14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Vishwakarma Puja 2023: इनके कर्म और परंपरा से है भगवान विश्वकर्मा का नाता

बड़ी बेटी की शादी हो गयी. छोटी बेटी दिल्ली में काम करती है. बेटा लोहार का काम नहीं करना चाहता है. दुकान का संचालन एक हेल्पर के सहयोग से हो रहा है. अब सिर्फ रिपेयर का ही काम कर पाते हैं.

Vishwakarma Puja 2023: अंजुमन प्लाजा के समीप झंटू मिस्त्री अपनी छोटी सी दुकान में पारंपरिक लोहार का काम करते हैं. दुकान में आज भी कच्चा लोहा और इस्पात के इस्तेमाल से हथौड़ा, छेनी, धौंकनी, छुरी, चाकू, हसिया, चापर, कटारी, खेती के औजार, बर्तन आदि बनाते हैं. झंटू मिस्त्री ने बताया कि दादा प्रह्लाद मिस्त्री ने 1932 में दुकान की शुरुआत की थी. उस समय रांची में यह काम करनेवाले गिनती के लोहार थे. झंटू ने बताया कि उसने आठवीं तक की पढ़ाई की और पिता राजेंद्र मिस्त्री से काम सीखा. पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो काम में हाथ बंटाने लगा. झंटू ने बताया कि आधुनिकीकरण के दौर में अब लोहार का काम मशीन आधारित हो गया है. ऐसे में यह काम करने वाला मैं आखिरी पीढ़ी हूं. परिवार में एक बेटा और दो बेटी है, पर इस पेशे को किसी ने नहीं स्वीकारा. बड़ी बेटी की शादी हो गयी. छोटी बेटी दिल्ली में काम करती है. बेटा लोहार का काम नहीं करना चाहता है. दुकान का संचालन एक हेल्पर के सहयोग से हो रहा है. अब सिर्फ रिपेयर का ही काम कर पाते हैं.

10 वर्षों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे बबलू

मूल रूप से कृष्ण नगर, पश्चिम बंगाल के बबलू पाल मूर्तिकार हैं. बीते 10 वर्षों से मूर्तिकला को अपना पेशा बनाया. बबलू कहते हैं कि रांची में प्रो प्रोदुतपाल और भतूत पाल ने काम सिखाने में मदद की और काम दिया. इससे सालों भर विभिन्न पूजा अनुष्ठान के लिए प्रतिमा तैयार करने का काम मिलता रहा है. बबलू ने बताया कि उनके दादा बोद्दीनाथ पाल भी मूर्तिकला के जानकार थे. परिवार के अन्य सदस्यों को उनसे ही प्रशिक्षण मिला. बबलू कहते हैं समय के साथ इस पेशे में उन्होंने विश्वकर्मा को पाया. इससे काम को बेहतर करने की लालसा जगी. लोग अब प्रतिमा निर्माण में थीम तय करते हैं, जिसे पूरा करने में काफी शोध करना पड़ता है. डिजिटल युग में बबलू भी अन्य शहरों में चल रहे ट्रेंड से परिचित होकर अपना काम पूरा करते हैं. उन्होंने बताया कि परिवार में पत्नी और दो बेटा है. बड़ा बेटा विजय पाल भी मूर्तिकला सीख कर काम कर रहा है. आपसी सहयोग से परिवार का गुजारा हो रहा है.

डोकरा आर्ट में बनायी विशेष पहचान

चंपारण की नवादा बस्ती निवासी रमेश मलहार झारखंड के डोकरा आर्ट के प्रसिद्ध कलाकार हैं. डोकरा आर्ट के क्षेत्र में उनका नाम अदब से लिया जाता है. डोकरा आर्ट इनका पुश्तैनी काम है. विरासत में मिली इस कला को आज भी अपने परिवार के साथ मिलकर बड़ी कुशलता से कर रहे हैं. अपने बाप, दादा के काम को कभी छोटा नहीं समझा. भगवान विश्वकर्मा के स्वरूप से जुड़े अपने इस काम को गर्व से कर रहे हैं. दादा और पिता गांव-गांव घूम कर पीतल के बर्तन बेचा करते थे. रमेश ने भी यह किया. 2014 से झारक्राफ्ट से जुड़ने का मौका मिला. अपने हुनर को और निखारा अपने काम को झारखंड की संस्कृति और लोक कला से जोड़ा. झूमर और पैथकर पेंटिंग के थीम को लेकर डोकरा आर्ट करने लगे.

