Zero Shadow Day 2023 पर आपकी परछाई छोड़ देगी आपका साथ, जानें इस खगोलीय घटना के पीछे की वजह

Zero Shadow Day 2023: शून्य छाया दिवस एक अनोखी खगोलीय घटना है जो तब घटित होती है जब सूर्य ठीक सिर पर होता है. यह वह दिन है जब ऊर्ध्वाधर वस्तुओं की छाया गायब हो जाती है. बेंगलुरु में यह साल में दो बार होता है, एक उत्तरायण के दौरान और दूसरा दक्षिणायन के दौरान.

By Shaurya Punj | August 17, 2023 11:03 AM

Zero Shadow Day: 18 अगस्त 2023 को भारत में किसी भी चीज की परछाईं नहीं दिखेगी. क्योंकि उस दिन जीरो शैडो डे है. शून्य छाया दिवस एक अनोखी खगोलीय घटना है जो तब घटित होती है जब सूर्य ठीक सिर पर होता है. यह वह दिन है जब ऊर्ध्वाधर वस्तुओं की छाया गायब हो जाती है. बेंगलुरु में यह साल में दो बार होता है, एक उत्तरायण के दौरान और दूसरा दक्षिणायन के दौरान.

कब हुई थी खगोलीय घटना?

देश में ऐसे दो मौके उत्पन्न होते हैं, जब जीरो शैडो का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है. इसकी तारीख और समय क्षेत्र के आधार पर अलग हो सकती है. अंतिम बार 25 अप्रैल को बैंगलोर में यह नजारा देखने को मिला था और अब एक बार भी इसके साक्षी बनने के लिए आप तैयार हो जाएं.

बेंगलुरू में शून्य छाया दिवस

बेंगलुरु ने 25 अप्रैल 2023 को दोपहर 12:17 बजे शून्य छाया दिवस का अनुभव किया गया. जवाहरलाल नेहरू तारामंडल ने घटना से पहले एक विज्ञप्ति जारी की. बेंगलुरु में अगला जीरो शैडो डे 18 अगस्त को होगा.

कैसे देखें इस घटना को

जैसे ही इस खगोलीय घटना का समय नजदीक आएगा आपकी परछाई गायब होने लगेगी. यहां तक की आपके आस पास की बिल्डिंग्स, खंभों की भी परछाई गायब हो जाएगी. इस घटना को और बेहतर तरीके से समझने के लिए आप सूरज की रोशनी में पानी की बोतल, टॉर्च भी खड़ी करके रख सकेत हैं. 12.24 के चंद सेकंड बाद ही आपको एहसास होगा कि इन सभी चीजों की परछाई गायब हो गई है. इसे Zero Shadow Time कहते हैं.

लेकिन आखिर परछाई क्यों बनती है

सूरज की किरणें कभी भी किसी ऑब्जेक्ट, चाहे वो इंसान हो, जानवर या कोई वस्तु, उसे पार नहीं कर पाती. ऐसे में जब किरणें नीचे की तरफ आती हैं तो ऑब्जेक्ट से टकराती तो हैं, लेकिन उसे भेद नहीं पातीं, तब रुकी हुई रोशनी जितने हिस्से पर परछाई-नुमा अंधेरा छा जाता है. यही शैडो है. तो एक तरह से रोशनी की कमी है, जो परछाई कहलाती है. 

साल का सबसे बड़ा दिन

21 जून बुधवार को साल का सबसे लंबा दिन होता है. कभी दिन छोटे तो कभी रात छोटी होती है. कभी रात लंबी तो कभी दिन लंबे होते हैं. इसी तरह 21 जून को साल का सबसे लंबा दिन बताया गया है. इस दिन 12 घंटे की जगह 14 घंटे का दिन होता है. इसके बाद दिन घटना शुरू हो जाता है. सूरज की किरणें पृथ्वी पर लगभग 15 से 16 घंटे तक रहती हैं. इसलिए इस दिन को साल का सबसे बड़ा दिन कहते हैं. इसे सोल्सटाइस भी कहते हैं. इसका अर्थ है सूरज अभी भी खड़ा है. 21 सितंबर आते-आते दिन और रात एक बराबर हो जाते हैं. इसके बाद 21 सितंबर से रात लंबी होने का सिलसिला बढ़ने लगता है. ये प्रक्रिया 23 दिसंबर तक होती है.

साल का सबसे छोटा दिन

22 दिसंबर की रात सबसे लंबी होगी और दिन सबसे छोटा होगा. 22 दिसंबर से दिन कि लंबाई बढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा और 21 जून तक चलेगा. धरती पर सबसे छोटे दिन को विंटर सॉल्सटिस (Winter solstice) भी कहा जाता है. सोल्सटिस एक खगोलीय घटना है, जो कि दो बार, एक गर्मियों में और एक बार सर्दियों में होती है. हर साल सूर्य को जब उत्तर या दक्षिण ध्रुव से देखा जाता है तो साल का सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है. इस दिन सूर्य की किरण ज्यादा देर तक रहती है और 23 दिसम्बर साल का सबसे छोटा दिन होता है, क्योकि इस दिन सूर्य की किरण पृथ्वी पर कम समय के लिए रहती है.

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