Sarhul Festival: आज से प्रकृति पर्व सरहुल के अनुष्ठान शुरू हो जायेंगे. सरहुल दो शब्दों से बना है, सर और हूल. सर मतलब सरई या सखुआ फूल. हूल यानी क्रांति. इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया. मुंडारी, संताली और हो-भाषा में सरहुल को ‘बा’ या ‘बाहा पोरोब’, खड़िया में ‘जांकोर’, कुड़ुख में ‘खद्दी’ या ‘खेखेल बेंजा’, नागपुरी, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली भाषा में इस पर्व को ‘सरहुल’ कहा जाता है.
सरहुल पूजा के क्रम में 23 मार्च को युवा केकड़ा और मछली पकड़ने के लिए जायेंगे. हातमा मौजा के जगलाल पाहन ने बताया कि आदिवासी समाज इसे सृष्टि की उत्पत्ति से जोड़ कर देखता है. मछली और केकड़े ने ही समुद्र के नीचे की मिट्टी को ऊपर लाकर यह धरती बनायी है. फसल की बुवाई के समय इन नर और मादा केकड़ों का चूर्ण बीजों के साथ बोया जाता है, इस आस्था के साथ कि जिस तरह केकड़े के अनगिनत बच्चे होते हैं, उसी तरह फसल भी बड़ी मात्रा में होगी. ऐसी मान्यता भी है कि एक बार जब भयंकर अनावृष्टि हुई थी, तब मानव ने ककड़ोलता (केकड़े की रहने की जगह) में जाकर अपने प्राणों की रक्षा की थी.
इस दिन परिवार के मुखिया उपवास रखेंगे. दूसरी बेला में पुरखों को बिना तेल के बनी चावल की रोटी, पानी और तपावन (हड़िया) अर्पित किया जाता है. इसके बाद परिवार के मुखिया उपवास तोड़ेंगे. शाम 7:30 बजे पाहन सहयोगियों के साथ जल रखाई पूजा का पानी लाने के लिए नदी, तालाब और चुआं जायेंगे. फिर पाहन व सहयोगी पानी लेकर सरना स्थल जायेंगे. वहां विधि-विधान के दो घड़ों में पानी रखेंगे. इस क्रम में पारंपरिक रीति-रिवाज से धुवन-धूप करेंगे, गोबर लीप कर स्थल को पवित्र करेंगे. मिट्टी का दीया जलायेंगे और अर्पण करेंगे. चावल और साल के फूल को घड़ा के जल में डालेंगे. घड़ा और साल के पेड़ पर अरवा धागा के तीन-तीन चक्कर बांधेंगे. इन दाेनों घड़ों में तीन जगह अर्पण लगाया जाता है.
झारखंड के विद्यार्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं है. विश्वविद्यालय और कॉलेज में पढ़ानेवाले शिक्षकों का कर्तव्य है कि वह उन्हें सही मार्गदर्शन दें. हम सभी झारखंड के विकास के साथ-साथ यहां की परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाने में अपना अहम योगदान दें. सरहुल प्रकृति का सबसे बड़ा पर्व है. यह पर्व जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने का संदेश देता है. ये बातें रांची विवि के कुलपति डॉ अजीत कुमार सिन्हा ने कहीं. वह बुधवार को रांची वीमेंस कॉलेज के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग द्वारा साइंस ब्लॉक में सरहुल महोत्सव पर आयोजित विशेष कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे.
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इस अवसर पर कुलपति ने कहा कि रांची वीमेंस कॉलेज इस सरहुल पर अपने यहां ट्राइबल फूड फेस्टिवल का वृहद आयोजन करे. इसमें विश्वविद्यालय मदद करेगा. कॉलेज के विकास के लिए रांची विवि हर सकारात्मक प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार है. कॉलेज में स्थित हॉल, हॉस्टल, बाथरूम और कक्षा रूम को दुरुस्त कराया जायेगा. कैंपस में बिजली की समुचित व्यवस्था होगी. इससे पूर्व कॉलेज की प्रभारी प्राचार्या डॉ सुप्रिया ने कुलपति और अतिथियों का गुंगू पत्ते की बनी टोपी तथा सरई के फूलों से स्वागत किया. सरहुल मंत्र का वाचन डॉ पूनम सिंह चौहान ने किया. संचालन शैलजा बाला तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सीमा प्रसाद ने किया. कार्यक्रम में बीएड विभाग का भी सहयोग रहा.
मौके पर छात्राओं ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये. इस अवसर पर रजिस्ट्रार डॉ मुकुंद चंद्र मेहता, वित्त पदाधिकारी डॉ केएएन शाहदेव, सीवीएस उपनिदेशक डॉ स्मृति सिंह सहित साइंस ब्लॉक प्रोफेसर इंचार्ज डॉ लिलि बनर्जी, आटर्स ब्लॉक प्रोफेसर इंचार्ज डॉ विनिता सिंह, डॉ करमी मांझी, कंचन वर्णवाल, जयंती कुमारी, डॉ मंजुला, डॉ विप्लवी, डॉ अलबीमा जोजो, जयमुनी, किरण कुल्लू, डॉ सविता मुंडा, सीलमनी, नीलिमा सोरेन, इंदिरा बिरुआ, सोनी, लक्ष्मी पिंगुवा, राधिका उरांव और माइकल टेटे आदि उपस्थित थे.
केंद्रीय सरना समिति भारत के तत्वावधान में सरहुल को लेकर जोगो पहाड़ सरना स्थल में बैठक हुई. अध्यक्षता मुख्य संरक्षक माधो कच्छप ने की. नारायण उरांव ने कहा कि शुक्रवार को भव्य शोभायात्रा निकाली जायेगी. समिति सहायता वाहन चलायेगी, जिसकी मदद से बिछड़े बच्चों व बुजुर्गों को घर तक पहुंचाया जायेगा.
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रांची के चुनवा टोली सरना समिति की बैठक हुई़ पवन तिर्की ने बताया कि 23 मार्च को डोम टोली अखड़ा से कोनका मौजा सरना स्थल तक कलश यात्रा निकाली जायेगी.