”गणपति की लवण प्रतिमा की उपासना से होता है शत्रुता का नाश”

।।सदगुरु स्वामी आनंद जी ।। गणपति उपासना दरअसल स्व जागरण की एक तकनीकी प्रक्रिया है. ढोल नगाड़ों से जुदा और बाहरी क्रियाकलाप से इतर अपनी समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करके ध्यान के माध्यम से अपने अंदर ईश्वरीय तत्व का परिचय प्राप्त करना और मोक्ष प्राप्ति की अग्रसर होना ही वास्तविक गणेश पूजन है. विनायक कहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 12, 2018 6:31 PM

।।सदगुरु स्वामी आनंद जी ।।

गणपति उपासना दरअसल स्व जागरण की एक तकनीकी प्रक्रिया है. ढोल नगाड़ों से जुदा और बाहरी क्रियाकलाप से इतर अपनी समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करके ध्यान के माध्यम से अपने अंदर ईश्वरीय तत्व का परिचय प्राप्त करना और मोक्ष प्राप्ति की अग्रसर होना ही वास्तविक गणेश पूजन है. विनायक कहीं बाहर नहीं, हमारे भीतर और सिर्फ हमारे अंतर्मन मे ही विराजते हैं. हमारे मूलाधार चक्र पर ही उनका स्थायी आवास है.

समस्त गणों यानी इंद्रियों के अधिपति हैं महागणाधिपति. आदि देव गणेश जलतत्व के प्रतीक हैं. मूलाधार चक्र हमारे स्थूल शरीर का प्रथम चक्र माना जाता है. यही वह चक्र है, जिस पर यदि कोई जुंबिश न हो और यह जो यदि न सक्रिय हुआ, तो आज्ञा चक्र पर अपनी जीवात्मा का बोध मुमकिन नहीं है. ज्ञानी-ध्यानी गणपति चक्र यानि मूलाधार चक्र के जागरण को ही कुंडलिनी जागरण के नाम से पहचानते हैं.

कालांतर में जब हमसे हमारा स्वयं का बोध खो गया, हम कर्मों के फल को विस्मृत करके भौतिकता में अंधे होकर उलटे कर्मों के ऋण जाल में फंसकर छटपटाने लगे. हमारे पूर्व कर्मों के फलों ने जब हमारे जीवन को अभाव ग्रस्त कर दिया, तब हमारे ऋषि-मुनियों ने हमें उसका समाधान दिया और हमें गणपति के कर्मकांडीय पूजन से परिचित कराया.

कितने दिनों तक करें उपासना?

पूर्व के नकारात्मक कर्म जनित दुःख, दारिद्रय, अभाव व कष्टों से मुक्ति या इनसे संघर्ष के लिए शक्ति प्राप्त करने हेतु, शारदातिलकम, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव सहित तंत्र शास्त्र के कई प्राचीन ग्रंथों के गणेश तंत्र में भाद्रपाद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानि 10 दिनों तक गणपति का विग्रह स्थापित करके उस पर ध्यान केंद्रित कर उपासना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है.

कब करें प्रतिमा को स्थापित?

गणेश तंत्र के अनुसार, भाद्रपद की चतुर्थी को अपने अंगूठे के आकार के गणपति की प्रतिमा का निर्माण करके उन्हे अर्पित विधि विधान स्थापित करके, उनका पंचोपचार विधि से पूजन करके उनके समक्ष ध्यानस्थ होकर ‘मंत्र जाप’ करना आत्मशक्ति के बोध की अनेकानेक तकनीक में से एक है. यूं तो मंत्र सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने का विषय नहीं है. इसे व्यक्तिगत रूप से किसी सक्षम और समर्थ गुरु से ही लेना चाहिए. इससे उस मंत्र को क्रियाशील होने के लिए शून्य से आरंभ नहीं करना पड़ता, पर सिर्फ संदर्भ के लिए गकार यानि पंचांतक पर शशिधर अर्थात अनुस्वर अथवा शशि यानि विसर्ग लगने से निर्मित ‘गं’ या ‘ग:’ गणपति का बीज मंत्र कहलाता है. इसके ऋषि गणक, छंद निवृत्त और देवता विघ्नराज हैं.

किन मंत्रों से करें साधना?

