Zero Shadow Day 2023: आज है शून्य छाया दिवस, जानें क्यों आज परछाई छोड़ देती है साथ
Zero Shadow Day 2023: बेंगलुरु में 18 अगस्त को ज़ीरो शैडो डे है. यानि इस दिन किसी भी चीज़ की परछाई नहीं बनती. हां, सूरज होगा लेकिन परछाई नहीं, लेकिन ऐसा कैसे संभव होता है चलिए जानते हैं.
Zero Shadow Day 2023: आज जीरो शैडे डे यानी शून्य छाया दिवस है. जीरो शैडो डे या शून्य छाया दिवस, यह सुनकर आप चौंकिए मत, क्योंकि यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना को सजोने वाला दिन है. बेंगलुरु में 18 अगस्त को ज़ीरो शैडो डे है. यानि इस दिन किसी भी चीज़ की परछाई नहीं बनती. हां, सूरज होगा लेकिन परछाई नहीं, लेकिन ऐसा कैसे संभव होता है चलिए जानते हैं.
क्या है जीरो शैडो डे?
कल सिर के ऊपर सूरज की पोजिशन इस तरह बनी कि लोगों को अपनी छाया भी दिखनी बंद हो गई. इसलिए इसे जीरो शैडो डे कहा जाता है. यह वो दिन होता है, जब दिन के एक खास समय पर सूर्य हमारे सिर के ठीक ऊपर आ जाता है. जिस वजह से हमारी कोई परछाई नहीं बनती है. इसी वजह से इस स्थिति को जीरो शैडो कहा जाता है.
नो शैडो डे पर क्या कहते हैं वैज्ञानिक: विज्ञान के जानकारों की मानें तो उत्तरी गोलार्ध में साल का एक दिन ऐसा होता है. जब इंसान को उसकी परछाई नहीं दिखती है. यह घटना निश्चित समय और निश्चित स्थान पर ही घटती है, जिसे नो शैडो डे या जीरो शैडो डे और ग्रीष्म संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है. इसका असर और इफेक्ट कर्क रेखा के बिंदु के तौर पर सरगुजा में दिखता है, जिस वजह से यह डे सरगुजा में देखा जाता है.
जीरो शैडो से जुड़े तथ्य
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25 अप्रैल को जीरो शैडो का अनुभव करने वाला अक्षांश 130°N नजर आया.
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बैंगलोर में 25 अप्रैल को तकरीबन दोपहर 12 बजकर 17 मिनट पर लोग इस अद्भुत
दृश्य के साक्षी बने.
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जीरो शैडो डे पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर एकदम लंबवत पड़ती हैं, ऐसे में परछाई हमारा साथ छोड़ देती है.
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जीरो शैडो डे के मौके पर परछाई महज दिखाई नहीं देती, क्योंकि वह पैरों के बिल्कुल नीचे बनती है.
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कर्क और मकर रेखा के बीच आने वाले इलाके में हमेशा जीरो शैडो डे होता है.
सूर्य के उत्तरायन और दक्षिणायन की स्थिति की वजह से जीरो शैडो डे दो बार आता है.
साल का सबसे बड़ा दिन
21 जून बुधवार को साल का सबसे लंबा दिन होता है. कभी दिन छोटे तो कभी रात छोटी होती है. कभी रात लंबी तो कभी दिन लंबे होते हैं. इसी तरह 21 जून को साल का सबसे लंबा दिन बताया गया है. इस दिन 12 घंटे की जगह 14 घंटे का दिन होता है. इसके बाद दिन घटना शुरू हो जाता है. सूरज की किरणें पृथ्वी पर लगभग 15 से 16 घंटे तक रहती हैं. इसलिए इस दिन को साल का सबसे बड़ा दिन कहते हैं. इसे सोल्सटाइस भी कहते हैं. इसका अर्थ है सूरज अभी भी खड़ा है. 21 सितंबर आते-आते दिन और रात एक बराबर हो जाते हैं. इसके बाद 21 सितंबर से रात लंबी होने का सिलसिला बढ़ने लगता है. ये प्रक्रिया 23 दिसंबर तक होती है.
साल का सबसे छोटा दिन
22 दिसंबर की रात सबसे लंबी होगी और दिन सबसे छोटा होगा. 22 दिसंबर से दिन कि लंबाई बढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा और 21 जून तक चलेगा. धरती पर सबसे छोटे दिन को विंटर सॉल्सटिस (Winter solstice) भी कहा जाता है. सोल्सटिस एक खगोलीय घटना है, जो कि दो बार, एक गर्मियों में और एक बार सर्दियों में होती है. हर साल सूर्य को जब उत्तर या दक्षिण ध्रुव से देखा जाता है तो साल का सबसे बड़ा दिन 21 जून होता है. इस दिन सूर्य की किरण ज्यादा देर तक रहती है और 23 दिसम्बर साल का सबसे छोटा दिन होता है, क्योकि इस दिन सूर्य की किरण पृथ्वी पर कम समय के लिए रहती है.