रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा. 2 सप्ताह से अधिक खांसी हो, शाम को बुखार आए, छाती में दर्द महसूस हो, भूख का अहसास नहीं हो, वजन कम होता जाए या बलगम में खून आ रहा हो. ऐसे लक्षण दिखें, तो सावधान हो जाएं. ये टीबी (यक्ष्मा) के लक्षण हैं. इसे हल्के में नहीं लें. स्वास्थ्य केंद्र जाकर जरूर जाएं कराएं. आप जागरूक होंगे, तो समय से इलाज कराने से आप जल्द स्वस्थ हो जाएंगे. आज 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस है. टीबी एक्सपर्ट कहते हैं कि टीबी मरीज अगर इलाज नहीं कराए, तो उसकी लापरवाही से एक साल में 10-15 लोग प्रभावित हो सकते हैं. टीबी मुक्त झारखंड का सपना साकार करने के लिए स्वास्थ्य विभाग युवाओं को वर्कशॉप के जरिए जागरूक करने में जुटा है. पंचायत प्रतिनिधियों को जागरूक कर टीबी मरीजों की खोज करने और मुफ्त इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने में मदद करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
जागरूकता से लेकर जांच में लायी जा रही तेजी
झारखंड में टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) को हराने के लिए सामूहिक प्रयास किए जा रहे हैं. एक तरफ जहां जांच में तेजी लायी जा रही है, वहीं युवाओं और पंचायत प्रतिनिधियों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक मरीजों की पहचान तेजी से हो सके और उनका इलाज किया जा सके. इसके लिए निक्षय मित्र बनाए जा रहे हैं, जो टीबी मरीजों को गोद लेते हैं और उन्हें पौष्टिक भोजन (पोषण) मुहैया कराने में मदद करते हैं. कॉरपोरेट घराने भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. निक्षय पोषण योजना के तहत मरीजों को राशि उपलब्ध करायी जाती है.
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2152 निक्षय मित्रों ने टीबी मरीजों को लिया है गोद
झारखंड में 31,204 टीबी मरीज हैं. इनमें से 22,763 टीबी मरीजों को निक्षय (NI-KSHAY) मित्रों द्वारा गोद ले लिया गया है. ये मरीजों को हर माह फूड बास्केट के जरिए पोषण उपलब्ध कराते हैं. फूड बास्केट में प्रोटीन डायट (चना, दाल, गुड़, मूंगफली, तेल इत्यादि) दिया जाता है. फिलहाल 2152 निक्षय मित्र हैं. कोई भी व्यक्ति या संस्थान निक्षय मित्र बनकर टीबी मरीजों को गोद ले सकता है. स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, उषा मार्टिन, टाटा स्टील, सीसीएल, हिंडालको एवं डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी समेत अन्य संस्थानों ने निक्षय मित्र बनकर टीबी मरीजों को गोद लिया है और वे हर महीने उन्हें फूड बास्केट उपलब्ध करा रहे हैं.
निक्षय पोषण योजना से आर्थिक मदद
सरकार की ओर से चलायी जा रही निक्षय पोषण योजना के तहत टीबी मरीजों को आर्थिक मदद की जाती है, ताकि वे पौष्टिक भोजन ले सकें. उनके खाते में 500 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं. अधिक जानकारी आप टॉल फ्री नंबर 1800-11-6666 पर ले सकते हैं.
टीबी से 2022 में 1464 लोगों की गयी जान
टीबी एक्सपर्ट कहते हैं कि किसी भी उम्र के व्यक्ति को टीबी हो सकता है, लेकिन 18-45 वर्ष की उम्र के कामकाजी लोग ज्यादा इससे प्रभावित हो रहे हैं. करीब 50 फीसदी लोग इस उम्र के हैं. देश में टीबी की मृत्य दर 3-5 फीसदी है, जबकि झारखंड में 2.55 फीसदी है. वर्ष 2021 में टीबी से 1450 लोगों की मौत हुई थी, जबकि वर्ष 2022 में 1464 लोगों ने जान गंवाई. ऐसे में टीबी को कभी भी हल्के में नहीं लें. स्वास्थ्य केंद्रों पर इसकी मुफ्त जांच होती है.
