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तीसरी सोमवारी आज : पूरे श्रावण जपें भगवान शिव के ये 108 नाम, पूरे होंगे सारे बिगड़े काम
दो लाख से अधिक कांवरिया पहुंचे बाबाधाम आज सावन की तीसरी सोमवारी है. एक अनुमान के मुताबिक दो लाख से अधिक कांवरिये ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण के लिए देवघर पहुंचे हैं. इसको लेकर यहां व्यापक व्यवस्था की गयी है. सावन की सोमवारी पर जलार्पण करने का विशेष महत्व है. सोमवारी पर कैसे करें शिव […]
दो लाख से अधिक कांवरिया पहुंचे बाबाधाम
आज सावन की तीसरी सोमवारी है. एक अनुमान के मुताबिक दो लाख से अधिक कांवरिये ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण के लिए देवघर पहुंचे हैं. इसको लेकर यहां व्यापक व्यवस्था की गयी है. सावन की सोमवारी पर जलार्पण करने का विशेष महत्व है. सोमवारी पर कैसे करें शिव आराधना इसी पर आधारित है आज का यह विशेष पेज.
शिव को प्रिय है श्रावण मास
भगवान शिव को श्रावण सबसे प्रिय महीना है, क्योंकि श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार हमेशा रहते हैं, विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करता है. 12 महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है. इस दौरान व्रत, दान व पूजा-पाठ करना अति उत्तम माना गया है. इस महीने में तपस्या और पूजा पाठ से शिव जी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं. भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताते कहा है कि उनके तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बाएं चंद्र और अग्नि मध्य नेत्र है. इस मंत्र से सोमवार का संकल्प किया जाता है.
मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये
देवाधिदेव शिव कैसे हो गये बैद्यनाथ
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में आदिदेव महादेव का सर्वशक्तिमान देव माना गया है़ इन्हें शिव की संज्ञा आख्यानों में दी गयी है़ शिव जगत के लोगों के प्राणधार हैं़शिव ने ही सृष्टि की है़ जगत के सर्जक, पालक और संहारक माने गये हैं़ एक साथ तीनों गुणों का समवेत संगम ही शिव है़ पौराणिक ग्रंथों में शिव पुराण है जिनमें शिव की महिमा को विशद रुप में आख्यायित की गयी है़
देवो गुणत्रयातीतश्चतुव्यूहो महेश्वर:
सकल: सकलाधार: शक्तेरुत्पतिकारणम् ।
-शिवपुराण
कहने का तात्पर्य है कि शिव के बिना जगत की परिकल्पना संभव नहीं़ गुणत्रयातीत से भगवान शिव चार व्यूहों में विभक्त हैं-ब्रह्मा, काल रुद्र और विष्णु़ ये चारों शिव के आधार हैं़ शक्ति की जन्मस्थली है़ धार्मिक ग्रंथों की माने तो शिव सत्य है, सुंदर हैं इनकी एक से एक क्रियाएं मानवों के हित में हैं़ वैसे कहा जाता है कि शिव ने ही सभी विद्यायों को जन्म दिया़ चाहें मंत्र विधा हों या तंत्र, चाहे नाट्य विधा हों या वैद्य विधा, सबों को शिव ने ही जगत में अवतरित किया है़
शिव की परिकल्पना एक ऐसी मूर्ति के रुप में है जो मूर्त भी हैं और अमूर्त भी़ निराकार भगवान के तौर पर कोई भजते हैं तो कोई साकार मूर्ति के तौर पऱ खैर जो भी हो शिव शाश्वत देव हैं़ शिव की पूजा लिगवत होती है़ शिव ही एक ऐसे देव हैं जिनके शक्ति संग शिव की अर्चना एक साथ होती रही है़ तार्किक तौर पर देखें तो जगत में जो भी मानव हैं, उनकी शक्ति की पूछ है़ निर्बल होना शाप माना जाता है़ किसी भी मनुष्य मात्र के लिए सृष्टि की गति को आगे बढ़ाने के लिए शिव प्रदत शक्ति न रहे तो वह समाज के कोने का आदमी बन जाता है़ निरोग होना प्रकृति का उत्तम विधान है़
