रहीम दास बोले- अंतर दाव लगी रहै

अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय !!कै जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय !! अर्थात प्रेम और विरह की अग्नि अंतर्मन में ही सुलगती है. यह किसी को दिखाई नहीं देती. इसका धुआं भी अदृश्‍य होता है. यह ऐसी असाधारण आग है, जो केवल प्रेमी को पीडित करती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 4, 2018 8:04 AM

अंतर दाव लगी रहै, धुआं न प्रगटै सोय !!
कै जिय जाने आपनो, जा सिर बीती होय !!

अर्थात

प्रेम और विरह की अग्नि अंतर्मन में ही सुलगती है. यह किसी को दिखाई नहीं देती. इसका धुआं भी अदृश्‍य होता है. यह ऐसी असाधारण आग है, जो केवल प्रेमी को पीडित करती है.

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