झारखंड परिवहन विभाग की अलग दुनिया है. सरकारें बदल जाती है. मंत्री और अधिकारी बदल जाते हैं. पर दलालों का नेटवर्क यथावत रहता है. अब तक अपने खिलाफ हर आदेश को धत्ता बताते हुए ये दलाल विभाग में ही कुंडली मार कर बैठे हैं. इनका नेटवर्क ऐसा है कि झारखंड बनने के बाद से अब तक इनका गोरखधंधा जारी है.
विभाग ने बसों के परमिट सहित अन्य कार्यों के लिए व्यवस्था ऑनलाइन कर दी है, लेकिन इनका नेटवर्क उसके बाद भी बना हुआ है. परिवहन विभाग के कार्यालय में दलालों के प्रवेश पर रोक का आदेश कई बार जारी हुआ. पर हर आदेश पर दलालों का नेटवर्क भारी पड़ा.
झारखंड में भले ही तीन वर्षों से अंतरराज्यीय परमिट बनाने का काम बंद था, लेकिन दूसरे राज्यों से बसों के लिए जारी परमिट पर प्रति हस्ताक्षर कराने का काम बदस्तूर जारी था. परमिट बनानेवाले एजेंट ने बताया कि विभाग में सक्रिय पांचों दलालों का कनेक्शन इतना तगड़ा है कि आप इनको दरकिनार कर शायद ही कोई काम करा पायें. उन्होंने कहा कि नये परमिट का काम हो या फिर एक से दूसरे राज्य के लिए वाहनों के परमिट पर प्रति हस्ताक्षर का.
झारखंड से विभिन्न राज्यों के लिए 250 से 300 वाहनों के परमिट और प्रतिहस्ताक्षर का काम होता है. सूत्र बताते हैं कि विभाग द्वारा तय शुल्क के अलावा आठ से 10 हजार रुपये प्रति बस दलाल चढ़ावा लेते हैं. दस में से चार हजार रुपये दलाल स्वयं रखते हैं. बाकी के छह हजार रुपये परमिट वाले टेबल पर पहुंचाते हैं. टेबल का इंचार्ज छह में से चार हजार स्वयं रख लेता है और दो हजार अपने से ठीक ऊपर वाले को देता है. पहले दोनों के बीच में बड़ा बाबू बैठते थे. वर्तमान में बड़ा बाबू नहीं हैं.
जानकार बताते हैं कि परिवहन विभाग में पहले से चार दलाल सक्रिय हैं. ये हैं पंचानंद सिंह, मो नजीबुल्लाह उर्फ राजू, संजय कुमार और गुलशन कुमार. इन सबमें नया नाम विवेक कुमार का जुड़ गया है. यानी कुल पांच. इन सबका नेटवर्क झारखंड से बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ तक फैला है. बिना इनके राज्य के परिवहन विभाग में वाहनों का अंतरराज्यीय परमिट, परमिट का नवीकरण,
पुराने की जगह नये वाहनों का प्रतिस्थापन, वाहनों की समय-सारिणी और वाहनों का एक से दूसरे राज्य के परमिट के लिए प्रति हस्ताक्षर का काम शायद ही संभव हो. इनमें पंचानंद सिंह और नजीबुल्लाह एकीकृत बिहार में वहां के ट्रांसपोर्ट विभाग से जुड़े हुए थे. झारखंड बनने के बाद दोनों यहां से जुड़ गये. सरकार बदलती रही, मंत्री आते-जाते रहे, लेकिन ये सबके साथ तसवीर खिंचवा कर अपना बाजार बनाने में सफल रहे.
झारखंड राज्य परिवहन प्राधिकार में टैक्स के ड्राफ्ट में घोटाला सामने आया था. इसे लेकर 2009 में विभाग की ओर से तत्कालीन संयुक्त परिवहन सचिव राजेंद्र प्रताप सिन्हा ने प्राथमिकी करायी थी. इसी मामले में गुलशन कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. निगरानी विभाग ने भी पंचानंद सिंह व गुलशन कुमार के मामले में परिवहन विभाग को रिपोर्ट दी थी.
परिवहन विभाग में झारखंड से दूसरे राज्यों के लिए परमिट देने के लिए अलग-अलग टेबल है. हर टेबल पर एक एएसओ है. इसी में एक एएसओ मोनू मुंडा के खिलाफ शिकायत मिलने पर सचिव ने इन्हें परमिट के कार्य से मुक्त कर दिया था. मोनू झारखंड से बंगाल और बिहार काम देखते थे. इनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाये गये थे.
10 जनवरी 2008 को उस समय के परिवहन सचिव रहे सजल चक्रवर्ती के हस्ताक्षर से यह आदेश निकला था कि राजू नामक दलाल अवैध गतिविधियों में संलिप्त है. इसलिए आदेश दिया जाता है कि किसी भी परिस्थिति में इनका प्रवेश कार्यालय में न हो तथा कोई भी पदाधिकारी, कर्मचारी इनके साथ कोई संबंध नहीं रखे.
आदेश का अनुपालन नहीं होने पर दोषी पदाधिकारी और कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी. फिर 29 मार्च 2010 को तत्कालीन संयुक्त परिवहन आयुक्त ने संजय कुमार, पंचानंद सिंह और गुलशन कुमार के अलावा जमशेदपुर के बस संचालक दिलीप कुमार के परिवहन कार्यालय में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. आदेश में कहा गया था कि ये लोग विभागीय अफसरों के साथ अशोभनीय हरकत करते थे. जबरन कार्यालय में घुसते थे और सहायकों को प्रताड़ित करते थे. हो हंगामा और मारपीट करने का भी इन पर आरोप लगा था.
ऑनलाइन व्यवस्था में भी अगर लोग दलाल से काम कराते हैं, तो गलत है. पर यह बात सही है कि बिहार व छत्तीसगढ़ में आसानी से बसों का परमिट संचालकों को घर बैठे मिल जाता है, लेकिन झारखंड में आसानी से परमिट नहीं मिलता .
कृष्णमोहन सिंह, अध्यक्ष, रांची बस ऑनर्स एसोसिएशन
परिवहन विभाग में दलालों और एजेंटों के माध्यम से ही अधिकांश काम होते हैं, क्योंकि विभाग की ऑनलाइन व्यवस्था व अप्लाई करने का तरीका काफी जटिल है. पिछले दिनों बस परमिट के लिए विभाग ने बैक डेट से पत्र निकाल कर महज एक दिन का समय आवेदन के लिए दिया. कई वाहन मालिकों को पता भी नहीं चला.
किशोर मंत्री, अध्यक्ष झारखंड चेंबर