रिम्स झारखंड का पहला अस्पताल होगा, जहां ब्रेन डेथ की घोषणा की जा सकेगी. स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से यह जानकारी दी गयी है. ब्रेन डेथ घोषित किये जाने के बाद संभावित अंगदाता की पहचान हो पायेगी, जिससे अंगदान के जरिये अंग प्रत्यारोपण को बढ़ावा दिया जा सकेगा.
गौरतलब है कि किसी व्यक्ति को ब्रेन डेड घोषित करने से पहले कई प्रकार के परीक्षणों के आधार पर पुष्टि की जाती है. यह परीक्षण घटना के छह घंटे के अंतराल में पैनल में शामिल चार डाक्टरों द्वारा किया जाता है. इस मामले में स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन की ओर से रिम्स प्रबंधन को विशेषज्ञों की टीम के गठन को मंजूरी प्रदान की गयी है. रिम्स के चिकित्सा अधीक्षक इस मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष होंगे.
केंद्रीय अधिनियम मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओटीए)-1994 की धारा-3 की उपधारा-6 के तहत मेडिकल बोर्ड की टीम द्वारा ही किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित किये जाने का प्रावधान है. ब्रेन डेथ में मरीज के मस्तिष्क की मृत्यु हो जाती है, इसके बावजूद कृत्रिम तरीके से वेंटीलेटर के जरिये उसके हृदय, किडनी, लिवर आदि अंगों को जीवित रखा जा सकता है. हालांकि, ये अंग भी तभी तक जीवित रह सकते हैं, जब तक व्यक्ति वेंटिलेटर पर है.
कुछ समय बाद उसका हृदय भी काम करना बंद कर देता है.रोड एक्सीडेंट, सिर पर गंभीर चोट लगने, ब्रेन स्ट्रोक या ऐसी शारीरिक स्थिति, जिसमें मस्तिष्क गंभीर रूप से प्रभावित हो, वह ब्रेन डेथ का कारण बन सकती है. जब डॉक्टर किसी को ब्रेन डेड घोषित करते हैं, तो इसका मतलब यह है कि उस व्यक्ति के मस्तिष्क द्वारा सभी क्रियाओं पर विराम लग गया है. रिम्स को इसकी मान्यता मिलने से ऐसे गंभीर मामलों में निर्णय लेने में आसानी होगी.
क्या होता है ब्रेन डेथ : ब्रेन डेथ की स्थिति स्थाई होती है, जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है. किसी रोगी को ब्रेन डेड घोषित होने के बाद परिवार के साथ बात करके अंगदान का निर्णय लिया जाता है, जिससे किसी जरूरतमंद को नया जीवन मिल सके. ब्रेन स्टेम दिमाग का निचला हिस्सा होता है, जो रीढ़ की हड्डी से जुड़ा होता है. ब्रेन स्टेम शरीर के महत्वपूर्ण केंद्रों (जिसमें श्वसन व हृदय शामिल हैं) को नियंत्रित करता है.
राजधानी के हटिया निवासी 30 वर्षीय सुशांत कुमार सिंह की पिछले साल 22 मार्च को यूके-लंदन में मृत्यु हो गयी थी. वहां के डॉक्टर के परामर्श से परिवार ने सुशांत के शरीर के विभिन्न अंगों को दान करने का फैसला लिया था. इनमें सुशांत की आंखें, आंख के टश्यिू, लिवर, किडनी, हार्ट और पेनक्रियाज शामिल थे. इसका लाभ वहां लंबे समय से अंग प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे चार मरीजों को मिला था. उनके पिता सुरेंद्र कुमार सिंह ने रिम्स को इस तरह की मान्यता दिये जाने को लेकर संतोष प्रकट किया है. उन्होंने कहा कि इससे झारखंड में भी अब अंगदान से कइयों को जीवनदान मिल सकेगा.