23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Jharkhand: तीन आदिवासी रचनाकार को मिला प्रथम जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य पुरस्कार

पुरस्कार समारोह सह बहुभाषाई आदिवासी-देशज काव्यपाठ का आयोजन रविवार को प्रेस क्लब सभागार में किया गया. प्रथम जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य पुरस्कार तीन आदिवासी साहित्यकारों को दिया गया. इनमें आदिवासी रेमोन लोंग्कू, आदिवासी सुनील गायकवाड़ और आदिवासी कवयित्री उज्ज्वला ज्योति तिग्गा शामिल हैं.

Ranchi News: प्रथम जयपाल-जुलियुस-हन्ना साहित्य पुरस्कार तीन आदिवासी साहित्यकारों को दिया गया. इनमें अरुणाचल प्रदेश के तांग्सा आदिवासी रेमोन लोंग्कू (कोंग्कोंग-फांग्फांग), महाराष्ट्र के भील आदिवासी सुनील गायकवाड़ (डकैत देवसिंग भील के बच्चे) और धरती के अनाम योद्धा के लिए दिल्ली की उरांव आदिवासी कवयित्री उज्ज्वला ज्योति तिग्गा (मरणोपरांत) शामिल हैं. पुरस्कार समारोह सह बहुभाषाई आदिवासी-देशज काव्यपाठ का आयोजन रविवार को प्रेस क्लब सभागार में किया गया. यह आयोजन यूके स्थित एएचआरसी रिसर्च नेटवर्क लंदन, टाटा स्टील फाउंडेशन और प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन के सहयोग से झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा ने किया.

मुख्य अतिथि जम्मू-कश्मीर के वरिष्ठ गोजरी आदिवासी साहित्यकार जान मुहम्मद हकीम ने कहा कि अपने पुरखों को याद कर उन्हें तारीख के पन्नों में रखना हमारा फर्ज है. वे जम्मू कश्मीर के आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. गुर्जर बकरवाल समुदाय के लोग वहां के हर जिले में हैं. देश के अन्य आदिवासियों की तरह ही उनकी भी परिस्थितियां हैं. गोजरी भाषा जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बोलियों में तीसरे स्थान पर है. इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाये. वहां साहित्य के क्षेत्र में काफी काम हो रहा है. रेमोन लोंग्कू ने कहा कि उन्हें यहां बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला है. उन्होंने कृषि कार्य के समय गाया जाने वाला गीत ”साइलो साइलाई असाइलाई चाई…” (चलो गाते हैं गीत) सुनाया. सुनील गायकवाड़ ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में महाराष्ट्र में आदिवासी क्रांतिकारियों को तब की व्यवस्था डकैत कहती थी. ”डकैत देवसिंग भील के बच्चे” उनके दादा की कहानी है.

Also Read: देश के 160 बिजनेस स्कूलों में एडमिशन के लिए जेवियर एप्टीट्यूड टेस्ट 8 जनवरी को, जल्द करें आवेदन
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को विस्तार दे रहा आदिवासी साहित्य : डॉ अनुज

डॉ अनुज लुगुन ने कहा कि आदिवासी साहित्य जैविक व देशज स्वर के साथ अपनी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति को विस्तार दे रहा है. आदिवासी साहित्य की अभिव्यक्ति वैयक्तिक नहीं है, बल्कि यह सामूहिक संवेदनाओं को आलोचनात्मक रूप से अभिव्यक्त कर रही है. मौके पर सुंदर मनोज हेम्ब्रम व डॉ सावित्री बड़ाईक ने भी अपनी अपनी बात रखी. बहुभाषाई काव्यपाठ भी हुआ. आयोजन में साहित्य संस्कृति अखड़ा की अध्यक्ष ग्लोरिया सोरेंग, महासचिव वंदना टेटे, अश्विनी कुमार पंकज आदि ने अहम भूमिका निभायी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें