. हम पुलिस अधिकारी रहे हैं. उस वक्त हमें भी सूचना थी कि एक साजिश हो रही है. मुझ पर आरोप लग रहा था. अगर मुझे भागना होगा, तो कोई रोक लेगा क्या ? कोई रोक नहीं सकेगा. विश्वास तो करना होगा.
सियासी गलियारे में चर्चा थी कि तीन तो पकड़े गये , कुछ और विधायक पर्दे के पीछे थे ?
तीन विधायकों के पकड़ में आने के बाद से भय पैदा हुआ है. अब उन्हें मार्केट में जाने की हिम्मत नहीं है. एक बात और बता दें कि इसमें तीन और लोग शामिल थे, जो भागने में सफल हो गये. अब यह मामला उजागर हो गया है, तो वह भी अब हिम्मत नहीं करेंगे.
आपके विधायक अनूप सिंह ने भी तो भाजपा नेताओं से मुलाकात की थी, मुलाकात चर्चा में रही, वही अनूप सिंह तीनों विधायकों के खिलाफ केस कराते हैं. पार्टी की क्या रणनीति है?
देखिये यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है. पार्टी का अंदरूनी मामला भी है. इसलिए इस विषय पर अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा.
कांग्रेस 10 जनपथ से बाहर निकली है, मल्लिकार्जुन खरगे अब आपके नये सुप्रीमो हैं, अध्यक्ष बने हैं. कितना बदलेगी कांग्रेस.
किसी भी दल का एक ही उद्देश्य होता है कि संगठन मजबूत हो. अगर हम पार्टी व संगठन को आगे नहीं कर पाये, तो सफल नहीं माने जायेंगे. अगर 50-60 सीट ही आती है, तो क्या फायदा. कांग्रेस में अभी गांधी परिवार के प्रति बहुत ज्यादा विश्वास है. हां इनके बिना पार्टी चलेगी भी नहीं. यह भी अच्छा हुआ कि गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को मौका मिला है. अगर देश के लोगों का समर्थन मिलेगा, तो निश्चित तौर पर पार्टी आगे बढ़ेगी.
कांग्रेस को जमीनी स्तर पर मजबूत करने और संगठन की धार तेज करने के लिए आपका कोई सुझाव.
संगठन को मजबूत करने के लिए ग्रास रूट पर बूथ, पंचायत, प्रखंड व जिला कमेटी को धारदार बनाना होगा. यहां पर अस्थायी कमेटी रखकर काम नहीं चलाया जा सकता है. सबसे जरूरी है पंचायत व प्रखंड कमेटी को मजबूत करना. प्रदेश में प्रखंड कमेटी का गठन हो चुका है. अब पंचायत व बूथ कमेटी को दुरुस्त करने की जरूरत है. इसके लिए पार्टी के नेता-कार्यकर्ता को जनता के बीच जाना पड़ेगा. घूमना पड़ेगा. लोगों की भावनाओं को देखना व समझना होगा. गांधी जी इसके उदाहरण रहे हैं.
देखिये राजनीति से धर्म को अलग नहीं किया जा सकता है, गांधी जी ने पुणे में कहा था कि मैं हिंदू हूं और सनातनी हिंदू हूं. शाम में भजन होता था रघुपति राघव राजा राम….. जिसको आजादी की लड़ाई से मतलब नहीं था, वह भी वहां जाकर भजन सुनते और गाते थे. मैं आज भी कहता हूं कि कांग्रेस के अच्छे दिन आयेंगे. इस देश में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और सिख सभी रहेंगे. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन लोगों को समझना होगा और उनको साथ लेकर चलना होगा, तभी लोग आपके पास आयेंगे.
कोरोना काल से आप कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार मदद नहीं कर रही है, सहयोग नहीं मिल रहा है. वर्तमान में क्या हालात हैं.
मैंने विधानसभा में खुलकर कहा था कि केंद्र से मदद मिल रही है. केंद्र से पर्याप्त पैसा मिल रहा है. केंद्र सरकार कम राशि नहीं दे रही है. अभी के वर्तमान हालात को बहुत अच्छा तो नहीं कहेंगे. हां यह जरूर है कि अभी हम बीपीएल की श्रेणी से ऊपर की श्रेणी में हैं.
Q रामेश्वर उरांव अभी राजनीति में रहेंगे, दमखम दिखेगा या कभी-कभी आराम करने का मन करता है?
अब आराम करने का मन करता है. मैंने पार्टी की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलकर अपनी भावना से अवगत करा दिया है. मैं तीन मई को अपने बेटे रोहित के साथ सोनिया गांधी जी से मिला था़ स्पष्ट रूप से कहा कि मेरी उम्र 75 वर्ष हो गयी है. अब नयी पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए. अब आलाकमान को तय करना है कि वह क्या चाहते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में जब टिकट की बात हो रही थी, तो राजेंद्र सिंह ( अब स्वर्गीय) ने स्वास्थ्य का हवाला देते अपनी जगह अपने बेटे अनूप सिंह को टिकट देने की इच्छा जतायी थी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व इस पर तैयार नहीं हुआ.
राजेंद्र सिंह को टिकट दिया गया और वह जीते भी. दुर्भाग्यवश एक वर्ष के अंदर उनका देहांत हो गया. फिर उनका बेटा चुनाव लड़ कर जीता. राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता. हालांकि मैंने अपना इरादा सोनिया मैडम को जाहिर कर दिया है. मैं चाहता हूं कि अगर मैं चुनाव नहीं लड़ा, तो मेरा बेटा लड़े. दोनों में से एक ही व्यक्ति चुनाव लड़े. देखिये राजनीति में स्पष्टता होनी चाहिए. वर्ष 2014 में लोहरदगा से सुखदेव भगत को टिकट दिया गया.
