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आज ही है कृष्ण जन्माष्टमी का महायोग, इस मुहूर्त काल में व्रतियां ऐसे करें पूजा
श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य sripatitripathi@gmail.com सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:!! 2 सितंबर, रविवार को अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों का योग अर्धरात्रि को हो रहा है. अतः आज ही जयंती योग में श्री कृष्णावतार एवं जन्माष्टमी का व्रत सबके लिए हो जायेगा. उदया तिथि अष्टमी एवं उदय कालिक रोहिणी नक्षत्र को माननेवाले […]
श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य
sripatitripathi@gmail.com
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे!
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:!!
2 सितंबर, रविवार को अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र दोनों का योग अर्धरात्रि को हो रहा है. अतः आज ही जयंती योग में श्री कृष्णावतार एवं जन्माष्टमी का व्रत सबके लिए हो जायेगा. उदया तिथि अष्टमी एवं उदय कालिक रोहिणी नक्षत्र को माननेवाले वैष्णव जन 3 सितंबर, सोमवार को श्री कृष्ण व्रत पर्व मनायेंगे. 2 सितंबर, रविवार को शाम 05.12 तक सप्तमी, तत्पश्चात् अष्टमी तिथि रहेगी तथा कृत्तिका नक्षत्र शाम 06.32 तक उपरांत रोहिणी नक्षत्र रहेगा. चूंकि अगले दिन मध्यरात्रि में न तो अष्टमी रहेगी और न ही रोहिणी. अत: गृहस्थों के लिए 2 सितंबर को ही व्रतोत्सव मनाना सर्वथा उचित होगा.
व्रतियों के लिए हैं ये नियम
उपवास के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर कृष्ण का ध्यान करें. गीता, विष्णुपुराण, कृष्णलीला का पाठ करें. व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें. प्रतिमा में कृष्ण के गालों का स्पर्श करें. ‘मैं कृष्ण की पूजा उनके सहगामियों के साथ करूंगा.’ फिर देवकी व उनके शिशु श्री कृष्ण का ध्यान करें. भगवान को माखन-मिश्री, पाग, नारियल की मिठाई का भोग लगाया जाता है. हाथ में जल, फूल, गंध, फल, कुश लेकर ‘ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥’ मंत्र का जाप करें. रात 12 बजे भगवान का जन्म करें, पंचामृत से अभिषेक करें. नये कपड़े पहनाएं. भोग में तुलसी पत्ता जरूर डालें. ‘नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की’ कहकर उन्हें झूला झुलाएं. घी के दीपक से आरती उतारें और रातभर मंगल गीत गाएं.
इसका पालन जरूर करें
जन्माष्टमी व्रत से पहली रात को हल्का भोजन करें और अगले दिन ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें. शास्त्रों में बताया गया है कि जन्माष्टमी, शिवरात्रि, नवरात्र में यौन संबंध और काम भाव पर नियंत्रण रखना चाहिए. इससे व्रत सफल होता है. जो व्रत नहीं करते, वे भी इस दिन लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा आदि से परहेज रख पुण्य पा सकते हैं. घर में कृष्ण की पुरानी मूर्ति की भी पूजा करें व भोग लगाएं. मन में नकारात्मक भाव न आने दें.
मुहूर्त काल (विश्व पञ्चाङ्गानुसार)
अष्टमी तिथि आरंभ 17:12 (2 सितंबर)
अष्टमी तिथि समाप्त 15:36 (3 सितंबर)
निशिथ पूजा 23:57 से 00:43
पारण 08:05 (4 सितंबर)
रोहिणी समाप्त 17:39 (3 सितंबर)
प्रसिद्ध श्रीकृष्ण मंदिर
द्वारकाधीश मंदिर
गुजरात स्थित भगवान कृष्ण का यह मंदिर द्वारका में है. माना जाता है कि लगभग 2000 साल पुराना है और इसे भगवान कृष्ण के पोते वज्रनाभ ने बनवाया था. यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कान्हा के निवास स्थान द्वारिका में है. द्वारिकाधीश ‘चार धाम’ में से एक है. इसे जगत मंदिर भी कहा जाता है. यहां के प्रवेश द्वार को स्वर्ग द्वार और मोक्ष द्वार भी कहते हैं. जन्माष्टमी के दौरान यहां बेहद उमंग भरा माहौल देखने को मिलता है.
