Jharkhand Foundation Day: झारखंड गठन के 22 साल हो रहे हैं. कई मामले में अपना प्रदेश काफी समृद्ध हुआ है. किसी प्रदेश के लिए सिर्फ आर्थिक समृद्धि ही काफी नहीं होती. साहित्य, कला और संस्कृति की समृद्ध विरासत भी राज्य के विकास में मदद करती है. झारखंड की कला और संस्कृति में विविधता है. इसे अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीके से सींचा है. ऐसे ही लोगों में एक हैं सूरज खन्ना. सूरज खन्ना रंगकर्मी हैं और उन्होंने रंगकर्म को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दिया है.
सूरज खन्ना बताते हैं कि वर्ष 1986 में उनके कुछ मित्र अचानक शाम को कुछ घंटों के लिए गायब हो जाते थे. बाद में पता चला कि वे सभी रिहर्सल करने चले जाते हैं. मित्रों के बिना शाम अधूरी थी. इसलिए वह भी उनके साथ रिहर्सल पर चले गये. एक ही संवाद को बोलने के तरीके और उसकी भाव-भंगिमा पर गौर किया. साथी कलाकार नहीं आते, तो उनका प्रॉक्सी करने लगे. इसी दौरान कई नये लोगों से मुलाकात हुई, जो रंगमंच के साथ-साथ साहित्य में भी काफी ऊंचा स्थान रखते थे.
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सूरज खन्ना ने उनसे काफी कुछ सीखा. अकस्मात वर्ष 1988 में वसुंधरा आर्ट्स का निर्माण हुआ. वह इससे जुड़ गये. वसुंधरा आर्ट्स के बैनर तले पता चला कि रांची में नाटक करने वाली अनेकों संस्थाएं हैं, जो अपने स्तर पर नाटकों का मंचन करती है. सभी एक-दूसरे से लगभग अपरिचित हैं. सिर्फ संस्थाओं/ रंगकर्मियों ने एक-दूसरे का नाम सुना है. उन सभी को जोड़ने और सभी रंग संस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में उनका पूर्ण विवरण लेना/मिलना सूरज खन्ना की दिनचर्या में शामिल हो गया. हिंदी के साथ-साथ बांग्ला रंगमंच के लोगों से भी उनकी मुलाकात होने लगी.
श्री खन्ना कहते हैं कि कॉलेज में पहली बार सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर लक्ष्मीकांत वैष्णव रचित ‘नाटक नहीं’ का मंचन किया. फिर इंटर कॉलेज ड्रामा कॉम्पटीशन में ‘नाटक नहीं’ के मंचन के लिए पुरस्कार मिला. इसके साथ ही मेरी रंगमंच की अंतहीन यात्रा शुरू हो गयी. ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’, ‘नाटक नहीं’, ‘वापसी’, ‘चरणदास चोर’ (नागपुरी में), ‘एक और द्रोणाचार्य’, ‘अवरुद्ध इतिहास’, ‘बापू की हत्या हजारवीं बार’ जैसे नाटकों का निर्देशन किया. सूरज खन्ना ने कई अखिल भारतीय प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ नाटक के पुरस्कार जीते.
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सूरज खन्ना देश के कई रंगकर्मियों से मिले. उनके बीच रहे. उनसे रंगकर्म के बदलाव और रंगमंच में प्रयोग को समझा. उसके अनुरूप खुद को ढालने की कोशिश की. वसुंधरा आर्ट्स के मंचित नाटक ‘अवरुद्ध इतिहास’, ‘शोभा एक इतिहास’, ‘1942 लव स्टोरी’, ‘कब्रिस्तान का ओपनिंग’ का सह-निर्देशन किया. रांची, जमशेदपुर की कई नाट्य संस्थाओं के साथ नाटकों में अभिनय भी किया.
सूरज खन्ना ने ज्वलंत मुद्दों पर कई नुक्कड़ नाटकों का प्रदर्शन किया, जिसमें ‘जनता पागल हो गयी है’, ‘पागलों का दरबार’, ‘आह्वान’, ‘शव यात्रा’ का नुक्कड़ प्रदर्शन किया. मंचीय नाटक ‘व्हाट्सएप बस दो मिनट’, ‘गोलू की शादी’ लिखी. झारखंड सरकार के कार्यक्रम शनि परब में इसका मंचन किया गया और काफी सराहना भी मिली.
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नाटकों के पूर्वाभ्यास में किसी स्थायी जगह का नहीं होना काफी कष्टदायक रहा. उनके साथियों ने जिला स्कूल के मैदान से लेकर रांची के फुटपाथों तक पर नाटक का पूर्वाभ्यास किया. शिल्पी, देशप्रिय क्लब, त्रिकोण हवन कुंड, यूथ क्लब, कांग्रेस कार्यालय, चडरी स्कूल, बाल कृष्णा स्कूल जैसी कई सहयोगी संस्थाओं ने कम समय के लिए ही सही, उनकी टीम को रिहर्सल के लिए जगह दी. सूरज खन्ना कहते हैं कि रांची में एक समुचित प्रेक्षागृह का नहीं होना हमेशा खलता था. हमने इसे चुनौती मानकर यूनियन क्लब हॉल को प्रेक्षागृह बनाने का कोशिश की.
वह बताते हैं कि हमारे रंगकर्मी नाटकों के लिए कुर्सी लगाते, हॉल को झाड़ू से साफ करते, विंग्स लाते, पर्दा टांगते, लाइट, माइक की सुविधा देने के साथ-साथ नाटकों पर आने वाली लागत निकालने के लिए टिकटों की बिक्री भी किया करते थे. खुशी तब होती थी, जब किसी अन्य संस्था या किसी विभाग के द्वारा नाटक मंचन के लिए हमें बुलाया जाता था. तब हमें प्रेक्षागृह सजाने की चिंता नहीं होती थी.
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दुर्गा पूजा के समय कुछ आयोजकों ने नाटक का मंचन करने पर हमें पैसे दिये, तो हमारे जोश को नयी ऊर्जा मिली. नाटक आज भी मेरे अंदर ऊर्जा का संचार करता है. हमारे कई प्रदर्शनों का सराहा गया. नाटक करने के अलावा हमने रंग परिचर्चा की शुरुआत भी की, जिसके तहत हम नाटकों के हर विषय पर बात करते हैं. ‘एक मुलाकात’ कार्यक्रम के तहत शहर और देश के रंगकर्मियों से रू-ब-रू होते हैं. उसे यूट्यूब चैनल पर प्रसारित करते हैं.
किसी भी रंग संस्था के साथ मिलकर काम करते हैं. उनका सहयोग करने में हमें खुशी होती है. वर्ष 1999 में पहली बार विश्व रंगमंच दिवस पर नाट्य उत्सव का आयोजन करके हमने विश्व रंगमंच दिवस मनाया. हीरानागपुर महोत्सव का आयोजन करके हमने कई स्कूली छात्रों को रंगमंच से जोड़ा. शहर के कुछ स्कूलों में नाट्य प्रशिक्षण भी दिया, ताकि लोग रंगकर्म से जुड़ें और रंगकर्म को समझें.