Astrotips: सांसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा, जो शादी के बाद संतान सुख नहीं चाहता होगा. किसी-किसी की संतान शादी के बाद समय पर होती है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनकी वैवाहिक जीवन काफी समय तक गुजर जाने के बाद भी बच्चे नहीं होते है. ज्योतिष में इसका भी कारण ग्रह नक्षत्रों की गलत स्थिति को बताया गया है. ज्योतिष में बताया गया है कि ये सब ग्रह नक्षत्रों की वजह से होता है. आइए ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से जानते है कि संतान होगी या नहीं…
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जब व्यक्ति की कुंडली में संतान योग कारक पुरुष होता है, तो पुत्र तथा कारक गृह स्त्री हो तो पुत्री प्राप्ति के योग बनते हैं.
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जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि और बुध योग कारक का निर्माण कर किसी विषम राशि में होते हैं, तो पुत्र और सम राशि में होते हैं, तो पुत्री का जन्म होता है.
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जब सप्तमान्शेष कोई पुरुष गृह हो तो पुत्र और स्त्री ग्रह हो तो पुत्री संतान सुख मिलता है.
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जब कुंडली में पुरुष और स्त्री गृह दोनों ही योग कारक होते हैं, तो उस व्यक्ति को पुत्र व पुत्री दोनों का सुख मिलता है.
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शुक्र – चन्द्रमा स्त्री कारक ग्रह होते है. सूर्य मंगल ब्रहस्पति पुरुष कारक ग्रह होते है.
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पंचम स्थान संतान का होता है. वहीं विद्या का भी माना जाता है. पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है. पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है.
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सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है. लेकिन जब गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है.
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पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है. यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है. मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पूर्ण पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र होता है.
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यदि पंचम स्थान पर बुध का संबंध हो और उस पर चंद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो वह संतान होशियार होती है. पंचम स्थान का स्वामी शुक्र यदि पुरुष की कुंडली में लग्न में या अष्टम में या तृतीय भाव पर हो और सभी ग्रहों में बलवान हो तो लड़की होती है.
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अगर पंचम स्थान पर मकर का शनि कन्या संतति अधिक होता है. कुंभ का शनि भी लड़की देता है. पुत्र की चाह में पुत्रियां होती हैं. कुछ संतान नष्ट भी होती है.
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संतान सुख पता करने के लिए सबसे पहले हमें पंचम स्थान का विश्लेषण करना होगा. पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा. पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पांचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है. यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता. यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं या तो संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है. वहीं अगर पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है. द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो संतान सुख उत्तम होकर लक्ष्मीपति बनता है.
पंचम स्थान का अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है. वहीं अगर पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है. पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा. गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है. सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती, इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ राहु-केतु और शनि के साथ हो तो संतान नहीं होती है.
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पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता. पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है.
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यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान सुख प्राप्ति में बाधा आती है.
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अगर कुंडली में नीच का राहु भी संतान नहीं देता. यदि राहु, मंगल, पंचम भाव में हो तो एक संतान होती है.
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पंचम स्थान में पड़ा चंद्र, शनि, राहु भी संतान सुख प्राप्ति में बाधक होता है. यदि योग लग्न में न हों तो चंद्र कुंडली देखना चाहिए.
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