बांके बिहारी मंदिर
उत्तर प्रदेश के वृंदावन में कृष्ण का यह प्रसिद्ध मंदिर है. यहां गोपाल की मूर्ति त्रिभंग रूप में है. माना जाता है कि इस मूर्ति में भगवान का सबसे मोहक और आकर्षक रूप दिखता है. बांके बिहारी मंदिर में हर वर्ष जन्माष्टमी पर निकलने वाली झूलन यात्रा और अक्षय तृतीय का पर्व देखने लायक होता है. यहां साल में एक बार मंगला आरती होती है. इस मंदिर का निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था.
जगन्नाथ मंदिर
ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित यह प्राचीन मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है. वैष्णवों के ‘चार धाम’ में शामिल इस मंदिर से जुड़ीं कई अद्भुत कथाएं प्रसिद्ध हैं. यहां हर साल निकलने वाली विशेष रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं. पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है.
गुरुवायुर मंदिर
केरल के त्रिशूर में गुरुवायुर मंदिर करीब पांच हजार साल पुराना है और 1638 ईस्वी में पुनर्निर्माण हुआ था. यहां भगवान गुरुवायुरप्पन बालगोपालन (कृष्ण के बालरूप) रूप में हैं. यह दक्षिण भारत का द्वारिका भी कहा जाता है. भगवान की मूर्ति चार हथियार लिये हैं- शंख, सुदर्शन चक्र, खोउमुदकि और एक कमल. मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुष कमर पर मुंडु पहनते हैं और सीना खुला रहता है. महिलाएं साड़ी पहनती हैं.
राधा रमन मंदिर
वृंदावन स्थित राधा रमण मंदिर करीब 500 साल पुराना है. इसे गोपाल भट्ट गोस्वामी ने स्थापित करवाया था. इसका निर्माण 1542 में किया गया था और इसे वृंदावन का सबसे पूजनीय और पवित्र मंदिर माना जाता है. मंदिर में की गयी खूबसूरत नक्काशी से आरंभिक भारतीय कला, संस्कृति और धर्म की झलक मिलती है. समय के साथ इस मंदिर में कई बदलाव किये गये और इसका नवीनीकरण भी हुआ.
इस्कॉन मंदिर
मथुरा स्थित इस कृष्ण मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है. देश ही नहीं, विदेशियों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है. स्थापना स्वामी प्रभुपाद जी ने की थी. यहां सबसे ज्यादा विदेशी श्रद्धालु आते हैं, जन्माष्टमी में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. मान्यता है कि इसी रमन रेती इलाके में कृष्ण और बलराम गायों के साथ यमुना नदी के किनारे आते थे. मथुरा के अलावा दिल्ली, बेंगलुरु और भारत से बाहर अमेरिका में भी इस्कॉन मंदिर हैं.
श्रीनाथ जी
उदयपुर (राजस्थान) में स्थित श्रीनाथ जी का यह प्रसिद्ध मंदिर 12वीं शताब्दी में बनाया गया था. कहते हैं यह एक मात्र मंदिर है, जहां श्री कृष्ण को बाल रूप (7 वर्ष की अवस्था) में पूजा जाता है. यह मूर्ति नाथ जी मंदिर बनने के पहले से ही यहां स्थापित थी. माना जाता है, श्री वल्लभाचार्य जी को गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी की मूर्ति मिली थी. श्रीनाथ जी के दर्शन के लिए यहां हर साल जन्माष्टमी पर भारी भीड़ उमड़ती है.
जुगल किशोर मंदिर
बुंदेलखंड के पन्ना में भगवान कृष्ण के सबसे पुराने और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक यह मंदिर है. पूरे बुंदेलखंड में यह मंदिर कृष्ण भक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र है. माना जाता है कि कृष्ण ने यहीं केसी राक्षस का वध किया था और इसी घाट पर स्नान किया था. मंदिर का निर्माण 1813 में तत्कालीन पन्ना नरेश हिंदूपत ने कराया था. इसे बुंदेलखंड के वृंदावन की संज्ञा दी जाती है. जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाया जाती है.
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