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झारखंड : यूनिसेफ का जागरूकता अभियान, जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात को स्तनपान कराना पहले टीके का करता काम

विश्व स्तनपान दिवस के मौके पर यूनिसेफ की ओर से परिचर्चा का आयोजन हुआ. इस परिचर्चा में नवाजात को मां का गाढ़ा दूध पिलाने पर जोर दिया गया. इस मौके पर कहा गया कि जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात को स्तनपान करना पहला टीका के तौर पर काम करता है.

Jharkhand News: विश्व स्तनपान सप्ताह के मौके पर यूनिसेफ ने बच्चों को स्तनपान कराने को लेकर कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल एवं घरों में एक सक्षम तथा अनुकूल वातावरण के निर्माण को लेकर परिचर्चा का आयोजन किया. इस मौके पर कहा कि जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात को मां का स्तनपान करना पहला टीका के तौर पर काम करता है.

पहला टीका के तौर पर काम करता है मां का गाढ़ा पीला दूध

परिचर्चा के दौरान कहा गया कि इस साल विश्व स्तनपान सप्ताह का थीम माताओं के लिए एक सक्षम और अनुकूल वातावरण बनाने की जरूरत है, ताकि अपने बच्चों को अस्पताल, घर व कार्यस्थलों पर बिना किसी समस्या के स्तनपान करा सकें. कहा कहा गया कि जिन नवजात को जीवन के पहले घंटे में स्तनपान कराया जाता है, उनके जीवित रहने की संभावना काफी अधिक होती है. जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को पिलाया जाना वाला मां का गाढ़ा पीला दूध, जिसे कोलेस्ट्रम भी कहा जाता है, पोषक तत्वों और एंटीबॉडी से भरपूर होता है और वह बच्चे के लिए पहला टीका के तौर पर काम करता है.

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अस्पतालों में स्तनपान नीति पर सख्ती से ध्यान केंद्रित करने की जरूरत : डॉ राघवेंद्र

स्तनपान अभ्यासों में सुधार तथा शिशु दूध के विकल्प, फीडिंग बॉटल्स एवं शिशु आहार (उत्पादन आपूर्ति एवं वितरण विनियमन) अधिनियम, 1992 और 2003 में संशोधित (आईएमएस अधिनियम) के कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए राज्य में सर्वोत्तम प्रथाओं और पहलों के बारे में बताते हुए बाल स्वास्थ्य के उप निदेशक डॉ राघवेंद्र नारायण शर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य सुविधाओं को अस्पतालों में स्तनपान नीति पर सख्ती से ध्यान केंद्रित करना चाहिए और नर्सों को इसके बारे में जागरूक किया जाना चाहिए. यह भी महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विज्ञापन कंपनियां, समुदाय के सदस्य तथा मीडिया इसे कार्यान्वित करने में अपनी भूमिका अदा करें.

शिशुओं को कम से कम दो साल तक करायें स्तनपान

उन्होंने कहा कि हमें सामान्य परिस्थितियों में शिशु दूध के विकल्प फीडिंग बॉटल्स तथा शिशु दूध के उत्पादों को कभी भी बढ़ावा नहीं देना चाहिए. संबंधित कर्मचारियों को इस पर लगातार प्रशिक्षित किया जाता है और इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से स्तनपान के शीघ्र शुरुआत (प्रसव के एक घंटे के भीतर) विशेष स्तनपान और कम से कम दो साल तक स्तनपान जारी रखने के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने में मदद मिलेगी.

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स्तनपान के प्रति माता-पिता को जागरूकर करने की कोशिश : आस्था अलंग

यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन, एडवोकेसी एवं पार्टनरशिप स्पेशलिस्ट आस्था अलंग ने बैठक के उद्देश्य एवं लक्ष्य के बारे में बताते हुए कहा कि विश्व स्तनपान सप्ताह दुनिया भर में मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है. इसके तहत सामूहिक प्रयासों के माध्यम से स्तनपान के प्रति जागरूकता, इसके प्रचार-प्रसार एवं प्रोत्साहन देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है. इस साल स्तनपान सप्ताह का थीम कामकाजी माता-पिता के लिए स्तनपान को प्रोत्साहन तथा जन्म के पहले घंटे के भीतर विशेष स्तनपान है, जो कि लोगों को स्तनपान और पालन-पोषण के संबंध में कामकाजी माता-पिता के दृष्टिकोण के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है.

स्तनपान को लेकर अन्य कारकों पर फोकस जरूरी

उन्होंने कहा कि यह स्तनपान के लिए कामकाजी महिलाओं को पेड लीव तथा कार्यस्थल पर स्तनपान के लिए सहयोग और समर्थन को बढ़ावा देने स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तियों तथा संगठनों के साथ जुड़ना, कामकाजी परिस्थितियों में सुधार तथा स्तनपान के लिए सहायता प्रदान करने के लिए ठोस कार्रवाई करने जैसे कारकों पर फोकस करता है. कहा कि यह कार्यशाला मौजूदा साझेदारियों को मजबूत करने तथा स्तनपान में निवेश के लिए नये तरीके तलाशने का एक अवसर था.

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स्तनपान को लेकर एक सक्षम वातावरण बनाने की जरूरत

उन्होंने मीडिया की भूमिका एवं सहयोग पर जोर देते हुए कहा कि स्तनपान को लेकर एक सक्षम वातावरण बनाने के लिए सार्वजनिक धारणाओं, दृष्टिकोणों और प्रथाओं को आकार देने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. मीडिया नीतिगत बदलावों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है, जो कि खामियों की ओर ध्यान आकर्षित करके तथा कार्यस्थलों पर बेहतर वातावरण का निर्माण करके सामाजिक मानदंडों को बढ़ावा दे सकते हैं. इसके अलावा मीडिया विशेष स्तनपान के अभ्यास को अपनाने को लेकर लोगों को प्रेरित करने में भी अपना योगदान दे सकते हैं.

मां के स्तनपान से नवजात को सुरक्षात्मक एंटीबॉडी मिलता है : प्रीतिश नायक

बच्चों के लिए शुरुआती स्तनपान के लाभों को लेकर तकनीकी जानकारी प्रदान करते हुए यूनिसेफ के पोषण विशेषज्ञ प्रीतीश नायक ने कहा कि बच्चों, माताओं तथा समाज के लिए स्तनपान के लाभ व्यापक हैं. स्तनपान मां से नवजात को सुरक्षात्मक एंटीबॉडी प्रदान करता है और शिशुओं को जीवन- घातक संक्रमणों से बचाता है. इसके अलावा बच्चों में स्वस्थ मस्तिष्क के विकास को बढ़ाने तथा तीव्र एवं बचपनजनित बीमारियों को रोकने में भी सहायता करता है.

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मां और नवजात के बीच शुरुआती संपर्क में ना बने कोई बाधा

उन्होंने कहा कि सामान्य प्रथाएं जैसे बच्चे को मां का प्रथम दूध कोलोस्ट्रम नहीं देना, किसी बुजुर्ग द्वारा बच्चे को शहद खिलाना या स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा नवजात को विशिष्ट तरल पदार्थ जैसे कि चीनी पानी या फार्मूला दूध देना ये सभी उपाय नवजात और मां के बीच शुरुआती संपर्क में बाधा उत्पन्न करता है. इसके बारे में और जागरूकता फैलाने की जरूरत है और इसलिए यह कार्यशाला बहुत ही सामयिक और महत्वपूर्ण है.

स्तनपान है स्मार्ट निवेश, शिशु मृत्यु रोकने व आईक्यू को मिलता है बढ़ावा

उन्होंने कहा कि स्तनपान एक स्मार्ट निवेश है. स्तनपान में निवेश से शिशु मृत्यु को रोकने में मदद मिलती है और यह शारीरिक विकास और आईक्यू को भी बढ़ावा देता है. यह सैकड़ों हजारों बच्चों के जीवन को बचा सकता है और बड़े आर्थिक लाभ भी प्रदान कर सकता है. यह प्राकृतिक है, जो पूरी तरह निःशुल्क है. पिछले दो दशकों में स्तनपान दर बढ़ाने को लेकर महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है. झारखंड को कुपोषण मुक्त राज्य बनाने के लिए हमें कुछ अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है. स्तनपान के लाभ के रूप में बीमारी और स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम होगी और उत्पादकता में भी वृद्धि होगी.