शशिवलिंगे अपि सर्वेसां
देवानां पूजनं भवेत्।
सर्वलोकमये, यस्माच्छिवषक्तिर्विभु: प्रभु: ॥
-शिवपुराण
शिव की पूजा से ज्यादा फल शिवलिंग के पूजन से आस्तिाकों को मिलते हैे़ यह जगजाहिर है़ इस देव को वैद्यों के नाथ वैद्यनाथ कहा गया है़ आखिर क्यों ? यह एक अहम प्रश्न हर भक्तों के मन में हमेषा उत्सुकता वस उठता है़ कथाओं के अनुसार शिव से बढ़कर कोई वैद्य इस दुनिया में नहीं हुए हैं
मानव के देह में हाथी का मस्तक सफलता पूर्वक जोड़ने का कथा आयी है़ कथा के अनुसार एक बार शिव और माता पार्वती भूलोक में विहार करने के लिए आयी थी़ एक सुंदर वन में उमा संग शिव कुछ दिनों के लिए वास किये थे़ पार्वती सानंद रह रही थी़ एक दिन देवाधिदेव शिव जी फल लाने के लिए दूर चले गये जहां पर विहंगम दृष्य देख कर कुछ दिनों के लिए रह गये़ इधर पार्वती एक दिन नहाने के लिए जा रही थी़ अपने देह में उबटन लगायी और मन में कौतूहलता हुई कि उबटन को संग्रहित कर एक आकृति का रुप दे दूं
बस क्या था माता पार्वती ने भगवान हरि का स्मरण कर एक पुत्र के रुप में आकृति बना डाली़ पुनश्च उसमें जान फूंकी तो वह मानव जीवंत हो उठा़ अपना बालक समझ पार्वती ने घर के बाहर नगर रक्षार्थ तैनात कर दी़ वह अपनी सखियों के संग विहार करने लगी़ इस दौरान तरह-तरह की जलक्रीड़ा कर रही थी़ इधर शिव को अपनी नगरी याद आयी तो वे वापस आये़ नगर में एक बालक को देख वे आश्चर्यचकित हो गये़ अपने घर में प्रवेश करने का प्रयास किये तो मासूम बालक ने मार्ग रोका और मना किया़ शिव जी आग बबूला हो गये और अपने शूल से बालक का सिर कत्ल कर दिये़
मस्तक कहां चला गया इसका भी पता नहीं चल पाया़ कहा गया है कि षिर भस्मीभूत हो गया़ वह जब अपने घर में प्रवेश किया तो पार्वती को जलक्रीड़ा स्थल पर देखे़ पार्वती के पूछने पर सारी घटना बता दी़ पार्वती कुपित हो गयीं और विलाप करने लगी कि आपने मेरे पुत्र की यह दशा क्यों कर दी़ इस पर शिव जी ने कहा कि मैं जान नहीं रहा था कि यह तुम्हारी संतान है़
अज्ञात्वा ते सिरष्छिन्नं शूलेनानेन यन्म्या।
तेनाहं सापराधोस्मि सत्यं सत्यं जनार्दन॥
शिव को पार्वती ने सख्त हिदायत दी कि जल्द ही मेरे पुत्र को जीवित कर दें नही ंतो मैं अपनी शक्ति का प्रभाव दिख दूंगी़ जब सबों के भोलेनाथ हैं तो कैसे नहीं मानते़ शिव जी राजी हो गये़ वे जंगल की ओर चल दिये़ पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे एक जंगल में गये जहां पर एक गजराज उतर दिशा की ओर पांव करके सोया था़ शिव ने वध करना उचित समझा़
ततोरण्ये समालोक्य गजराजं महाबलम्।
उदकषिरसमेकत्र श्यानं स महेश्वर: ॥
अपने पाणि में लिये त्रिशूल से गजराज का मस्तक काटा और सिर कटे बालक के देह में प्रतिरोपित कर दिया़ इस प्रकार से शिव ने जिस प्रकार के कार्य कर लोक में दिखाये वह एक कुशल चिकित्सक आज भी नहीं कर पा रहा है़ भले ही दुनिया आगे बढ़ी हो पर शिव जो वैद्य थे, वैद्यों के नाथ -वैद्यनाथ कहे जाते हैं के सामने तुच्छ हैं़
