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World Elephant Day: कब रुकेगा हाथी-मानव संघर्ष? झारखंड में 2017 से अब तक 510 इंसानों की जा चुकी है जान

झारखंड में हाथियों की चपेट में आने के कारण हर वर्ष करीब 100 लोगों की मौत हो रही है. पिछले वर्ष एक अप्रैल से 31 मार्च 2023 तक 96 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 2017 से लेकर अब तक यह आंकड़ा 510 तक पहुंच चुका है.

झारखंड में हाथी-मानव का संघर्ष काफी पुराना है. यहां हाथियों की संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन जंगलों में रहनेवाले गजराज अब सड़कों पर आ रहे हैं. गांवों में प्रवेश कर रहे हैं. घरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इनकी चपेट में आकर कई लोगों की मौत हो चुकी है. स्थिति यह है कई गांवों के ग्रामीण हाथियों के डर से रात भर जागते रहते हैं. ऐसा हाथियों के भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर आने के कारण हो रहा है. क्योंकि घने जंगल कम हो रहे. जंगल कम होने का कारण हाथी भोजन की तलाश में आबादी वाले इलाके में आ जा रहे हैं. इससे टकराव बढ़ रहा है.

सात हाथी भी गंवा चुके हैं जान

आंकड़ों के अनुसार झारखंड में हाथियों की चपेट में आने के कारण हर वर्ष करीब 100 लोगों की मौत हो रही है. पिछले वर्ष एक अप्रैल से 31 मार्च 2023 तक 96 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 2017 से लेकर अब तक यह आंकड़ा 510 तक पहुंच चुका है. इसका कारण है मानव और हाथियों के बीच टकराव. इस दौरान लोग कई ऐसे उपाय कर देते हैं, जिससे हाथियों की भी मौत हो जाती है. यही कारण है कि इस दौरान सात हाथियों की जान जा चुकी है. मरने के कारण अलग-अलग हैं.

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बढ़ती जा रहीं घटनाएं

राज्य में हाथियों से लोगों के टकराव के बाद मौत की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. 2009-10 में एक साल में 54 लोगों की मौत मानव-हाथी टकराव से हुई थी. 2015-16 में यह आंकड़ा 66 तक पहुंच गया. वहीं 2022-23 में करीब 96 इंसानों की जान जा चुकी है.

राज्य गठन के बाद 1.6 लाख घटनाओं के लिए मिला मुआवजा

राज्य में सबसे अधिक मकान, पशु, अनाज की क्षति हाथियों से होती है. राज्य गठन से लेकर पिछले वित्तीय वर्ष तक करीब 1.6 लाख घटनाएं हो चुकी हैं. मुआवजा के रूप में करीब 45.75 करोड़ रुपये का वितरण किया जा चुका है. इस दौरन फसल क्षति के 5637, पशु क्षति के 107, मकान क्षति के 1940 तथा अनाज क्षति के 1260 मामले रिकाॅर्ड किये गये.

जब एक हाथी ने 12 दिनों में 16 लोगों की जान ले ली

इसी वर्ष फरवरी में झुंड से बिछड़े एक हाथी ने झारखंड में अलग-अलग स्थानों पर 12 दिनों में 16 लोगों को मार दिया था. इस घटना के बाद इटकी वाले इलाके में धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लगानी पड़ गयी थी. इस हाथी ने राजधानी के आसपास, हजारीबाग, चतरा, लोहरदगा, रामगढ़ में भी उत्पात मचाया. आखिरकार भारत सरकार को राज्य के वन प्रशासन से रिपोर्ट मांगनी पड़ गयी. इस हाथी ने 20 फरवरी को लोहरदगा में चार लोगों को मार दिया था, जिसमें दो महिलाएं शामिल थीं.

शहरों में बढ़ रहा फॉरेस्ट कवर अति घने वन क्षेत्र में आयी कमी

इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट सर्वे रिपोर्ट-2021 के अनुसार झारखंड में करीब 110 वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़े हैं. मजेदार तथ्य है कि चिन्हित वन भूमि पर जंगल घटे हैं. वहीं जो वन भूमि के रूप में चिन्हित नहीं है, वहां जंगल बढ़े हैं. राज्य में चिन्हित वन भूमि 22390 वर्ग किमी है, लेकिन फॉरेस्ट कवर 23721 वर्ग किमी है. रिपोर्ट के अनुसार 23721 वर्ग किमी का 48 फीसदी जंगल चिन्हित वन भूमि से बाहर है. मतलब, राज्य में फॉरेस्ट कवर तो बढ़ा है, लेकिन जंगल शहरों में ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2019 की तुलना में अति घने वन क्षेत्र करीब दो फीसदी कम हुए हैं.

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ग्रामीणों की ट्रेनिंग जरूरी

वन विभाग के पूर्व मुख्य वन प्रतिपालक राजीव रंजन का कहना है कि गजराज कभी लोगों को मारते नहीं हैं. लोग अपनी गलती से हाथी की चपेट में आ जाते हैं. हमलोगों ने उसके हैबीटेट को नुकसान पहुंचाया है. उनका कॉरिडोर बिगाड़ दिया है. जंगल काट दिये हैं. यहीं कारण है भोजन की तलाश में गजराज सड़क पर आ जा रहे हैं. इस कारण घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके लिए वन विभाग और लोगों को सतर्क रहना होगा. ग्रामीणों के लिए भी प्रशिक्षण जरूरी है. ट्रैकिंग सिस्टम को बेहतर करने की जरूरत है.

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