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शिशु को छह महीने तक सिर्फ मां का दूध ही मिले : डॉ वनेश माथुर

यूनिसेफ के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ वनेश माथुर ने बच्चों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए विशेष स्तनपान के महत्व पर प्रकाश डाला. कहा कि कम से कम पहले छह महीने तक बच्चे को सिर्फ स्तनपान कराने से उनमें शिशु मृत्यु के प्रमुख दो प्रमुख कारणों जैसे की दस्त और निमोनिया जैसी बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है. साथ ही संक्रमण, एलर्जी और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम के जोखिम को भी यह कम करता है. यह बच्चों के मानसिक विकास में भी सुधार करता है और माताओं को गर्भाशय तथा स्तन कैंसर से बचाता है. बच्चे का जन्म चाहे सामान्य प्रसव के माध्यम से हो या सिजेरियन, बच्चों को पहले छह महीने तक सिर्फ मां का दूध ही दिया जाना चाहिए.

स्तनपान शिशुओं के लिए है कई फायदे

स्तनपान के फायदे के अलावा, यह मां के लिए भी लाभदायक होता है, क्योंकि यह मदर्स को रिलैक्स करने और संबंध बनाने का एक समय प्रदान करता है. इसके लिए स्तनपान मां के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है और मदर्स को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण रिश्ते में एक खास भूमिका देता है.

पूर्ण पोषण : स्तनपान एक पूर्ण पोषण का स्रोत होता है. मां के स्तन से निकलने वाला दूध शिशु को सभी आवश्यक पोषक तत्वों से भर देता है, जो उसके विकास और स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं.

इम्यूनिटी को बढ़ावा देना : स्तनपान से शिशु को मां के दूध में मौजूद एंटीबॉडीज से लाभ मिलता है, जो उसकी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं. इससे शिशु को अनेक बीमारियों से बचाने में मदद मिलती है.

मां-बच्चे का बंधन : स्तनपान के दौरान मां-बच्चे के बीच एक खास बंधन बनता है. यह बच्चे के विकास के लिए भावनात्मक संबंध और विशेष समय को साझा करने में मदद करता है.

नेत्ररोग की रक्षा : स्तनपान से नवजात को नेत्ररोगों से बचाने के लिए लाभ मिलता है, क्योंकि मां के दूध में आंतरिकता से भरी हुई एंटीबॉडीज होती है, जो नेत्ररोगों के खिलाफ रक्षा करती है.

बुद्धि विकास : कुछ अध्ययनों के अनुसार, स्तनपान कराने से शिशु के मस्तिष्क के विकास में मदद मिलती है. यह शिशु के बुद्धि विकास को बढ़ावा देता है और उसकी कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है.

– स्तनपान कराने वाले शिशु को अस्थमा, दिल की बीमारियों, मधुमेह, सुरक्षा, और संक्रमणों से बचाने में मदद मिल सकती है.

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परिचर्चा में इनकी रही उपस्थिति

इस परिचर्चा में रांची सदर हॉस्पिटल के प्रबंधक जिरेन एस कंडुन्ना, यूनिसेफ की कार्यकारी सहयोग शेरिन ऐनी राजू, रांची सदर हॉस्पिटल के प्रसूति वार्ड की जीनएनएम डोरोथी किपोथी और प्रसूति वार्ड की एएनएम बबीता मंडल के अलावा आशा कार्यकर्ताओं ने भी भाग लिया तथा स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों, कार्यस्थलों और समुदायों में प्रारंभिक स्तनपान शुरुआत के बारे में अपने अनुभव साझा किये. इस अवसर पर रिम्स की डॉ आशा किरण, राज्य कार्यक्रम समन्वयक एवं एसपीएम -एनएचएम अकाई मिंज,प्रिंसिपल कॉन, रिम्स की सुधादेवी एम, रिम्स की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ किरण त्रिवेदी समेत अन्य स्वास्थ्य अधिकारी भी उपस्थित थे.

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