मानव का कटा हुआ देह और गजराज का मस्तक जोड़ जीवित करना महा वैद्य भी नहीं कर सकते हैं, शिव ने जगत में इस कार्य को कर दिखया़ यही गज मस्तक वाले सूत गजानन कहलाये़ पार्वती व शिव के प्रथम पुत्र गणेश की पूजा आज जगत में किसी भी प्रकार के कार्य आरंभ के पूर्व में की जाती है़ भगवान गणेश की पूजा से शिव और पार्वती दोनों एक साथ प्रसीद होते हैं़ देवघर की धरती पर बाबा वैद्यनाथ की पूजा सावन में व्यापक पैमाने पर होती रही है़ लाखों लाख भक्त आते हैं और निरोग होने की कामना करते हैं़ ये हर प्रकार के रोगों से निजात दिलाने का कार्य करते हैं़ गरीब हों या अमीर, पंग हों या अपंग सबों का सहारा है देवाधिदेव शिव महादेव़ लोक में जय शिव के जयकारे होते हैं और आस्था के साथ आस्तिक अर्चना कर मनोकामना चाहते हैं
वैदिक वांग्मय में रुद्र
देवताओं के विचार के संदर्भ में यास्क कृत निरुक्त का दैवत कांड अत्यंत महत्वपूर्ण है. वहां पर बताया गया है कि देव या देवता का अभिप्राय है- कोई दिव्य शक्ति जो मानव-जगत का कल्याण करती है, उसे किसी रूप में कुछ देती है या जिसमें कुछ दिव्य या असाधारण क्षमता है, उसे देवता कहा जाता है. अतएव यास्क ने देव शब्द का निर्वचन दिया है कि ‘देवो दानाद्वा दीपनाद् वा, द्योतनाद् वा, द्युस्थानो भवतीति वा’ अर्थात देव वह है जो कुछ देत है, स्वयं प्रकाशमान है या दूसरे को प्रकाशित करता है या द्युलोकस्थ है. इस दृष्टि से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्र, मेघ आदि देवता हैं क्योंकि ये संसार का उपकार कर रहे हैं.
वेदों में स्पष्टत: इसका उल्लेख है कि ईश्वर मूलत: एक ही है परंतु उनकी विभिन्न शक्तियों को ही अनेक नाम दे दिये जाते हैं. वैदिक साहित्य में देवों की संख्या 1 से लेकर छह हजार तक बतायी गयी है. निरुक्तकार यास्क ने मुख्य रूप से अग्नि, इंद्र और सूर्य इन तीनों को ही देवता माना है. ऋग्वेद और अथर्ववेद में 33 देवों का उल्लेख है- 11 पृथ्वी, 11 अंतरिक्ष में और 11 द्युलोक में. शतपथ ब्राह्मण और ऐतरेय ब्राह्मण में इन 33 देवों के नाम मिलते हैं. ये हैं- 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 इंद्र और 1 प्रजापति। ध्यातव्य हो कि लोगों में 33 करोड़ देवताओं की धारणा है किंतु वेदोक्त 33 कोटि देवता में कोटि शब्द करोड़ का वाचक न होकर प्रकार का वाचक है.
इन 33 देवताओं में रुद्र का स्थान मुख्य है. श्वेताश्वतरोपनिषद् के प्रारंभ में ब्रह्म के संबंध में जिज्ञासा उठायी गयी है कि जगत का कारण जो ब्रह्म है, वह कौन है? ‘किं कारणं ब्रह्म’ श्रुति ने आगे चलकर इस ब्रह्म शब्द के स्थान पर ‘रुद्र’ और ‘शिव’ शब्द का प्रयोग किया है- ‘एको हि रुद्र:’ ‘स शिव:’ समाधान में बताया गया है कि जगत् का कारण स्वभाव आदि न होकर स्वयं भगवान शिव ही है-
एको रुद्रो न द्वितीयाय तस्थु: य इमांल्लोकानीशत ईशनीभि:।
प्रयंग जनांस्तिष्ठति संचुकोचांतकाले संसृज्य विश्वा भुवनानि गोपा।।
अर्थात् जो अपनी शासन-शक्तियों के द्वारा लोकों पर शासन करते हैं, वे रुद्र भगवान एक ही हैं. इसलिए विद्वानों ने जगत् के कारण रूप में किसी अन्य का आश्रयण नहीं किया है. वे प्रत्येक जीव के भीतर स्थित हैं, समस्त जीवों का निर्माण कर पालन करते हैं तथा प्रलय में सबको समेट भी लेते हैं.
