Sarhul Festival: आज सरहुल की शोभायात्रा निकलेगी. इसके पहले गुरुवार को सुबह से ही केकड़ा और मछली पकड़ने में लोग जुटे रहे. केकड़ा व मछलियों को सुरक्षित रसवा घर में रख दिया गया. परिवार के मुखिया ने उपवास रखा. दूसरी बेला में पुरखों को बिना तेल के बनी चावल की रोटी, पानी और तपावन अर्पित किया गया. पूजा के बाद लोगों ने उपवास तोड़ा. शाम को जल रखाई पूजा के लिए पानी लाने के लिए पाहन व उनके सहयोगी तालाब और अन्य जलस्रोत गये. वहां से पानी लेकर सरना स्थल पहुंचे, जहां उन्होंने दो घड़ों में पानी रखा. धूप- धुवन किया. दीप जलाये और अर्पण किया.
सिंगबोंगा, अन्य देवताओं और पुरखों को स्मरण किया. बुरी ताकतों को भी नहीं भूले. पूजा के क्रम में पांच मुर्गे- मुर्गियों की बलि दी गयी. इसके बाद तपावन, साल के फूल और अरवा के पकवान अर्पित किये गये. घड़ों और सरना के पेड़ों पर अरवा धागा बांधा और टीका-सिंदूर किया. साल के वृक्ष पर अर्पण लगाया. वहां दीया रखा. घड़ों में साल के कुछ फूल और अरवा चावल डाला. सृष्टिकर्ता के नाम पर तीन जगह चावल रखे. देवी-देवताओं से प्रार्थना की कि इन घड़ों को यहां रख रहे हैं, जिन्हें कल देख कर बारिश और खेती की भविष्यवाणी करेंगे. यह प्रार्थना है कि इस साल अच्छी बारिश हो. खेत खलिहान भरे-पूरे हों. संसार में सभी खुशहाल रहें. शुक्रवार को पूजा के बाद लोग सरहुल की शोभायात्रा के लिए निकलेंगे.
सरहुल पूर्व संध्या समारोह में विभिन्न आदिवासी छात्रावास व संगठनों के युवाओं ने आदिवासी पारंपरिक नृत्य का मनभावन प्रदर्शन किया. लाल पाड़ की साड़ी, खोंगसो, जुड़ा, पैड़ी व अन्य आभूषणों से सजी युवतियां और पगड़ी, धोती, गंजी पहने युवकों ने बन में सरई फूल फूले, गोटा जंगल चरेका दिसे…, नौर पूंपन पेलो मेझेरकी, भगजोगनी लेखा लवकारकी की बरा लगदी रे…, काला चिआ भइया, छैला सिंगार पेलोन काला चिआ…, जतरा बेचा-बेचा किचरी गा मड़िखिया…, एकाइया बेचा केरकय किचरी गा रंगा मंजाई चांदो एंदेर चांदो यो, कुला लेखा अरेगा लागी…, हुसानूम कादय हसानुम बरदय, जंबूटोलन बलेदन बअदय…, ओका रेदो बाबा सारजोम बाहा… आदि गीतों पर कदम से कदम मिला कर सुंदर नृत्य पेश किये. एकल गीत भी पेश किये.
यह आयोजन गुरुवार सरना नवयुवक संघ ने रांची विवि के मोरहाबादी स्थित दीक्षांत मंडप परिसर में किया. समाज को उत्कृष्ट योगदान देने के लिए डॉ करमा उरांव, डॉ शीतल मलुआ, महादेव टोप्पो व डॉ मीनाक्षी मुंडा को सेवा सम्मान- 2023 से सम्मानित किया गया. सरना नवयुवक संघ द्वारा प्रकाशित सरना फूल पत्रिका के 42वें अंक का लोकार्पण भी हुआ.
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सरहुल प्रकृति का पर्व है. पहाड़, जंगल, नदी- नाले, जो कुछ पुरखों से मिला है, उन्हें सहेज कर रखने की आवश्यकता है. जहां इन्हें बचाने का काम नहीं किया जाता, वहां आपदाएं आती हैं. इस पूर्वसंध्या समारोह में सभी मिलजुल कर उत्सव मना रहे हैं. इस संस्कृति को संजो कर रखने की जरूरत है. संकल्प लेने की आवश्यकता है कि हम पेड़ नहीं काटेंगे और पौधे लगायेंगे. डॉ करमा उरांव ने कहा कि सरहुल पर हम उस अलौकिक शक्ति की आराधना करते हैं, जो पूरे ब्रह्मांड, प्रकृति और जीवन का संचालन और नियंत्रण करती है. इस शक्ति का अहसास हमारे पुरखों ने किया और इसे विरासत में हमें दिया है. सरना कोड हमें धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एकजुट करेगा. कार्यक्रम में झारखंड ओपन यूनिवर्सिटी के वीसी त्रिवेणी नाथ साहू, सरन उरांव, डॉ सीता कुमारी, प्रो धीरज उरांव, डॉ विनोद कुमार सोय, डॉ मनय मुंडा, उमेश नंद तिवारी, प्रो महामनी उरांव, डॉ नरेश भगत आदि शामिल हुए. आयोजन में डॉ हरि उरांव, सचिव विरेंद्र उरांव ने अहम भूमिका निभायी.
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