Also Read: Vishwakarma Puja 2023: समाज के विश्वकर्मा, जिन्होंने संकट आने पर खुद तैयार किया मैकेनिकल वेंटिलेटर का डिजाइन

झारक्राफ्ट के सहयोग से इनके निर्देशन में स्वतंत्रता आंनदोलनकारियों भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धो कान्हू, फूलो झानो आदि के स्टैच्यू बन रहे हैं. साथ हीं डोकरा के मोमेंटो , ज्वेलरी, हिरण,नगाड़ा, मांदर, हाथी, मछली जाली फ्रेम और नेट फ्रेम आदि तैयार कर रहे हैं. इसके लिए हजारीबाग स्थित अरबन हाट के डोकरा सेक्शन में अपनी टीम के चार सहयोगियों के साथ पत्नी और बेटे-बहू संग डोकरा आर्ट में अपना योगदान दे रहे हैं. अच्छे प्रदर्शन के लिए कई बार झारक्राफ्ट से सम्मानित भी हो चुके हैं. इनके हाथ के बने डोकरा आर्ट देश-विदेश तक पहुंच रहे हैं. रमेश कहते हैं कि डोकरा आर्ट बहुत मेहनत और चुनौतियों से भरा आर्ट है. एक लंबे प्रोसेस के बाद यह तैयार होता है. जिसे पूरा करने में 16 – 20 दिन लगते हैं. मुझे खुशी है कि झारक्राफ्ट के माध्यम से अपने पूर्वजों के काम को एक पहचान दे सका.

अर्बन हाट से जुड़ कार्य कर रहे मांडू के गुडन मल्हार

रामगढ़ के मांडू प्रखंड के गुडन मल्हार डोकरा आर्ट पर काम करते हैं. यह इनका पारंपरिक कार्य है. 2010 से झारक्राफ्ट के अर्बन हाट से जुड़ कर कार्य कर रहे हैं. डोकरा आर्ट से संबंधित अपनी कला को देश-विदेश तक पहचान दिलवा रहे हैं. वह कहते हैं कि हम लोगों का यह काम पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. मल्हार और मल्होर जाति के लोग पहले पायला, छोलनी और झांझरा जैसा सामान बनाते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह डोकरा आर्ट का रूप लेता चला गया. डोकरा आर्ट में झारखंड की संस्कृति और त्योहार को दर्शाते हुए मोमेंटो भी तैयार किया जाता है, जो काफी पसंद किया जाता है. गुडन बताते हैं कि वह मोमेंटो के अलावा जरूरत का सामान और डिजाइनर पायला आदि भी बनाते हैं. यह काम उन्होंने अपने पिता और दादा से सीखा है. वह चाहते हैं कि उनके बच्चे भी इसे सीखें और इस कला को लेकर आगे बढ़ते रहें. डोकरा आर्ट से जुड़े एक सामान को बनाने में 16 से 20 दिन लग जाते हैं. अगर बारिश हुई, तो परेशानी बढ़ जाती है. उन्हें यह काम कर काफी खुशी होती है.

नागपुर से ट्रेनिंग लेकर नीलमणि साहू रांची में कर रहे सोनार का काम

अपर बाजार सोनार पट्टी के नीलमणि साहू एंड ज्वेलर्स में सोनार का काम कर रहे कौशिक मल्लिक डिजाइनर ज्वेलरी बनाने में निपुण हैं. वे 10 वर्षों से सोनार के रूप में काम कर रहे हैं. यह पेशा अपनाने वाले परिवार के पहले सदस्य हैं. इस पेशे से परिचय नागपुर पहुंचने पर हुआ. वहां मौसा की ज्वेलरी दुकान है. वहां कारीगरों को देख कर काम सीखने की इच्छा हुई. उन्हें लगा कि डिजाइनर ज्वेलरी तैयार करने वालों की मांग बाजार में है. सोना, चांदी के अलावा डायमंड ज्वेलरी को भी आकार देने की कला में खुद को लगातार तराशता रहा. इसके बाद स्वतंत्र रूप से 2011 में इस पेशे को अपना लिया. काम सीखने के बाद फुफेरे भाइयों का परामर्श मिला, जो घराना ज्वेलरी बनाने का काम करते थे. इसमें डिजाइन की काफी मांग है. 10 लोगों का परिवार पूर्व मेदनीपुर के मेचेदा में रहता है. सोनार के रूप में उनकी मांग कम समय में अंगूठी को आकार देने के लिए है.

परिवार के लिए चाक ही विश्वकर्मा है

पुरुलिया रोड नया टोली के राजेश प्रजापति कुम्हार के पुश्तैनी पेशे से जुड़े हुए हैं. उनका परिवार बीते एक शताब्दी से कुम्हार का काम कर रहा है. पिता नारायण प्रजापति और उनसे पहले दादा भी कुम्हार का ही काम करते थे. परिवार के लिए चाक ही विश्वकर्मा है. समय के साथ स्कूली शिक्षा पूरी की, पर रोजगार के अवसर को तलाशने में चूक गया. इसके बाद पिता से काम सीखकर शौकिया तौर पर कुम्हार का काम करना शुरू किया. रुचि जगी तो इसे पार्ट टाइम पेशा बना लिया. इससे समय-समय पर त्योहार को देखते हुए दीया, मिट्टी के बर्तन बनाते हैं. वर्तमान में दुर्गा पूजा और दीपावली की तैयारी कर रहे हैं. पर्व के दौरान काम ज्यादा रहता है, जिससे अतिरिक्त रोजगार हो जाता है. राजेश ने बताया कि अब इसमें राेजगार की संभावना नजर नहीं आती है. मिट्टी के चाक के बाद इलेक्ट्रॉनिक चाक आने से काम आसान हुआ है, पर लागत के अनुरूप रोजगार नहीं मिलता है. ऐसे में बाकी समय में गोलगप्पे की बिक्री कर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें