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झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र, आज सदन में आएंगे 1932 खतियान आधारित स्थानीयता समेत तीन विधेयक

झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आज चौथा दिन है. आज सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीयता समेत तीन विधेयक सभा पटल पर रखेगी. इसमें एक आरक्षण से जुड़ा विधेयक भी शामिल है.

Jharkhand Assembly Winter Session 2023: झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान, चौथे दिन यानी बुधवार, 20 दिसंबर को सदन में ‘खतियान आधारित झारखंडी पहचान से संबंधित विधेयक’ सदन के पटल पर रखा जायेगा. विधानसभा से यह विधेयक पहले भी पारित कर राज्यपाल को भेजा गया था, लेकिन राज्यपाल ने अपने संदेश के साथ विधेयक को लौटा दिया था. इस विधेयक में नियोजन में प्राथमिकता के मामले में आपत्ति जतायी गयी थी और संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप नहीं बताया गया था.

  • सरकार ने दिये हैं संकेत, फिर से उसी रूप में लगाया जायेगा स्थानीय विधेयक

  • आंदोलनकारी परिवार के एक सदस्य को नौकरी में 5% आरक्षण विधेयक भी लाया जायेगा

मालूम हो कि स्पीकर रबींद्र नाथ महतो ने शीतकालीन सत्र के पहले दिन यानी 15 दिसंबर को राज्यपाल का संदेश पढ़कर सभा में सुनाया था. इसके बाद विधेयक की पुरानी कॉपी विधायकों को वितरित की गयी थी. सरकार ने संकेत दिये हैं कि विधेयक फिर से उसी रूप में लगाया जायेगा. इसके साथ सदन में आंदोलनकारी परिवार के एक सदस्य को नौकरी में पांच प्रतिशत आरक्षण से संबंधित विधेयक भी लाया जायेगा. राज्य सरकार ने झारखंड आंदोलनकारी परिवार को जीवन में एक बार सरकारी नौकरी में आरक्षण देने का प्रावधान किया है. इसके साथ ही प्रज्ञान विश्वविद्यालय से जुड़ा विधेयक भी लाया जायेगा. प्रज्ञान विश्वविद्यालय ने झारखंड में संस्थान नहीं खोलने की इच्छा जतायी है.

ये तीन विधेयक लाए जाएंगे :

  1. 1932 खतियान आधारित झारखंडी पहचान से संबंधित विधेयक

  2. आंदोलनकारी परिवार के एक सदस्य को नौकरी में 5% आरक्षण विधेयक

  3. प्रज्ञान विश्वविद्यालय से जुड़ा विधेयक

तीसरे दिन जमकर हुआ हंगामा

सदन की कार्यवाही के तीसरे दिन पहली पाली में जमकर हंगामा हुआ. विपक्ष के विधायक नियोजन नीति, रोजगार सहित अन्य मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ लगातार नारेबाजी कर रहे थे. भाजपा के मुख्य सचेतक विरंची नारायण, सचेतक जयप्रकाश भाई पटेल और विधायक भानु प्रताप शाही को स्पीकर रबींद्रनाथ महतो ने शीतकालीन सत्र की कार्यवाही से निलंबित कर दिया है. विधायक विरंची नारायण और भानु प्रताप शाही शून्यकाल के दौरान विपक्ष द्वारा लाये गये कार्यस्थगन पर चर्चा के लिए अड़ गये. दोनों विधायक एक साथ वेल में घुस गये. दूसरे विधायक भी उनके साथ चले गये. स्पीकर विपक्ष के रवैये से नाराज थे. वह बार-बार विधायकों से अपनी सीट पर जाने का आग्रह कर रहे थे. लेकिन हो-हंगामा थम नहीं रहा था. स्पीकर गुस्साये और बोले : हम आपसे यहां तर्क करने के लिए नहीं आये हैं. विधायकों से कहा – चलिए निकलिए. उन्होंने कहा : दो-तीन लोगों के कारण अव्यवस्था की स्थिति है. निर्देश दिया कि बिरंची नारायण और भानु प्रताप शाही को शीतकालीन सत्र के पूरे काल के लिए निलंबित किया जाये. इसके बाद उन्होंने जेपी पटेल को भी बाहर करने का निर्देश दिया. स्पीकर ने कहा कि कल से आग्रह कर रहा हूं कि सदन में अपनी-अपनी सीट पर जाइये. लेकिन तुरंत-तुरंत लॉबी में चले आत हैं. यह कौन सा तरीका है. प्रश्नकाल को हंगामा काल बना दिया गया है.

विपक्ष बाधा डालेगा, तो स्पीकर को संज्ञान लेना ही पड़ेगा : सीएम

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा में विपक्ष के तीन विधायकों के निलंबन के सवाल पर मीडिया से कहा कि बदले की भावना से यह सरकार कोई काम नहीं करती. विपक्ष के मुद्दे क्या हैं और विधायकों का निलंबन क्यों हुआ, यह तो स्पीकर बतायेंगे. लेकिन, झारखंड की राजनीति में विपक्ष के नेता हैं येन-केन-प्रकारेण सदन की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न करने में लगे हैं. ऐसी स्थिति में स्पीकर को संज्ञान लेना ही पड़ता है.

इस बार का सत्र कई मायनों में खास

बता दें कि झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर से शुरू हुआ है. यह सत्र 21 दिसंबर तक चलेगा. आज सत्र का चौथा दिन हैं. इस बार का सत्र कई मायनों में अहम है. सरकार इस सत्र में डोमिसाइल और आरक्षण वृद्धि जैसे विधेयक को वापस ला रही है, जबकि इससे पहले पारित हुए इन विधेयकों को राज्यपाल अलग-अलग कारणो से लौटा चुके हैं. अब देखना है कि राज्य सरकार राज्यपाल के आपत्ति पर विचार करती है या फिर बिना संशोधन के वह दुबारा भेज देती है. इसके अलावा झारखंड की पांचवीं विधानसभा के गठन के करीब चार साल बाद यह पहला ऐसा सत्र है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खाली नहीं है. झारखंड बीजेपी के विधायक दल के नए नेता को विधानसभा स्पीकर ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दी है. इससे पहले बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता थे, लेकिन उन पर चल रहे दल-बदल केस की वजह से उन्हें नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता नहीं दी गई थी. इस मामले को लेकर कई बाद विधानसभा में हंगामा भी हुआ था.

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