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सावन हे सखी सगरो सुहावन
सावन यानी त्योहारों का मौसम आ गया. सुहागिनों के हाथों में हरी-हरी चूड़ियां खनकती हैं, तो कहीं झूले की पेंग लेती युवतियां सखियों संग कजरी गाती हैं. सूरज की लुकाछिपी और बर्षा की बूंदों के बीच मनुष्य का मन तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है. वर्षा की बूंदे जब धरती पर पड़ती हैं, तो एक […]
सावन यानी त्योहारों का मौसम आ गया. सुहागिनों के हाथों में हरी-हरी चूड़ियां खनकती हैं, तो कहीं झूले की पेंग लेती युवतियां सखियों संग कजरी गाती हैं. सूरज की लुकाछिपी और बर्षा की बूंदों के बीच मनुष्य का मन तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है. वर्षा की बूंदे जब धरती पर पड़ती हैं, तो एक अलग-सा संगीत उत्पन्न होता है. जब तेज वर्षा होती है, तो पत्तों पर अटकती और गिरती बूंदों का सौंदर्य अद्भुत होता है, मगर इसे महसूस करनेवाला मन भी होना चाहिए.
सावन में झमाझम बरसता है पानी. नाचते-गाते बादल, खेतों में भीगकर धान रोपती महिलाएं. कजरारे मेघ देखकर मयूर नाचता है, पपीहा पानी बरसने के लिए टेर लगाने लगता है. किसान आस भरी आंखों से आकाश तकता है, तो उधर गरमी की तपन से सूखी नदी की देह भर जाती है. धरती का तपता सीना बारिश की बौछारों से तृप्त हो जाता है. नवजीवन के श्रावण मास में जब नये पौधे निकलते हैं धरा से, तो पुराने पेड़ों पर नये पत्ते जीवन का उल्लास गाते हैं. कवि मन मचलता है. सुमित्रानंदन पंत लिखते हैं –
”झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के
छम छम छम गिरतीं बूंदें तरुओं से छन के
चम-चम बिजली चमक रही रे उर में घन के
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के.”
रिमझिम से सराबोर मन कहीं विरह से व्यथित होता है, तो कहीं आनंदित. ‘मेघदूतम’ में कालिदास अपनी प्रियतमा को इन्हीं मेघों के माध्यम से संदेश भिजवाते हैं. यहां तक कि सावन में बेटी भी ससुराल से मायके आने के लिए गुहार लगाती है. अमीर खुसरो ने लिखा –
”अम्मा मेरे बाबा को भेजो री,
कि सावन आया.
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री,
कि सावन आया.
अम्मा मेरे भाई को भेजो री..”
अर्थात् सावन सभी के मन को छू लेता है. कहीं विरह है, तो कहीं खुशी, कहीं त्योहारों का आनंद है, तो कहीं ससुराल छोड़ मायके रहने का सुख.
बिहार-झारखंड सहित कई जगह यह नियम है कि ब्याह के बाद पहला सावन लड़की अपने मायके में बिताती है. मगर सावन में पिता के घर रहने के बावजूद वह अपने पति को नहीं भूल पाती. ऐसे में सखियां और भाभियां छेड़ती हैं उनको, तो उधर जिन महिलाओं के पति सावन के मौसम में बाहर हैं, तो वे गाती हैं कजरी –
”सावन हे सखी सगरो सुहावन
रिमझिम बरसेला मेघ हे
सबके बलमउआ घर अइलन
हमरा बलम परदेश रे”
बर्षा की बूंदों में मन करता है बच्चा बन जाने को
दरअसल, सावन में सूरज की लुकाछिपी और बर्षा की बूंदों के बीच मन तरह-तरह की कल्पनाएं करने लगता है. वर्षा की बूंदे जब धरती पर पड़ती हैं, तो एक अलग संगीत उत्पन्न होता है. पत्तों पर अटकती और गिरती बूंदों का सौंदर्य अद्भुत होता है, मगर इसे महसूस करनेवाला मन होना चाहिए. वर्षा का पानी रिस-रिस कर धरती के अंदर जाता है, तो लगता है मिट्टी के कण-कण में आनंद की लहर दौड़ गयी. ऐसे में बड़ों का भी मन बच्चा बन जाने को करता है.