इस प्रकार शिव और रुद्र ब्रह्म के पर्यायवाची शब्द ठहरते हैं. ‘शिव’ और ‘रुद्र’ इसलिये कहा जाता है क्योंकि वे अपने भक्तों के सामने अपना रूप शीघ्र ही प्रकट कर देते हैं-
कस्मादुच्यते रुद्र:? यस्मादृषिभि:
द्रुतमस्य रूप मुपलभ्यते।
भगवान शिव को रुद्र इसलिए भी कहते हैं- ये ‘रुत’ अर्थात दु:ख का विनष्ट कर देते हैं- रुत=दु:खम् , द्रावयति=नाशयति इति रुद्र: । बृहदारण्यकोपनिषद् में रुद्र को रुद्र कहने का अभिप्राय दिया गया है कि रुद्र 11 हैं- 10 इंद्रियां और मन। ये जब शरीर को छोड़कर बाहर निकलते हैं, तो मृतक के परिजन को रुलाते हैं, अत: इन्हें रुद्र कहा जाता है-
‘तद् यद् रोदयन्ति, तस्माद् रुद्रा इति’।
शतपथ ब्राह्मण में वृक्ष-वनस्पतियों को पशुपति (शिव) कहा गया है. यजुर्वेद में रुद्र को वनस्पति, वृक्षपति, औषधिपति आदि कहा गया है. शिव का शिवत्व यही है कि वे विष पीते हैं और अमृत देते हैं. वृक्ष-वनस्पति कार्बनहाइ ऑक्साइड रूपी विष पीते हैं और ऑक्सीजन रूप अमृत (प्राणवायु) देते हैं. वृक्षों का रुद्र रूप यह है कि यदि वृक्ष-वनस्पति नहीं रहेंगे तो ऑक्सीजन नहीं मिलेगा और मानव जाति का स्वयं विनाश हो जायेगा.
स्कंद शिव-स्तुति
नम : शिवायास्तु निरामयाय, नम: शिवायास्तु मनोमयाय ।
नम : शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यंसदा भक्त कृपापराया ।।
नमो भवायास्तु भवोभ्दवाय, नमोस्तु तेध्वस्त मनोभवाय ।
नमोस्तुते गूढ़महाव्रताय नमोस्तु माया गहनाश्रयाय ।।
नमोस्तु शर्वायनम : शिवाय नमोस्तुसिद्धायं पुरातनया ।
नमोस्तु कालायनम: कलायनमोस्तुते कालकलातिगाय ।।
नमो निसर्गात्मक भूतिकाय नमोस्त्वमेयोक्षमहद्धिकाय ।
नम: शरण्याय नमोगुणाय नमोस्तुते भीमगुणानुगाय ।।
नमोस्तु नानाभुवनाद्यिकर्त्रे नमोस्तुते भक्ताभिमतप्रदार्त्रे।
नमोस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नम: सदा ते भगवन सुकर्त्रे ।।
अनंतरूपाय सदैव तुभ्यमसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम् ।
अमेयमानाय नमोस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोस्तु तुभ्याम् ।।
नम: प्रसिद्धाय महौषध्याय नमोस्तु ते व्याधिगणापहाय ।
चराचरायाय विचारदाय कुमारनायाय नम: शिवाय ।।
ममेश भूतेश महेश्वरोसि कामेश वागीश बलेशधीश।
क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोस्तु मोक्षेश गुह्यशयेश ।।
तीसरे सोमवार को करना चाहिए अर्द्धनारीश्वर का पूजन
सावन के इस तृतीय सोमवार को अर्द्धनारीश्वर शिव का पूजन किया जाना चाहिए. इन्हें खुश करने के लिए ‘ॐ महादेवाय सर्व कार्य सिद्धि देहि-देहि कामेश्वराय नम: मंत्र का 11 माला जाप करना श्रेष्ठ माना गया है. इनकी विशेष पूजन से अखंड सौभाग्य, पूर्ण आयु, संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, कन्या विवाह, अकाल मृत्यु निवारण व आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है.