छुआछूत की बीमारी नहीं है टीबी
देश को टीबी मुक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान चलाया जा रहा है. झारखंड में टीबी को परास्त करने के लिए स्वास्थ्य विभाग हर स्तर पर प्रयास कर रहा है. न सिर्फ जांच की सुविधाएं बढ़ी हैं, बल्कि फ्री इलाज को लेकर लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है. इसके लिए वर्कशॉप भी की जा रही है. राज्य यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ रंजीत प्रसाद ने प्रभात खबर डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि टीबी फ्री झारखंड के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है. युवाओं को जागरूक करने के लिए कॉलेजों में जाकर वर्कशॉप की जा रही है. पंचायत प्रतिनिधियों को टीबी मुक्त गांव व पंचायत बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. अस्पतालों में फ्री इलाज की सुविधा है. इलाज से मरीज पूरी तरह ठीक हो सकते हैं. कम से कम छह माह का कोर्स लेना होता है. ये छुआछूत की बीमारी नहीं है. इलाज से पूरी तरह ठीक हो जाता है.
सघन रोगी खोज अभियान 24 मार्च से
राज्य क्षय रोग, प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन केंद्र के निदेशक डॉ निंद्या मित्रा ने प्रभात खबर डॉट कॉम से बातचीत में कहा कि टीबी मरीजों को चिन्हित करना बड़ी चुनौती है. इसके लिए युवाओं और पंचायत प्रतिनिधियों के साथ-साथ सामूहिक जागरूकता की कोशिश की जा रही है. जन आंदोलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि झारखंड को जल्द से जल्द टीबी फ्री बनाया जा सके. वे बताते हैं कि वर्ष 2019-21 के बीच टीबी प्रिविलेंस सर्वे कराया गया था. इसमें देवघर के सारठ ब्लॉक के एक गांव में एक भी टीबी का मरीज नहीं पाया गया था. पूर्व मंत्री कुणाल षाड़ंगी के नेतृत्व में बहरागोड़ा में सघन टीबी रोगी खोज अभियान चलाया गया था और उसे टीबी मुक्त घोषित किया गया था. टीबी मुक्त झारखंड की दिशा में 24 मार्च से 13 अप्रैल तक सघन रोगी खोज अभियान चलाया जाएगा. इसके तहत घर-घर जाकर सहिया व स्वास्थ्यकर्मी छिपे टीबी मरीजों की पहचान करेंगे.
ऐसे होती है टीबी मरीजों की जांच
टीबी की जांच पहले ट्रूनेट मशीन से होती है. इसमें पुष्टि के बाद सैंपल इटकी (रांची) जांच केंद्र में भेजा जाता है. इसमें कल्चर एवं एलपीए की सुविधा है. प्रथम एवं द्वितीय स्तरीय दवाइयों की संवेदनशीलता की जांच की जाती है. इस जांच के आधार पर इलाज किया जाता है. डीएनए आधारित जांच की व्यवस्था ब्लॉक लेवल पर है. डिफरेंसिएटेड टीबी केयर के तहत शुरुआती स्तर पर ही उपचार किया जाता है. ये सुविधा पूरे राज्य में है.
टीबी चैंपियन ऐसे करते हैं मदद
झारखंड में 631 ट्रेंड टीबी चैंपियन हैं. रांची में 11, बोकारो में 17, गुमला 17 समेत अन्य जिलों में टीबी चैंपियन कार्यरत हैं. टीबी चैंपियन हर महीने कम से कम 9 टीबी मरीजों से मिलकर फीडबैक लेता है. एनजीओ रीच (REACH) सरकार के साथ मिलकर कार्य कर रहा है. अमित कुमार बताते हैं कि टीबी सर्वाइवर (मरीज) को तीन दिनों की ट्रेनिंग देकर टीबी चैंपियन बनाया जाता है. इस दौरान इन्हें टीबी के लक्षण, इलाज की व्यवस्था एवं सरकारी योजनाओं का लाभ समेत अन्य जानकारियां दी जाती हैं और उन्हें जागरूक किया जाता है. हर जन आरोग्य केंद्र में दो टीबी चैंपियन का सहयोग लिया जाएगा. इसलिए टीबी चैंपियन तैयार किए जा रहे हैं.
पूर्वी सिंहभूम में सर्वाधिक 4443 टीबी मरीज
जिला टीबी मरीज
सिमडेगा 350
देवघर 1577
खूंटी 345
लोहरदगा 378
बोकारो 1865
कोडरमा 438
गिरिडीह 1773
जामताड़ा 497
चतरा 601
पलामू 1659
लातेहार 633
रांची 3177
सरायकेला खरसावां 908
गढ़वा 1054
साहिबगंज 2044
धनबाद 1588
पश्चिमी सिंहभूम 2053
पूर्वी सिंहभूम 4443
गुमला 480
रामगढ़ 737
दुमका 1515
हजारीबाग 1015
पाकुड़ 888
गोड्डा 1186
झारखंड 31204