शुरू हो जाता है तीज-त्योहारों का मौसम
सावन में अनेक त्योहार मनाये जाते हैं, जैसे-हरियाली तीज, नाग-पंचमी और रक्षा बंधन. सबसे महत्वपूर्ण है शिव की पूजा. इसलिए कि शिव को सावन सबसे प्रिय है. मान्यता है कि सावन में समुद्र मंथन से जो विष निकला, उसे अपने कंठ में धारण कर शिव ने सृष्टि की रक्षा की थी. विषपान के कारण शिवजी का कंठ नीला हो गया और नीलकंठ कहलाएं. शरीर को शीतल रखने के लिए शिव ने चंद्रमा को सिर पर धारण किया और देवी-देवताओं ने शिव के विषपान के प्रभाव को कम करने के लिए जल अर्पित किये. इंद्र देव ने भी खूब पानी बरसाया ताकि शिव को विष के ताप से आराम मिले. इसी कारण सावन में शिवलिंग में जल चढ़ाने का महत्व है. मंदिरों में बेलपत्र और दूध से सिक्त रहते हैं शिव.
कुंवारी कन्याओं के लिए श्रावण व्रत की मान्यता
दूसरी मान्यता है कि दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर जन्म लिया. पार्वती ने युवावस्था में एक माह निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, इसलिए शिव को सावन अत्यंत प्रिय हो गया. यह भी कहा जाता है कि मरकंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण मास में ही घोर तप कर शिव को प्रसन्न किया था. शिव ने वरदान में ऐसी शक्तियां दीं, जिनके आगे यमराज भी नतमस्तक हो गये.
श्रावण व्रत के विशेष महत्व के पीछे माना जाता है कि कुंवारी कन्या यदि इस पूरे महीने व्रत रखती है, तो मनपसंद वर मिलता है. हालांकि यह परंपरा रूप में निभाया जा रहा है. मुझे याद है जब हमलोग छोटे थे, तो सभी को व्रत करते देख हम भी कर लिया करते थे. यह एक परंपरा निभाना था लोक उत्सव के रूप में…
प्रकृति और शिव
श्रावण शब्द श्रवण से बना है, अर्थात सुनना. सावन मास में भगवान शंकर ने आदिशक्ति जगदम्बा पार्वती को सुनायी थी अमर कथा. यह अध्यात्म का माह है. प्रकृति और शिव के संयोग का मास है सावन.
चरक संहिता में
कर्क संक्राति से सिंह संक्रांति तक की अवधि में वाष्पीकरण अधिक होता है और वर्षा होती है व अनेकानेक वनस्पतियों का पोषण होता है. चरक संहिता में यौवन की संरक्षा और सुरक्षा हेतु सावन को सर्वश्रेष्ठ बताया है.
सोम का अर्थ
शिव का एक नाम ‘सोम’ भी बताया गया है. सोम का अर्थ है चंद्रमा, जो मन का कारक है. शिव द्वारा चंद्रमा को धारण करना मन के नियंत्रण का प्रतीक है, इसलिए हम शिव पूजन से अपने मन को नियंत्रण में लाते हैं.
अनोखी प्रथा
महाराष्ट्र में जल स्तर को सामान्य रखने की एक अनोखी प्रथा विद्यमान है. लोग सावन के महीने में समुद्र में जाकर नारियल अर्पण करते हैं, ताकि किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंच पाये.
‘ॐ नम: शिवाय’
‘ॐ नम: शिवाय’ वह मूल मंत्र है, जिसे कई सभ्यताओं में महामंत्र माना गया है, तो सावन का एक अर्थ शिव भी है.
बारह महीनों में विशेष है श्रावण
जब स्कूल में शिक्षिका को पता लगा, तो उन्होंने सहेली से पूछा- अच्छे पति के लिए कर रही हो यह व्रत? सहेली ने जवाब दिया- नहीं, सब करते हैं इसलिए मैं भी करती हूं व्रत.
मैंने घर आकर दादी से पूछा कि वाकई पति की कामना के लिए यह व्रत रखा जाता है? तो उन्होंने कहा कि हमारे शास्त्रों-पुराणों में श्रावण सोमवार व्रत को अमोघ फलदाई माना गया है. इस व्रत से स्त्री-पुरुष दोनों को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. सोमवार का व्रत करने से समस्त शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट दूर होते हैं और जीवन सुखमय हो जाता है. इस मास के सोमवार व्रतों का पालन करने से बारह महीनों के सभी सोमवार व्रतों का फल मिल जाता है.
