रांची जिला अंतर्गत बुढ़मू प्रखंड के चैनगड़ा पंचायत के गेसवे गांव में आज घने जंगल है. 24 एकड़ में आम का बगीचा है. जो ग्रामीणों की आजीविका का एक साधन है. अब ग्रामीणों को घर बनाने के लिए बाहर से लकड़िया खरीद कर नहीं लाना पड़ता है. गांव में लकड़ी मिल जाती है. दातुन पत्ता के लिए दूसरे गांवों के जंगल पर नहीं निर्भर रहना पड़ता है. हालांकि अब प्रधानमंत्री आवास योजना और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है जिसके कारण घर बनाने और इंधन के लिए पेड़ों की कटाई कम हुई है. पर एक वक्त ऐसा था जब गांव में जंगल इतने कम हो गये थे कि गांव से दातुन और पत्ता भी लोगों को नहीं मिलता था. फिर गांव के ही एक व्यक्ति ने इस समस्या को दूर करने की ठानी. उसने अपनी पूरी जिंदगी जंगलों को बचाने में लगा दी. आज गांव में पर्याप्त जंगल है. विश्व पर्यावरण दिवस पर पढ़िये पवन कुमार की रिपोर्ट
“शिक्षित नहीं पर समझदार हूं”
मैनेजर महतो, बुढ़मू प्रखंड में एक ऐसा नाम है जो पिछले साढ़े चार दशक से पेड़ और जंगल बचाने के लिए निरंतर कार्य करते चले आ रहे हैं. जंगल बचाने की प्रेरणा कैसे मिली के सवाल पर मैनेजर महतो साफ कहते हैं, “सब लोग कहता है कि पेड़ भी सांस लेते हैं, हम उसको तो नहीं देखे हैं लेकिन यह जानते हैं कि पेड़ से हमें हवा मिलता है जिसे हम सांस लेते हैं. इसलिए पेड़ हमारे लिए जरूरी है”. उन्होंने कहा की जब से होश संभाला है तब से जंगल की देख-रेख कर रहे हैं.
Also Read: लॉकडाउन से प्रकृति को मिली संजीवनी, पर्यावरण में आया सुधार, तो दिखने लगे दुर्लभ पक्षीभगवान की तरह पेड़ की पूजा करते हैं मैनेजर
मैनेजर महतो बताते है कि वो भगवान की तरह पेड़ की पूजा करते हैं, पेड़ पौधों से हमारी धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है. सखुआ पत्तों का भी इस्तेमाल धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है. ग्रामीणों को पेड़ और जंगल बचाने के प्रति जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक अप्रैल को गांव में वन रक्षा बंधन मनाया जाता है. इस मौके पर गांव की ग्रामीण पेड़ की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं और पेड़ों के राखी बांधते हैं. कार्यक्रम के आयोजन का खर्च खुद मैनेजर महतो उठाते हैं. पिछले वर्ष उन्होंने एक हजार स्कूली बच्चों को बीच आम का फल वितरित किया था. वन के प्रति उनके प्यार को देखते हुए वन विभाग भी उनकी मदद करता है.
बढ़ा जंगल, जलस्तर में आया सुधार
गेसवे गांव में एक समय ऐसा भी था जब ग्रामीणों को अपने गांव में दातुन पत्ता तक नसीब नहीं होता था. कुआं खोदने पर 50 फीट की बाद पानी मिलता था. पर आज गांव में दातुन पत्ता और लकडी के लिए ग्रामीणों गांव से बाहर नहीं जाना पड़ता है. कृषि उपकरण बनाने के लिए जंगल से लकड़ी मिल जाती है. आज गांव में कुआं खोदने पर 30-35 फीट में पानी मिल जाता है. कुछ वर्ष पहले तक जंगल इतना घना था कि यहां पर हाथी आकर रहते थे.
एक एक गुठली से तैयार किया जंगल
मैनेजर महतो ने बताया कि एक बार वो मंडा पूजा में झूलन (पूजा के दौरान लकड़ी से बांधकर ऊंचाई पर घुमाया जाना) कर रहे थे. इस दौरान गिरने से उनकी कमर दूट गयी थी. फिर जब थोड़ा ठीक हुए तब गांव में घूमने लगे. इस दौरान आम खाकर फेंकी गयी गुठलियों से आम के पौधे निकले गये थे. मनैजर महतो ने सभी आम के पौधौं को लाकर एक जगह लगाना शुरू किया. एक-एक करके 24 एकड़ जमीन में उन्होंने आम के पौधे लगा दिये. जब पौधे बड़े हो गये तब गांव के गोपाल महतो उनकी मदद के लिए आगे आये. जिनकी उसी आम के बगीचा सर्पदंश से मौत हो गयी. आज यहां पर हरे भरे आम के जंगल है. उनकी मेहनता का परिणाम है कि आज वन विभाग ने उन्हें गांव में वन बचाने के लिए नियुक्त किया है. उन्हें प्रतिमाह इसके लिए प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है.
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मैनेजर महतो बताते है कि शुरूआती दौर में जब ग्रामीणों को पेड़ काटने से रोकते थे उस समय ग्रामीणों से कई बार मारपीट की नौबत आ जाती थी. एक बार तो पौधौं को बकरी खा गयी थी, इसके कारण मैनेजर महतो ने बकरी को मार दिया था. इस जुर्म के लिए उन्हें दिन भर थाना में रखा गया था और तीन हजार रुपये जुर्माना भी भरना पड़ा था. पर इसके बाद भी मैनेजर ने हिम्मत नहीं हारी और परिणाम सबसे सामने है. अब गांव में 99 एकड़ में घना जंगल है. इसके अलावा 24 एकड़ में आम का बगीचा है.
अब शरीर बूढ़ा हो गया है : मैनेजर महतो
कभी बेहतरीन फुटबॉल प्लेयर रहे मैनेजर महतो फुटबॉल खेल के जरिये गांव के युवाओं को एकजुट करके रखा करते थे. इसके कारण इनके काम में युवाओं का साथ मिलता था. पर अब वक्त बदल गया है. लोग जागरूक हुए हैं पर युवा नशा और मोबाइल में लगे रहते हैं. उनके बाद जंगल बचाने के लिए कौन आयेगा. इसकी चिंता है. ग्रामीणों को मैनेजर कहते हैं कि जिस तरह से अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं उसी तरह पेड़ का भी ध्यान देना चाहिए. हमारे जीवन के लिए पेड़ जरूरी है.
Posted By : Pawan Singh