खुशियों की डोर और भाई-बहन के प्रेम का अटूट रिश्ता है रक्षाबंधन

आज रक्षाबंधन है़ भाई-बहन के अटूट प्रेम का त्योहार. बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधेंगी़ वहीं भाई बहनों को उपहार के साथ-साथ रक्षा का वचन देंगे़ रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच रिश्तों को खुशियों से भर देता है. भाई की कलाई पर बांधी गयी स्नेह की डोर बहन को हर मुसीबत से भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 7, 2017 6:48 AM
आज रक्षाबंधन है़ भाई-बहन के अटूट प्रेम का त्योहार. बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधेंगी़ वहीं भाई बहनों को उपहार के साथ-साथ रक्षा का वचन देंगे़ रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच रिश्तों को खुशियों से भर देता है. भाई की कलाई पर बांधी गयी स्नेह की डोर बहन को हर मुसीबत से भी बचाती है. रक्षाबंधन पर पढ़ें भाई-बहनों के अटूट प्रेम और उनके त्याग पर आधारित यह विशेष रिपोर्ट.
श्रेया शाह व श्रेयश शाह, कांटाटोली
भाई के त्याग के कारण
ही मुझे मिली शोहरत
श्रेया कहती हैं : मेरा भाई दुनिया का सबसे प्यारा भाई है़ उसने मेरे लिए कई
कुर्बानियां दी है. पापा के निधन के बाद भाई ने जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. उसने खुद से ज्यादा मेरी खुशियों की परवाह की. मां को अकेला महसूस नहीं होने दिया. कम उम्र में ही घर की पूरी जिम्मेदारी उठा ली. मैं पढ़ने में अच्छी थी.
इस कारण भाई ने हमेशा प्रोत्साहित किया. मेरी पढ़ाई को लेकर सजग रहा. मां ने हम दोनों भाई-बहन को बराबर प्यार दिया है़ यही वजह है कि मैंने अमेरिका से एमएस की पढ़ाई पूरी कर पायी. भाई भी पढ़ने में अच्छा था, लेकिन उसने घर से बाहर जा कर पढ़ाई नहीं की. इलेक्ट्रॉनिक में बीटेक की डिग्री हासिल की. यह उसका त्याह ही है कि आज मैं कैलिफोर्निया में जॉब कर रही हूं. उसने मां को हमेशा मेरी पढ़ाई के लिए प्रेरित किया. मुझे अपने भाई पर गर्व है.
रिषिका और अनुज नागपाल, रातू रोड
भइया ने मुझे बिजनेस
के क्षेत्र में स्थापित किया
रिषिका कहती हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपने भाई के बदौलत हूं. मेरे भइया
ने बचपन से लेकर अब तक हमेशा मेरा साथ दिया है़ हम दोनों एक अच्छे दोस्त भी हैं. भइया ने मेरे लिए बुटीक का बिजनेस शुरू किया. बिजनेस सेटअप किये. अपनी खुशियों की जगह मेरी खुशियों का ख्याल रखा.
आज भी बचपन की तरह मेरा ख्याल रखते हैं. मम्मी वर्किंग लेडी थी़ इस कारण बचपन से ही भइया से लगाव रहा. मम्मी की ही तरह केयर करते थे. आम तौर पर देखा जाता है कि कोई स्पेशल ओकेजन पर भाई-बहन अपने-अपने दोस्तों के साथ सेलिब्रेट करते हैं. पर हम दोनों भाई-बहन अपने फ्रेंड्स की जगह एक-दूसरे के साथ इंज्वॉय करते हैं. पिकनिक करते हैं. मूवी देखने जाते है़ं साथ में रेस्टोरेंट जाते है़ं मेला जाना है या कहीं घूमने भइया ही मुझे लेकर जाता है़
सोमा डे और अजय देव, बर्द्धमान कंपाउंड
भाइयों ने मां बन कर
हमारी जिम्मेदारी ली
सोमा डे कहती हैं कि हम दो भाई और तीन बहन है़ं मां के निधन के बाद के दोनों
भाइयों (अजय देव और अभय देव) ने पूरी जिम्मेदारी ले ली. भाइयों ने कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. तीनों बहनों की खुशियों के लिए अपना एक-एक कीमती पल कुर्बान कर दिया़ अभी तक खुद का परिवार नहीं बसाया है.
हम तीनों बहनों की शादी करायी. दोनों भाई आज भी हमें बचपन के दिनों की तरह ही प्यार देते है़ं कभी भी मां की कमी महसूस नहीं होने दी. किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी़ मेरी दोनों छोटी बहन मोनिका और सोमा को बेटी की तरह प्यार करते है़ं मेरी भी कोशिश रहती है कि अपने भाई-बहनों को मां का प्यार दे सकूं. वह भी मुझे मां की ही तरह समझते है़ं
शुभांकर चौधरी और मंजुषा चौधरी, माेरहाबादी
दीदी के कारण ही पेंटिंग की
दुनिया में बनी मेरी पहचान
शुभांकर कहते हैं कि मेरी दीदी ही गुरु है़ हम दोनों भाई-बहनों ने बंगीय परिषद से
पेंटिंग सीखी. दीदी बहुत अच्छी पेंटिंग किया करती थी़ पेंटिंग की दुनिया में उसी ने मेरा प्रवेश कराया़ पहले पेंटिंग में मेरी कोई रुचि नहीं थी़, लेकिन दीदी की वजह से इस क्षेत्र में आज आया. अब सभी कहते हैं कि मैं दीदी से अच्छी पेटिंग कर लेता हू़ं पेंटिंग के क्षेत्र में मुझे कई अवार्ड मिल चुके हैं.
यह सब दीदी के कारण ही हो पाया है. दीदी के कारण अपना करियर बना पाया़ हम दाेनों बच्चों को पेंटिंग सीखा रहे है़ं आज भी मैं दीदी से बहुत कुछ सीखता हूं. दीदी ही मेरी पहली गुरु है. दीदी नहीं होती, तो शायद मैं आज कुछ और होता़ उसने हमेशा एक दोस्त की तरह साथ दिया़

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