पूरे श्रावण मास जपें भगवान शिव के 108 नाम
1. शिव – कल्याण स्वरूप
2. महेश्वर – माया के अधीश्वर
3. शम्भू – आनंद स्वरूप वाले
4. पिनाकी – पिनाक धनुष धारण करने वाले
5. शशिशेखर – सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
6. वामदेव – अत्यंत सुंदर स्वरूप
7. विरूपाक्ष – विचित्र आंख वाले (शिव के तीन नेत्र हैं)
8. कपर्दी – जटाजूट धारण करने वाले
9. नीललोहित – नीले और लाल रंग वाले
10. शंकर – सबका कल्याण करने वाले
11. शूलपाणी – हाथ में त्रिशूल धारण करने
12. खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले
13. विष्णुवल्लभ – भगवान विष्णु के अति प्रिय
14. शिपिविष्ट – सितुहा में प्रवेश करने वाले
15. बिकानाथ- देवी भगवती के पति
16. श्रीकंठ – सुंदर कंठ
17. भक्तवत्सल – भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18. भव-संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19. सर्व-कष्टों को नष्ट करने वाले
20. त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी
21. शितिकंठ – सफेद कंठ वाले
22. शिवाप्रिय – पार्वती के प्रिय
23. उग्र – अत्यंत उग्र रूप वाले
24. कपाली – कपाल धारण करने वाले
25. कामारी – कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
26. सुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले
27. गंगाधर – गंगा जी को धारण करने वाले
28. ललाटाक्ष – ललाट में आंख वाले
29. महाकाल – कालों के भी काल
30. कृपानिधि – करूणा की खान
31. भीम – भयंकर रूप वाले
32. परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले
33. मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले
34. जटाधर – जटा रखने वाले
35. कैलाशवासी – कैलाश के निवासी
36. कवची – कवच धारण करने वाले
37. कठोर – अत्यंत मजबूत देह वाले
38. त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर को मारने वाले
39. वृषांक – बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
40. वृषभारूढ़ – बैल की सवारी वाले
41. भस्मोद्धूलितविग्रह – सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
42. सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले
43. स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले
44. त्रयीमूर्ति – वेदरूपी विग्रह करने वाले
45. अनीश्वर – जो स्वयं ही सबके स्वामी है
46. सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले
47. परमात्मा – सब आत्माओं में सर्वोच्च
48. सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
49. हवि – आहूति रूपी द्रव्य वाले
50. यज्ञमय – यज्ञस्वरूप वाले
51. सोम – उमा के सहित रूप वाले
52. पंचवक्त – पांच मुख वाले
53. सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाल
54. विश्वेश्वर- सारे विश्व के ईश्वर
55. वीरभद्र – वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
56. गणनाथ – गणों के स्वामी
57. प्रजापति – प्रजाओं का पालन करने वाले
58. हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले
59. दुर्धुर्ष – किसी से नहीं दबने वाले
60. गिरीश – पर्वतों के स्वामी
61. गिरिश्वर – कैलाश पर्वत पर सोने वाले
62. अनघ – पापरहित
63. भुजंगभूषण – सांपों के आभूषण वाले
64. भर्ग – पापों को भूंज देने वाले
65. गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66. गिरिप्रिय – पर्वत प्रेमी
67. कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले
68. पुराराति – पुरों का नाश करने वाले
69. भगवान् – सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
70. प्रमथाधिप – प्रमथगणों के अधिपति
71. मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले
72. सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले
73. जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले
74. जगद्गुरू – जगत के गुरू
75. व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले
76. महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता
77. चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले
78. रूद्र – भयानक
79. भूतपति – भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
80. स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
81. अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी को धारण करने वाले
82. दिगम्बर – नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
83. अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले
84. अनेकात्मा – अनेक रूप धारण करने वाले
85. सात्त्विक- सत्व गुण वाले
86. शुद्धविग्रह – शुद्धमूर्ति वाले
87. शाश्वत – नित्य रहने वाले
88. खंडपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89. अज – जन्म रहित
90. पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले
91. मृड – सुखस्वरूप वाले
92. पशुपति – पशुओं के स्वामी
93. देव – स्वयं प्रकाश रूप
94. महादेव – देवों के भी देव
95. अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले
96. हरि – विष्णुस्वरूप
97. पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98. अव्यग्र – कभी भी व्यथित न होने वाले
99. दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
100. हर – पापों व तापों को हरने वाले
101. भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102. अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103. सहस्राक्ष – हजार आंखों वाले
104. सहस्रपाद – हजार पैरों वाले
105. अपवर्गप्रद – कैवल्य मोक्ष देने वाले
106. अनंत – देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
107. तारक – सबको तारने वाले
108. परमेश्वर – सबसे परम ईश्वर
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