दादी ने यह भी कहा कि यह भी पुराणों में लिखा है कि पिता दक्ष द्वारा अपने पति का अपमान होता देख सती ने आत्मदाह कर लिया था. सती ने पार्वती रूप में पुनर्जन्म लिया और शिव को अपना बनाने के लिए सावन मास के सभी सोमवार का व्रत रखा. परिणामस्वरूप उन्हें पति रूप में भगवान शिव की प्राप्ति हुई. इसलिए कहते हैं कि शिव के 16 सोमवार का व्रत करने से मनचाहा वर मिलता है.
यह सत्य है कि आज जमाना बदल गया है. अब तो रिश्ते एक जन्म भी नहीं निभाता कोई. मगर पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस संस्कृति को आगे बढ़ाते रहें हम, ताकि अपनी जमीन, अपने संस्कार न भूलें. हर सावन बागों में झूला झूलें हम, हथेलियों में मेंहदी सजाएं और नीम की निबोरियों को चखते हुए गाएं –
“कच्ची नीम की निबोरी
सावन जल्दी आयो रे”
सोलह सोमवार व्रत हैं अमोघ फलदायी
पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में उज्जैन में एक वेश्या थी सुगंधा. पूर्वजन्म के पुण्य से उसके शरीर में सुगंध का अक्षय स्रोत था. उसके शरीर से निकली सुगंध एक कोस तक फैली रहती थी. वह गायन विद्या में छः रागों तथा 36 रागिनियों में निपुण थी. नृत्य में रंभा आदि देवांगनाओं को पीछे छोड़ चुकी थी. पृथ्वी पर भी उसके रूप-लावण्य की ख्याति दूर-दूर थी. इन गुणों से उसने राजाओं, युवाओं, ब्राह्मणों, ब्रह्मचारियों और व्यापारियों को धर्म भ्रष्ट किया और उन्हें अपमानित भी किया. एक बार सावन के महीने में अनेक ऋषि शिप्रा नदी में स्नान कर उज्जैन के महाकाल शिव की अर्चना करने हेतु एकत्र हुए. वह वेश्या भी अपने कुत्सित विचारों से ऋषियों को धर्मभ्रष्ट करने चल पड़ी, किंतु वहां पहुंचने पर ऋषियों के तपबल के प्रभाव से उसके शरीर की सुगंध लुप्त हो गयी. वह आश्चर्यचकित हो गयी. उसे लगा, उसका सौंदर्य भी नष्ट हो गया. उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गयी, उसका मन विषयों से हट गया और भक्ति मार्ग पर बढ़ने लगी. उसने अपने पापों के प्रायश्चित हेतु ऋषियों से उपाय पूछा, वे बोले- ‘तुमने सोलह शृंगारों के बल पर अनेक लोगों को धर्मभ्रष्ट किया, इस पाप से बचने के लिए तुम सोलह सोमवार व्रत करो और काशी में निवास कर भगवान शिव का पूजन करो. उसने ऐसा ही किया और पापों का प्रायश्चित कर शिवलोक पहुंची. सोलह सोमवार के व्रत से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं. श्रावण मास में शिव की पूजा करने से प्रायः सभी देवताओं की पूजा का फल मिल जाता है.
व्रत से होता है शरीर का शुद्धिकरण
हमारी संस्कृति इतनी समृद्ध है कि हर कार्य के लिए एक ऐसा तर्क मौजूद है, जिसकी वैज्ञानिकता भी सिद्ध की जा सकती है. खगोल विज्ञान के अनुसार 24 नक्षत्र हैं, जिनमें से एक है श्रवण नक्षत्र. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन आकाश में श्रवण नक्षत्र का योग बनता है. इसी आधार पर श्रावण मास का नाम पड़ा, जिसे अपभ्रंश स्वरूप सावन कहा जाता है.अगर हम धार्मिक मान्यता से अलग होकर भी पूरे माह श्रावण व्रत रखते हैं, तो इससे पूरे शरीर का शुद्धिकरण के जरूर हो जाता है.
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