पार्टी की ओर से मुझे यहां पर प्रचार की जिम्मेवारी सौंपी गयी. मैंने लोहरदगा में चुनाव प्रचार करने से साफ इंकार कर दिया. कहा कि मैं खूंटी व बोकारो समेत अन्य जगहों पर जाकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में चुनाव प्रचार करूंगा. अगर लोहरदगा में चुनाव प्रचार करने जाता, तो लोग मुझसे पूछते कि आप क्यों नहीं चुनाव लड़ रहे. तब मैं क्या जवाब देता. मैंने इस बात को केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष रखा, जिसे स्वीकार भी किया गया.
Q सरकार ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता की पहचान करने की बात कही है, आपकी क्या राय है?
इस पर क्या राय होनी चाहिए? क्या संविधान ऐसा बोलता है? मेरा मानना है कि स्थानीय नीति होनी चाहिए. झारखंड बिहार से अलग होकर राज्य बना. हमने भी बिहार में जमीन खरीदी थी और उसे बेच दिया. अगर नहीं बेचता, तो मैं भी बिहारी होता. हां, लेकिन आज के दिन में बाहर से आकर एससी, एसटी व ओबीसी की जमीन खरीदना गलत है. इसे लेकर सीएनटी व एसपीटी एक्ट में भी प्रावधान किया गया है. झारखंड की एक पुरानी कहावत भी है- दोना तो देबे, लेकिन कोना नहीं देबे. हम अब भी कहते हैं कि झारखंड के लोग अपनी जमीन बचाकर रखें, उसे बेचें नहीं.
जहां तक 1932 का सवाल है, मेरा मानना है कि जिसकी जमीन है, उसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए. राज्य में अलग-अलग समय में जमीन का सर्वे हुआ. कई जिलों में 1908 से लेकर 1934 तक सर्वे चला. हजारीबाग में 1927 से 1934 तक सर्वे हुआ. हां बुंडू व तमाड़ में 1932 में सर्वे होने की बात है. इसके बाद भी रिवीजनल सर्वे भी हुआ. जमीन के आधार पर स्थानीयता हो, यह पहली अहर्ता होनी चाहिए. आजादी से पहले भी यहां लोग आकर बसे, तो क्या उन्हें बाहरी कह देंगे?
आप झारखंडियों के अधिकार और भाषा-संस्कृति के हिमायती रहे हैं, आपकी ही पार्टी में 32 को लेकर अलग-अलग राय है, कुछ विधायक विरोध कर रहे हैं.
देखिये वे 1932 के खतियान का विरोध नहीं कर रहे हैं. वह अपनी बात रख रहे हैं. कहा जा रहा है कि अलग-अलग जिले में अलग-अलग समय वर्ष में सर्वे हुआ. जैसे चाईबासा में 1964 में सर्वे हुआ. यही बात सांसद गीता कोड़ा व पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी कह रहे हैं. सर्वे का मतलब यही होता है कि यहां उनकी जमीन है.
कुड़मी समुदाय आदिवासी का दर्जा मांग रहा है. इसे लेकर कई राज्यों में आंदोलन चल रहा है, आपकी क्या राय है?
देखिये मैंने कहीं पढ़ा है कि वर्ष 1929 में मुजफ्फरपुर में कुड़मी समुदाय की एक बैठक हुई थी. इसमें सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया था कि कुड़मी हिंदू हैं. जनेऊ पहनेंगे और आदिवासी नहीं कहे जायेंगे. आज कुड़मी समुदाय अपने को एसटी में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. मैं इसका विरोधी नहीं हूं. यह केंद्र सरकार को तय करना है, इनकी मांग कानूनी तौर पर कितना उचित है. इस पर गहन अध्ययन की जरूरत है.
सरकार ने वित्त नियंत्रण को लेकर क्या कदम उठाये हैं.
सरकार ने वित्त नियंत्रण को लेकर कई सुधार किये हैं. सरकार के सभी विभागों का ऑडिट कराया गया है. इसे लेकर सभी विभागाध्यक्ष को निर्देशित भी किया गया है. सरकार ने पहली बार बचत के लिए आरबीआइ में सिकिंग फंड की व्यवस्था की है. इसमें बचत के तौर पर 1300 करोड़ रुपये रखे गये हैं. जरूरत पड़ने पर सरकार इस फंड का इस्तेमाल करेगी. इसके अलावा आउटकम की अवधारणा लागू की गयी है.
डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा कि सरना धर्म कोड यहां के लोगों की संवेदना से जुड़ा मामला है. बहुत पहले से इसकी मांग हो रही है. लोगों की भावना को देखते हुए इसे कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जगह दी. यह लंबी प्रक्रिया है. हालांकि, सरकार ने विधानसभा से सरना धर्म कोड लागू करने का प्रस्ताव पारित कर इसे केंद्र सरकार के पास भेजने का काम किया है. अब केंद्र सरकार को इस पर निर्णय लेना है. पार्टी घोषणा पत्र में किये गये वायदे को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. डॉ उरांव ने चाईबासा एसपी रहने के दौरान हुए गुआ गोलीकांड से जुड़े अपने अनुभव भी साझा किया.