अलग-अलग ऋषियों ने गणपति के पृथक-पृथक मंत्रों को प्रतिपादित किया है. भार्गव ऋषि नें अनुष्टुप छंद, वं बीज और यं शक्ति से ‘वक्रतुण्डाय हुम’ और विराट छंद से ‘ॐ ह्रीं ग्रीं ह्रीं’ को प्रकट किया. वहीं, गणक ऋषि नें ‘गं गणपतये नमः’ और कंकोल ऋषि ने ‘हस्तिपिशाचिलिखै स्वाहा’ को जगत के समक्ष रखा.

इन मंत्रों का सवा लाख जाप (कलयुग में चार गुना ज्यादा यानी 5 लाख) किया जाये और चतुर्दशी को जापित संख्या का जीरे, काली मिर्च, गन्ने, दूर्वा, घृत, मधु इत्यादि हविष्य से दशांश आहुति दी जाये, तो हमारे नित्य कर्म और आचरण में ऐसे कर्मों का शुमार होने लगता है, जो हमें कालांतर में समृद्ध बनाते हैं और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं, ऐसा पवित्र ग्रंथ कहते हैं.

क्या कहता है गणपति तंत्र?

गणपति तंत्र कहता है कि अगर हमने दूसरों की आलोचना और निंदा करके यदि अपने यश, कीर्ति, मान और प्रतिष्ठा का नाश करके स्वयं को शत्रुओं से घेर लिया हो, और बाह्य तथा आंतरिक दुश्मनों ने जीवन का बेड़ा गर्क कर दिया हो, तो भाद्रपद की चतुर्थी को अंगूठे के आकार के हल्दी के गणपति की स्थापना उसके समक्ष चतुर्दशी तक ‘ग्लौं’ बीज का कम से कम सवा लाख (कलयुग में चार गुना ज्यादा यानि कम से कम पांच लाख) जाप किया जाये, तो हमें अपनें आंतरिक और बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्ति में सहायता मिलती है.

कब और कैसे करें गणपति की साधना

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद की चतुर्थी को रक्त चंदन या सितभानु ( सफेद आक) के गणपति की अंगुष्ठ आकार की प्रतिमा की स्थापना करके चतुर्दशी तक नित्य अष्ट मातृकाओं ( ब्राम्‍ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, चामुंडा एवं रमा) तथा 10 दिशाओं में वक्रतुंड, एक दंष्ट्र, लंबोदर, विकट, धूम्रवर्ण, विघ्न, गजानन, विनायक, गणपति एवं हस्तिदन्त का पूजन करके मंत्र जाप और नित्य तिल और घृत की आहुति उत्तम जीवन प्रदान करती है.

किस प्रकार की प्रतिमा से मिलती है कैसी सिद्धि?

कुम्हार के चाक की मिट्टी से निर्मित प्रतिमा से संपत्ति, गुड़ निर्मित प्रतिमा से सौभाग्य और लवण की प्रतिमा की उपासना से शत्रुता का नाश होता है. ऐसी प्रतिमा का निर्माण यथासंभव स्वयं करें या कराएं, जिसका आकार अंगुष्ठ यानी अंगूठे से लेकर हथेली अर्थात मध्यमा अंगुली से मणिबंध तक के माप का हो. विशेष परिस्थितियों में भी इसका आकार एक हाथ जितना यानी मध्यमा अंगुली से लेकर कोहनी तक हो सकता है. इसके रंगों के कई विवरण मिलते हैं, पर कामना पूर्ति के लिए रक्त वर्ण यानी लाल रंग की प्रतिमा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है.

गणपति साधना में इन प्रकार की प्रतिमाओं का महत्व अधिक

गणपति साधना में मिट्टी, धातु, लवण, दही जैसे कई तत्वों की प्रतिमा का उल्लेख मिलता है, पर प्राचीन ग्रंथ चतुर्थी से चतुर्दशी तक की इस उपासना में विशेष रूप से कुम्हार के चाक की मिट्टी के नियम की संस्तुति करते हैं. सनद रहे कि शास्त्रों में कही भी विशालकाय प्रतिमा का उल्लेख हरगिज प्राप्त नही होता.

गणपति के नवैद्य

शारदातिलकम के त्रयोदश पटल यानि गणपति प्रकरण कहता है कि अष्ट द्रव्य यानी मोदक, चिउड़ा, लावा, सत्तू, गन्ने का टुकड़ा, नारियल, शुद्ध तिल और पके हुए केले को विघ्नेश्वर का नैवेद्य माना गया है.

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